महानदी विवाद क्या है? जानिए छत्तीसगढ़-ओडिशा के लिए क्यों है ये बेहद संवेदनशील मामला
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महानदी विवाद क्या है? जानिए छत्तीसगढ़-ओडिशा के लिए क्यों है ये बेहद संवेदनशील मामला

छत्तीसगढ़ ओडिशा के बीच महानदी के जल को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है. दोनों ही राज्यों की अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह विवाद बेहद संवेदनशील है. यही वजह है कि जल बंटवारे का यह विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. आइए जानते हैं कि क्या है ये पूरा विवाद

हीराकुंड बांध.

नई दिल्लीः ऐसा कहा जाता है कि हौसले बुलंद और इरादे मजबूत हों तो मंजिल मिल ही जाती है. इस बात को सच कर दिखाया है रायपुर जिले के नवापारा-राजिम निवासी कृष्ण कुमार सैनी ने. दरअसल कृष्ण कुमार सैनी ने प्रदेश की सुख समृद्धि और छत्तीसगढ़-ओडिशा के बीच जारी जल विवाद (Mahanadi Water Dispute) के शांतिपूर्ण समाधान के लिए 10 दिन में 600 किलोमीटर की पदयात्रा की. कृष्ण कुमार ने 1 जुलाई को चंदखुरी के माता कौशल्या मंदिर से अपनी पदयात्रा की शुरुआत की थी. जल्द ही उनकी यह कोशिश इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज होगी. हालांकि 26 घंटे में 140 किलोमीटर की नॉन स्टॉप पदयात्रा कर कृष्ण कुमार का नाम पहले ही इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुका है. 

यह पढ़कर आपके मन में सवाल उठ सकता है कि आखिर छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच का जल विवाद क्या है और क्यों लोग इसे लेकर चिंतित हैं. तो आइए  जानते हैं कि आखिर क्या है ये पूरा विवाद-

महानदी विवाद क्या है (Mahanadi River Dispute)
दरअसल छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी के पानी को लेकर विवाद है. विवाद की मुख्य वजह ओडिशा का हीराकुंड बांध है. केंद्र सरकार ने संबलपुर में हीराकुंड बांध का निर्माण कराया था और इसे ओडिशा सरकार को सौंप दिया था. हीराकुंड बांध महानदी पर बना है, जो छत्तीसगढ़ से बहकर ओडिशा में प्रवेश करती है. दोनों राज्यों के बीच महानदी विवाद की शुरुआत 1983 में हुई थी लेकिन 2016 में यह विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. जब ओडिशा ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में महानदी पर बने बांधों के चलते नदी की धारा प्रभावित हो रही है और हीराकुंड बांध में पानी का लेवल लगातार कम हो रहा है. आरोप है कि नदी के सूखने का खतरा बढ़ गया है और इससे ओडिशा के आम लोग, किसान, उद्योग और पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होंगे. 

वहीं छत्तीसगढ़ का तर्क है कि हीराकुंड बांध के लिए ओडिशा द्वारा निर्धारित सीमा से ज्यादा पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ का आरोप है कि यह जल औद्योगिक उद्देश्यों और सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. कोर्ट ने विवाद के निपटारे के लिए ट्रिब्यूनल का गठन किया है.

खेती, इकॉनोमी के लिए बेहद अहम
बता दें कि छत्तीसगढ़ के धमतरी स्थित सिहावा पर्वत से महानदी का उद्गम स्थल है और यह नदी 885 किलोमीटर का रास्ता तय कर बंगाल की खाड़ी तक जाती है. महानदी का कछार पांच राज्यों छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड के बीच है लेकिन इसका कैचमेंट एरिया 53 फीसदी छत्तीसगढ़ में और 46.5 फीसदी ओडिशा में है. यही वजह है कि इन दोनों राज्यों के लिए महानदी बेहद अहम है. महानदी को छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा भी माना जाता है. दोनों ही राज्यों में खेती, उद्योग और अर्थव्यवस्था में इस नदी की केंद्रीय भूमिका है. 

बांध-बैराज को लेकर बढ़ी चिंता
mongabay.com की एक रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में महानदी पर छोटे-बड़े करीब 2 हजार बांध और बैराज बने हुए हैं लेकिन विवाद मुख्यतः रविशंकर सागर बांध, हसदेव बांगो बांध, मुरूम सिल्ली बांध, तांदुला बांध, सोंदूर बांध, दुधवा जलाशय, घोंगा बांध, खारंग जलाशय, मोंगरा बैराज, मोनियारी टैंक और कोडर जलाशय को लेकर विवाद है. आरोप है कि इन बांधों का निर्माण सिंचाई के लिए किया गया लेकिन इनका पानी उद्योगों को उपलब्ध कराया जा रहा है. साथ ही साराडीह, कलमा, बसंतपुर, मिरौनी और शिवरीनारायण जैसे औद्योगिक बांध दोनों राज्यों के बीच टकराव को बढ़ा रहे हैं. गर्मी के समय में यह समस्या ज्यादा बढ़ जाती है. 

बहरहाल दोनों राज्यों के बीच महानदी विवाद काफी संवेदनशील है और लाखों लोगों का जीवन इस पर टिका है. केंद्र सरकार भी विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रही है. हालांकि अभी तक विवाद सुलझाया नहीं जा सका है.  

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