मध्य प्रदेश में फिर से हो सकता है किसान आंदोलन, संगठनों ने सरकार से जताई नाराजगी
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मध्य प्रदेश में फिर से हो सकता है किसान आंदोलन, संगठनों ने सरकार से जताई नाराजगी

किसान संगठनों का कहना है कि कर्ज माफी को लेकर भ्रम है. कई जगह बैंक किसानों को वसूली के नोटिस भी भेज रहे हैं. 

फाइल फोटो

भोपाल: पिछले साल जून 2018 में हुआ किसान आंदोलन मध्यप्रदेश में एक बार फिर सिर उठा रहा है. दो बड़े किसान संगठनों ने एक साथ आंदोलन का ऐलान किया तो सरकार हरकत में आ गई. कमलनाथ में दोनों किसान संगठन को बुलाकर अफसरों के साथ इमरजेंसी मीटिंग की. भारतीय किसान यूनियन नाम का एक संगठन हड़ताल का ऐलान कर चुका है और दूसरे संगठन राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ ने सरकार से बातचीत के बाद आंदोलन को स्थगित करने का फैसला लिया है. भारतीय किसान यूनियन ने सब्जियां और दूध फेंक कर शहरों में सप्लाई रोकना शुरू कर दिया है.

इन दोनों ही किसान संगठनों ने सरकार पर कर्ज माफी को लेकर नाराजगी जाहिर की है. इन किसान संगठनों का कहना है कि कर्ज माफी को लेकर भ्रम है. कई जगह बैंक किसानों को वसूली के नोटिस भी भेज रहे हैं. इसके अलावा बिजली की आवाजाही और समर्थन मूल्य, खेती को फायदे का धंधा बनाना, प्याज और लहसुन की कीमतें गिरना जैसे मुद्दों से भी किसान परेशान हैं. राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा कहते हैं कर्ज माफी पर तारीख को लेकर असमंजस है. कब तक का कर्ज माफ होगा इसको लेकर स्थिति साफ नहीं है. इस वजह से किसानों को कर्ज माफी का फायदा नहीं मिल पा रहा है.

भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष अनिल यादव कहते हैं, 'सरकार से कई बार बातचीत करने की कोशिश की गई लेकिन उचित जवाब नहीं मिला. इसलिए मजबूरी में हड़ताल जैसा कदम उठाना पड़ रहा है. किसानों की हालत खराब है. आगे आत्महत्या जैसी स्थिति ना बने इसलिए हम हड़ताल करके सरकार को चेताना चाहते हैं.'

 

सीएम कमलनाथ ने आनन-फानन बुलाई इमरजेंसी मीटिंग
भारतीय किसान यूनियन ने 29 मई से 31 मई तक हड़ताल शुरू कर दी है. पहले दिन भोपाल में दूध और सब्जियों की सप्लाई रोकने की कोशिश की गई. हालांकि प्रदेश में पहले दिन इसका ज्यादा असर देखने को नहीं मिला. लेकिन आशंका है यह आंदोलन बढ़ेगा तो हालात बिगड़ सकते हैं. सरकार ने आनन फानन राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के साथ उच्चस्तरीय आपातकालीन बैठक की. बैठक में सरकार के आला अफसर और मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री कमलनाथ भी शामिल हुए.

मुख्यमंत्री ने हालातों को समझा और किसानों की समस्या के निवारण के लिए सात सदस्यीय कमेटी का ऐलान कर दिया. मुख्यमंत्री की बातचीत से प्रभावित महासंघ ने 1 जून से होने वाली अपनी प्रस्तावित हड़ताल फिलहाल वापस ले ली है. महासंघ के अध्यक्ष शिव कुमार शर्मा कहते हैं, 'हमने सारे असमंजस सरकार को बताए हैं, नई नई सरकार है, काम करने के लिए दो-तीन महीने का वक्त दिया जाना चाहिए. आंदोलन तो हमारे हाथ में है, इसे कभी भी खड़ा कर देंगे.

सरकार रिस्क लेने को नहीं तैयार
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि हम बातचीत कर रहे हैं. किसानों को कोई परेशानी ना हो इसलिए बैठक बुलाई गई है. कृषि मंत्री और अफसर लगातार किसान नेताओं के संपर्क में रहेंगे. कृषि मंत्री सचिन यादव ने कहा कि विधानसभा चुनाव के बाद राज्य सरकार को केवल लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगने तक ही काम करने का मौका मिला. इस दौरान ऋण मुक्ति के कई प्रकरण निपटाए गए. आचार संहिता में यह प्रक्रिया रुकी हुई थी, इसे फिर शुरू किया जा रहा है. किसानों के 2 लाख रुपए तक के कर्ज माफ को हर हालत में पूरा किया जाएगा. 

किसान आंदोलन कांग्रेस सरकार की नाकामियों का नतीजा- बीजेपी
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने किसान आंदोलन को कांग्रेस सरकार की नाकामियों का नतीजा बताया है. कर्ज माफी की केवल बातें कही गईं जमीन पर कर्ज माफी हुई ही नहीं. कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि अब किसान को भी समझ में आ रहा है कि कांग्रेस ने झूठ की बुनियाद पर विधानसभा चुनाव जीता है.

साल भर पहले हुए किसान आंदोलन से गई थी बीजेपी सरकार
साल भर पहले प्याज और लहसुन के दाम नहीं मिलने पर किसान संगठनों ने ऐसी ही एक हड़ताल का ऐलान किया था. उस वक्त मध्यप्रदेश में बीजेपी की शिवराज सरकार थी. आंदोलन के दौरान ही 6 मई को या आंदोलन हिंसक हो गया और मंदसौर में 6 किसानों की पुलिस गोली चालन में मौत हो गई. इसके बाद आंदोलन भड़का और तत्कालीन शिवराज सरकार किसी तरह आंदोलन को खत्म कर पाई थी. लेकिन इन सब में किसान बीजेपी से नाराज हो गया और कांग्रेस ने इसे जबरदस्त तरीके से भुनाया.

विधानसभा चुनाव के ऐन पहले कांग्रेस ने एलान किया कि वह सत्ता में आई तो दो लाख तक का कर्ज माफ किया जाएगा. किसानों के बीच अहम मुद्दा अंडर करंट बना और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने की वजह भी बना. लेकिन कांग्रेस की सरकार में ही कर्ज माफी को लेकर भारतीय किसान यूनियन और राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ जैसे संगठनों का सरकार के खिलाफ खड़े हो जाने से कांग्रेस की फजीहत होने लगी है.

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