Sudha Singh left Sarpanchi: दमोह जिले की सुधा सिंह नाम की एक महिला सरपंच का पद छोड़ खंडवा में शिक्षिका की नौकरी करने आई है तो आपको बताते हैं कि सुधा ने राजनीति छोड़कर शिक्षा का रास्ता क्यों चुना है?
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प्रमोद सिन्हा/खंडवा : सरकारी नौकरी छोड़ राजनीति में आते हुए तो अब तक आपने कई लोगों को देखा होगा, लेकिन, एक महिला सरपंच राजनीति छोड़ शिक्षा के क्षेत्र में उजियारा फैलाने आई है. दरअसल, दमोह जिले में सरपंच का पद छोड़कर एक महिला खंडवा के आदिवासी खालवा ब्लॉक में शिक्षिका वर्ग तीन के पद पर ज्वाइन करने आई है. खासतौर से आदिवासी बच्चों के जीवन को बदलने की चाह उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में खींच लाई है.
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सुधा सिंह रही हैं सरपंच
दमोह की सुधा सिंह अपने परिवार के साथ खंडवा पहुंची हैं. सुधा दमोह जिले के एक गांव की सरपंच हैं. उन्होंने सरपंच रहते हुए अपने गांव में मूलभूत काम भी करवाए, लेकिन अब वह शिक्षिका बनकर बच्चों के जीवन में उजियारा लाना चाहती हैं. सुधा उन बच्चों के जीवन में शिक्षा रूपी अमृत घोलेंगी, जो ठेठ आदिवासी अंचल में रहते हैं. सुधा दमोह के पथरिया के अंतर्गत ग्राम पंचायत सैजरा लखरौनी में सरपंच पद रहीं हैं. लेकिन, अब शिक्षा विभाग अंतर्गत वर्ग 3 में शिक्षिका के पद पर चयन हो गया है. ऐसे में इन्होंने खंडवा जिले के खालवा ब्लॉक के गुलाई माल में स्थित आश्रम स्कूल में आमद दे दी है.
सचपंच का पद छोड़ने को लेकर सुधा सिंह का कहना है कि वह कहती हैं कि सरपंच बनकर मैं सिर्फ एक गांव का विकास कर पाती, लेकिन, अब टीचर बनकर मैं बहुत से बच्चों की जिंदगी में बदलाव ला सकूंगी.वहीं, अधिकारी भी इस बात से प्रभावित हैं कि राजनीति छोड़कर सुधा ने शिक्षा का रास्ता चुना है.
अधिकारी भी रह गए हैरान
बता दें कि यह बात तब पता चली जब खंडवा में ज्वाइनिंग के समय सुधा सिंह अपने कागजात की जांच करवा रही थीं, जब उनके कागजातों की इसी फाइल में सरपंच पद से उनके इस्तीफे का लेटर दिखा तो अधिकारी भी हैरान रह गए. खास बात यह है कि सुधा अपने गांव में भी निर्विरोध सरपंच चुनी गईं थीं. वह खुद आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और आदिवासी बच्चों में शिक्षा का प्रसार करने की उनकी दिली तमन्ना है.अधिकारियों ने भी उन्हें बधाई दी.