mp nikay chunav में दो भाईयों की एक अनोखी जोड़ी सामने आई है. जिन्होंने रिश्तों के लिए सत्ता को ठुकरा दिया. यह दोनों भाई अलग-अलग पार्टी बीजेपी और कांग्रेस में शामिल हैं. लेकिन दोनों ने अपने रिश्तों के बीच राजनीति को नहीं आने दिया.
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अरुण त्रिपाठी/उमरिया। मध्य प्रदेश के नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं, जहां भाई के सामने भाई, सास के सामने बहू तो चाचा के सामने भतीजा चुनाव लड़ रहा है. यानि चुनाव जीतने के लिए लोग रिश्तों को भी अहमियत नहीं दे रहे. लेकिन मध्य प्रदेश की उमरिया नगर पालिका में दो सगे भाई एक मिसाल बनकर उभरे हैं. क्योंकि दोनों अलग-अलग पार्टियों में हैं, इसके बाद भी भाई के लिए भाई ने दावेदारी छोड़ दी.
बीजेपी-कांग्रेस में हैं दोनों भाई
दरअसल, मामला उमरिया नगर पालिका के वार्ड नंबर क्रमांक 2 का है. इस वार्ड में रहने वाले भैयालाल कोल और राजू कोल जो आपस में भाई हैं, दोनों की जोड़ी इस चुनाव में चर्चा का विषय बनी हुई है. भैयालाल जहां कांग्रेस पार्टी में शामिल है, तो उनका छोटा भाई राजू कोल बीजेपी में शामिल है. राजू कोल इस बार पार्षद का चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ रहा है, खास बात यह है कि कांग्रेस पार्टी ने राजू के सामने भैयालाल को टिकट देने का फैसला किया. लेकिन भैयालाल ने अपने छोटे भाई का सर्मथन करने का फैसला किया है. क्योंकि पिछले चुनाव में राजू ने अपने भाई का समर्थन किया था.
दोनों भाईयों के बीच हुई चुनावी जुगलबंदी
राजू और उसके भाई भैयालाल की चर्चा इस वजह भी जिले में खूब हो रही है क्योंकि दोनों भाईयों के बीच ऐसी चुनावी जुगलबंदी है जिसकी बातें कर आम मतदाता भी इन भाइयों के बीच सैद्धांतिक राजनीति और कृतज्ञता की मिसालें दे रहे हैं.
दरअसल, भैयालाल कोल ने कांग्रेस के टिकट पर 2012 में इसी वार्ड से पार्षद का चुनाव लड़ा था, खास बात यह है बीजेपी ने उनके छोटे भाई राजू को टिकट दिया. लेकिन बाद में समाज के लोगों के साथ जब दोनों भाइयों की बैठक हुई तो यह तय हुआ कि बड़े भाई भैयालाल जो कांग्रेस के उम्मीदवार हैं उनका समर्थन राजू भी करेगा. भले ही उसकी पार्टी बीजेपी है. ऐसे में छोटे भाई राजू ने भाजपा से नामांकित होने के बावजूद बड़े भाई के पक्ष के प्रचार कर उन्हें पार्षद पद पर जीत दिलाई.
इस बार बड़े भाई ने निभाया फर्ज
वक्त एक बार फिर घूमकर दोनों भाईयों को उसी मोड़ पर ले आया जहां वे 2012 के चुनाव में थे. बीजेपी ने इस बार भी राजू को कोल को टिकट दिया, जबकि कांग्रेस ने पार्षदी के लिए भैयालाल को टिकट देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन इस बार बड़े भाई ने अपना फर्ज निभाना जरूरी समझा, भैयालाल ने छोटे भाई को दिए वचन का पालन करते हुए कांग्रेस से चुनाव लड़ने से मना कर दिया और भाजपा से फिर प्रत्याशी बने राजू कोल के समर्थन में प्रचार कर उसे जिताने का बीड़ा उठा लिया है. दोनों भाइयों के बीच एक दूसरे के प्रति आदर-सम्मान जस का तस बरकरार है और पारिवारिक रिश्ते भी प्रगाढ़ हैं. जिसकी तारीफ सभी के लोग भी कर रहे हैं.
दोनों भाई राजू और भैयालाल कोल के इस चुनावी फार्मूले को समाज ने भी अपनी स्वीकार्यता प्रदान की है और यही वजह है एक के बाद दूसरे चुनाव में भी आम मतदाता राजू कोल के समर्थन में है. हालांकि अन्य उम्मीदवार भी मैदान में हैं, लेकिन कोल मतदाता बाहुल्य इस वार्ड में लोगों की जुबान पर सिर्फ दोनों भाईयों के राजनीति के आदर्शवाद के किस्से जुबान पर छाए हुए हैं. जिससे राजू कोल यहां मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं.
राजनीति के वर्तमान परिदृश्य को देंखे तो सैद्धांतिक राजनीति और किये गए वादों को निभाने वाले बहुत कम लोग मिलते हैं, लेकिन आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले में इन दोनों आदिवासी भाइयों की जोड़ी ने न केवल अच्छी राजनीतिक का उदाहरण पेश किया है, बल्कि परिवार को भी राजनीतिक उलझनों से बचाये रखकर राजनीति करने फॉर्मूला बताया है.
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