होशंगाबाद के बाद इंदौर के नाम बदलने की उठी मांग, शहर के नाम का इतिहास है बेहद दिलचस्प
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होशंगाबाद के बाद इंदौर के नाम बदलने की उठी मांग, शहर के नाम का इतिहास है बेहद दिलचस्प

बीजेपी विधायक रमेश मेंदोला की मांग के बाद प्रदेश में इंदौर के नाम को लेकर राजनीति शुरू हो गई है. ऐसे में आइए जानते हैं. इस शहर के नामकरण का क्या इतिहास है और ये कैसे इंद्रपुरी से इंदौर बन गया.

होशंगाबाद के बाद इंदौर के नाम बदलने की उठी मांग, शहर के नाम का इतिहास है बेहद दिलचस्प

इंदौर: प्रदेश में इन दिनों शहरों, कस्बों, इमारतों और रेलवे स्टेशनों का नाम बदले को लेकर सियासत चल रही है. बीजेपी विधायक रमेश मेंदोला के बयान के बाद अब इंदौर के नाम बदलने की चर्चा शुरू हो गई है. मेंदोला चाहते हैं कि शहर का जन्मदिन मनाने से पहले नाम बदल जाए. वहीं कांग्रेस ने इसे गैर जरूरी बताते हुए सवाल किया है कि जब शहर के नाम से न तो मुगल का नाता है न ही अंग्रेजों का तो फिर क्यों ऐसी मांग बीजेपी विधायक कर रहे हैं.

गौरव दिवस के परिचर्चा कार्यक्रम में बीजेपी विधायक रमेश मेंदोला ने कहा था कि इंदौर का नाम बदलकर अहिल्या नगर रख देना चाहिए. विधायक ने कहा कि इंदौर का जन्मदिन मनाने से पहले शहर का नाम बदला जाए और इसी नाम के साथ जन्म दिन मनाया जाएगा. इसपर कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला बोला है. कांग्रेस के अनुसार शहर का नाम किसी आक्रांता ने नहीं रखा. वहीं बीजेपी का कहना है जब भी भारत के पुनर जागरण की बात होती है कांग्रेस के पेट में दर्द होने लगता है.

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क्या है इंदौर के नाम का इतिहास
इंदौर के नाम करने के पीछे दो तरह की कहानियां प्रचलित है. इसमें से एक पौराणित तो दूसरी तरह की कई आधुनिक कहानियां भी है. हालांकि दोनों के हिसाब से नाम एक ही है. इसके साथ ही इंदौर को लेकर बौद्ध साहित्य में भी जिक्र किया गया है.

इंद्रेश्वर मंदिर है केंद्र
शहर के नाम के पीछे प्रचित सभी कहानियों और साहित्य के पीछे इंद्रेश्वर मंदिर ही मूल है. ये मंदिर इंदौर के पंढरीनाथ थाने के पीछे स्थित है. बताया जाता है, यह मंदिर साढ़े 4 हजार साल पुराना है.

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पैराणिक मान्यता
कहते हैं देवताओं के राजा इंद्र को शरीर में सफेद दाग की बीमारी ने घेर लिया था. इससे बचने के लिए देवराज इंद्र ने इसी मंदिर में आकर कड़ी तपस्या की और वे ठीक हो गए. शिवपुराण में इंद्र की तपस्या का उल्लेख है. इंद्र की तपस्या के कारण शिवालय का नाम इंद्रेश्वर महादेव नाम प्रचिलत हो गया. बाद में इसे के नाम पर शहर का नाम इंद्रपुर कर दिया गया.

राजा इंद्र तृतीय ने जीता था इंदौर
पुरातत्व विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, इंदौर पर आधिपत्य को लेकर पाल, प्रतिहार और राजपूतों के बीच आठवीं शताब्दी में त्रिकोणीय संघर्ष हुआ. इसे राजपूत राजा इंद्र तृतीय ने जीता था और क्षेत्र में अपना शासन शुरी किया. उन्होंने यहां एक शिवालय बनाया, जिसका नाम इंद्रेश्वर रखा. इसी मंदिर के कारण शहर का नाम इंद्रपुरी हो गया.

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मराठाओं ने इंद्रपुर को बनाया इंदूर
अठारहवीं शताब्दी में मराठा शासनकाल में इंद्रपुरी का नाम बदलकर इंदूर रख दिया. इसके पीछे का लॉजिक ये था कि मराठियों ने अपभ्रंश के तौर पर इंद्रपुर को इंदूर बुलाला शुरू कर दिया था. बाद में यही नाम चलन में आ गया.

इंदूर को अंग्रेजों ने बनाया इंदौर
मराठा शासनकाल के दौरान ही अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बिट्रिशों प्रभुत्व इंदौर में छाने लगा. उन्होंने अपनी सहूलियत के हिसाब से पहले शहर का नाम इंदोर (INDOR) बाद में इंदौर (INDORE) कर दिया. तब से लेकर यही नाम प्रचलन में है.

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क्या कहता है बौध साहित्य
बौध साहित्य के अनुसार इंद्रपुरी का नाम पहले चितावद था और इसी के आधार पर बौद्ध साहित्य में चिटिकाओं का उल्लेख है. 1973-74 के बीच आजाद नगर उत्खनन में यहां से बुद्ध स्तूपों के अवशेष मिले हैं. इसी आधार पर कहा जाता है कि छटवीं से आठवीं शताब्दी तक इंदौर का नाम चितावद रहा है.

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