चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर बाइकर्स ने सीएम को सौंपा भाबरा का कलश, शहीद स्मारक में होगा स्थापित
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चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर बाइकर्स ने सीएम को सौंपा भाबरा का कलश, शहीद स्मारक में होगा स्थापित

गुरुवार गांव भाबरा भेजा गया बाइकर्स का दल शनिवार को भोपाल पहुंचा. भोपाल आकर वो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिले और भाबरा से कलश में लाई गई मिट्टी और जल सीएम को सौंपा. बाइकर्स को यूथ पंचायत में सम्मानित भी किया गया.

चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर बाइकर्स ने सीएम को सौंपा भाबरा का कलश, शहीद स्मारक में होगा स्थापित

भोपाल: अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की 116वीं जयंती पर उनके गांव भाबरा से कलश में पावन मिट्टी और निर्मल जल बाइकर्स का दल भोपाल पहुंचा. उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कलश सौंप दिया है. इसे भोपाल के शहीद स्मारक में स्थापित किया जाएगा. बारिश के बीच भोपाल से अलीराजपुर और फिर अलीराजपुर से भोपाल तक बाइकर्स ने करीब 1000 किलोमीटर तक का सफर किया.

गुरुवार को दल गया था भाबरा
बाइकर्स के दल को भोपाल में आयोजित यूथ पंचायत में भी सम्मानित किया गया. इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शामिल रहे. बता दें इस दल को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरुवार के रोज राजधानी के स्मार्ट पार्क से अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्म-स्थली भाबरा के लिए यूथ महापंचायत की बाइक रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था.

सीएम शिवराज सिंह चौहान ने किया कहा
इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कबा कि मां भारती के लाल चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लोहा लिया और जब अंतिम गोली बची तो उसी से स्वयं को मारकर स्वयं को बलिदान कर दिया. अंग्रेजों ने भारत को आजादी चांदी की तश्तरी में रखकर भेंट नहीं की है. इसके लिए हजारों क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदों पर झूल गये थे. कई ने अपनी जवानी और जिंदगी अंडमान-निकोबार की जेल में कोल्हू और चक्की पीसते गुजार दी.

अलीराजपुर के भाबरा गांव में हुआ था जन्म
बता दें चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 में मध्य प्रदेश के वर्तमान जिले अलीराजपुर के भाबरा गांव में हुआ था. तब अलीराजपुर रियासत हुआ करता था. माता-पिता ने 6 साल की उम्र में चंद्रशेखर का दाखिला गांव के प्राथमिक विद्यालय में करवा. उस विद्यालय में आदिवासी भील बच्चों के साथ उन्होंने तीर कमान चलाना सीख लिया. बालक चंद्रशेखर घंटों आदिवासी बच्चों के साथ भाबरा की पुरानी गढ़ी में तीर-कमान लेकर निशाना लगाने का अभ्यास किया करते थे. यह अभ्यास अंग्रेजों से लड़ाई में उन्हें खूब काम आया.

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