बचपन से नहीं हैं आखें, लेकिन जुनून ऐसा कि कॉमनवेल्थ जूडो चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधितत्व करेंगी सरिता चौरे
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बचपन से नहीं हैं आखें, लेकिन जुनून ऐसा कि कॉमनवेल्थ जूडो चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधितत्व करेंगी सरिता चौरे

जन्म से ही दृष्टिबाधित सरिता के पिता बांजराकला में ही मजदूरी करते हैं और अपने आर्थिक तंगी के बीच परिवार का पालन पोषण करते हैं. 

होशंगाबाद के छोटे से गांव बांजराकला की रहने वाली हैं सरिता चौरे

भोपालः भारत की होनहार बेटियां पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन कर रही हैं और अब मध्यप्रदेश की एक ऐसी ही होनहार बेटी इंग्लैंड में तिरंगा लहराने की तैयारी में है. हम बात कर रहे हैं होशंगाबाद की रहने वाली दृष्टिबाधित जूडो खिलाड़ी सरिता  चौरे की. जो सितंबर में इंग्लैंड की सरजमी पर होने वाली कॉमनवेल्थ जूडो चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधितत्व करेगी . खास बात तो यह है कि सरिता के पिता मजदूरी करते हैं और विपरित हालातों के बीच सरिता इंग्लैंड में जूडो चैंपियनशिप में दमखम दिखाने की तैयारी कर रही है. 
 
मैरिकॉम का मुक्का हो या गीता फोगाट के दांव पेंच, साइना नेहवाल से लेकर पीवी सिंधु तक. मिताली राज से लेकर हिमा दास तक. खेल के मैदान में आज भारत की होनहार बेटियों का लोहा पूरी दुनिया मान रही है और अब मध्यप्रदेश की एक ऐसी ही बेटी अपने सपनों को उड़ान देने के तैयारी में है. नाम है सरिता चौरे. 

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भारतीय क्रिकेट टीम भले ही पिछले दिनों इंग्लैंड से विश्वकप का खिताब लाने में नाकामयाब रही हो, लेकिन बुलंद हौसलों वाली सरिता देश के लिए पदक जीतने को तैयार है. दरअसल, बर्मिंघम में 21 सितंबर से दृष्टिबाधित खिलाड़ियों की कॉमनवेल्थ जूडो चैंपियनशिप खेली जानी है और सरिता ने पिछले दिनों गोरखपुर में राष्ट्रीय स्पर्धा 48 किग्रा वर्ग में रजत जीत भारतीय टीम में जगह बनाई. वे इस चैंपियनशिप के एमपी से जाने वाली तीन महिला खिलाड़ियों में शामिल है. हांलाकि होशंगाबाद के छोटे से गांव बांजराकला की रहने वाली सरिता के लिए यहां तक पहुंचने की राह आसान नहीं रही. 

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जन्म से ही दृष्टिबाधित सरिता के पिता बांजराकला में ही मजदूरी करते हैं और अपने आर्थिक तंगी के बीच परिवार का पालन पोषण करते हैं. पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्होंने बेटियों को इंदौर पढ़ने के लिए भेज दिया. हैरान कर देने वाली बात यह है कि सरिता की बड़ी बहन ज्योति और छोटी बहन पूजा भी जन्म से ही दृष्टिबाधित हैं. तीनों बहनें फिलहाल इंदौर के माता जीजाबाई शासकीय कॉलेज में बीए सैंकंड ईयर में पढ़ाई कर रही हैं. दोनों बहनें पूजा और ज्योति भी जूडो खेलती हैं.

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सरिता का कहना है कि बचपन से ही उनका सपना जूडो में अपना भविष्य बनाने का रहा है. उन्हें पता लगा कि होशंगाबाद के सुहागपुर तहसील में एक समाजसेवी संस्था दृष्टिबाधित बच्चों को जूडो का प्रशिक्षण देती हैं. फिर क्या था सरिता ने भी संस्था से जुड़कर जूडो की ट्रैनिंग शुरू कर दी. स्टेट लेवल चैंपियनशिप में दमखम दिखाने के साथ ही उन्होंने गोरखपुर में राष्ट्रीय स्पर्धा 48 किग्रा वर्ग में रजत जीत भारतीय टीम में जगह बनाई.

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सरिता की दोनों बहनें पूजा और ज्योति भी जूडो खेलती हैं. पूजा ने भी गोरखपुर में कांस्य पदक जीता था. अब बहन जब सात समंदर पार भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने जा रही है तो दोनों बहनों की खुशी भी देखते ही बनती है. वहीं कॉलेज में इन बच्चियों की देखरेख करने वाली बेला सचदेवा का कहना है कि सरिता ने यह मुकाम हासिल कर एक नई मिसाल पेश की है.  साधारण खिलाड़ियों के मुकाबले दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए जूडो की ट्रेनिंग आसान नहीं होती है, लेकिन ये सरिता चौरे का जज्बा ही है जो उन्हें इस मुकाम पर ले आया है.

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