सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं शिवराज सिंह चौहान, जीतें या हारें मप्र की राजनीत‍ि का बदलना तय
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सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं शिवराज सिंह चौहान, जीतें या हारें मप्र की राजनीत‍ि का बदलना तय

किसी भी राज्य में कोई भी मुख्यमंत्री इतनी बड़ी लड़ाई में नहीं है. जितनी बड़ी लड़ाई का सामना शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं. अगर वह चुनाव जीते तो यकीन मानिए वह बीजेपी में पीएम नरेंद्र मोदी के बाद दूसरी सबसे ताकतवर शख्सियत बनकर उभरेंगे.

सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रहे हैं शिवराज सिंह चौहान, जीतें या हारें मप्र की राजनीत‍ि का बदलना तय

नई दिल्ली : देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें सबसे अहम चुनाव मध्यप्रदेश का है. इसका कारण हैं शिवराज सिंह चौहान. वह अपने जीवन की सबसे बड़ी और  निर्णायक राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं. इस चुनाव का परिणाम कुछ भी हो, मध्यप्रदेश की राजनीति की शक्ल और सूरत हमेशा के लिए बदल जाएगी. बाकी के किसी भी राज्य में कोई भी मुख्यमंत्री इतनी बड़ी लड़ाई में नहीं है. जितनी बड़ी लड़ाई का सामना शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं. अगर वह चुनाव जीते तो यकीन मानिए वह बीजेपी में पीएम नरेंद्र मोदी के बाद दूसरी सबसे ताकतवर शख्सियत बनकर उभरेंगे. शिवराज जानते हैं, भले उनके सामने 230 सीटें ही हैं, लेकिन इन्हें फतह कर वह भारतीय राजनीति के केंद्र में आ जाएंगे. ये भी उतना ही बड़ा सच है कि शिवराज इस चुनाव से जितना पा सकते हैं, उससे कहीं ज्यादा गंवा सकते हैं. चुनाव हारे तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस फिर से जिंदा हो जाएगी. लेकिन शिवराज की उम्मीदें सूख जाएंगीं.

2003 में भले उमा भारती मध्यप्रदेश की स्टार कैंपेनर और सीएम पद का चेहरा थीं, लेकिन पार्टी आलाकमान को उसी समय शिवराज सिंह चौहान में बड़ी संभावनाएं दिख गई थीं. इसीलिए उन्होंने उस चुनाव में दिग्विजय सिंह के के सामने उन्हीं के गढ़ राघोगढ़ में शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतार दिया था. अगर उस समय शिवराज फेरबदल कर देते तो मप्र की राजनीति में भी बड़ा परिवर्तन हो सकता था, लेकिन वह चुनाव हार गए. उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी, बाद में उमा भारती और बाबूलाल गौर के पास से होती हुई मप्र के मुखिया की कमान शिवराज को मिली. मात्र 3 साल में उन्होंने लोगों को ये भरोसा दिला दिया कि उन्हें फिर से सत्ता मिल गई. 2008 में उनके नेतृत्व में बीजेपी फिर से जीत गई.

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शिवराज अपने को बच्चों का मामा और किसान पुत्र कहते हैं. खुद ही कहते हैं कि मजदूरों और किसानों की तकलीफें देखकर राजनीति में आए. 5 मार्च 1959 प्रेमसिंह चौहान और सुंदरबाई चौहान के यहां उनका शिवराज सिंह चौहान का जन्म हुआ. सन् 1975 में भोपाल के मॉडल हायर सेकेण्डरी स्कूल के छात्रसंघ अध्यक्ष बन गए. स्नातकोत्तर (दर्शनशास्त्र) तक स्वर्ण पदक के साथ शिक्षा. आपातकाल का विरोध किया और 1976-77 में भोपाल जेल में रहे. सन 1977-78 में अखिल भारतीय विधार्थी परिषद के संगठन मंत्री. सन 1978 से 1980 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मध्य प्रदेश के संयुक्त मंत्री रहे. 1984-85 में भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े. 1988 से 1991 तक युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे.

1990 में पहली बार शिवराज सिंह चौहान बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने. एक साल बाद ही 1991 में विदिशा से सांसद बन गए. 1992 में साधना सिंह के साथ विवाह हुआ. सन् 1992 से 1996 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति, 1993 से 1996 तक श्रम और कल्याण समिति तथा 1994 से 1996 तक हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य रहे. 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की लहर चल रही थी, उस समय वह 11वीं लोकसभा के लिए विदिशा से फिर से सांसद बने. 1998 में फिर चुनाव हुए और वह विदिशा से तीसरी बार 12वीं लोकसभा के लिए सांसद चुने गए. 1999 में विदिशा से चौथी सांसद निर्वाचित हुए.  

सन् 2000 से 2003 तक भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. इस दौरान वे सदन समिति (लोक सभा) के अध्यक्ष तथा भाजपा के राष्ट्रीय सचिव रहे.  2004 में शिवराज सिंह चौहान पांचवीं बार विदिशा से 14वीं लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुए.  2005 में जब मप्र बीजेपी उथल पुथल के दौर से गुजर रही थी, उस समय उन्हें पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया. 29 नवम्बर 2005 को राज्य की बागडोर उनके हाथ में आ गई. उन्हें बीजेपी को फिर से सत्ता में वापस लाने और पार्टी को पटरी पर लाने के लिए सिर्फ 3 साल मिले. लेकिन उन्होंने जनता की नब्ज पकड़ ली और 2008 में हुए चुनाव में दूसरी बार फिर विजयी हुए.

2013 में भी जब बीजेपी को सत्ता हासिल किए हुए 10 साल हो चुके थे, उस समय लगा कि शिवराज सरकार नहीं बचा पाएंगे, लेकिन 2013 में बीजेपी ने सभी तथ्यों को झुठलाते हुए 165 सीटों पर जीत हासिल कर ली. वह बीजेपी के दूसरे सबसे ज्यादा लगातार लंबे समय तक सीएम रहने वाले नेता हैं.

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