बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में आने वाले इस गांव में बुजुर्गों ने कभी लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या की नौबत नहीं आने दी. यहां के बुजुर्ग कहते हैं कि अगर बेटे भाग्य से जन्म लेते हैं तो बेटियां सौभाग्य से जन्म लेती हैं.
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टीकमगढ़ः मध्य प्रदेश में पुरुष-महिला लिंगानुपात एक हजार पुरुषों के मुकाबले 931 है. इसी प्रदेश में एक हरपुरा मड़िया गांव भी है. जहां बेटियों के जन्म पर गांवभर में जश्न मनाया जाता है, बधाइयां दी जाती हैं. गांव की महिलाएं जमकर नाच-गाना करते हुए बेटी के अच्छे भविष्य की कामना करती हैं. 2107 की आबादी वाले इस गांव में 1000 पुरुषों पर 1107 महिलाएं हैं.
यहां बेटियां 'बोझ' नहीं 'सौभाग्य' है
गांव में हर पेड़ और दीवारों पर बेटियों के नाम लिखे गए हैं. बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले में आने इस गांव में बुजुर्गों ने कभी लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या की नौबत नहीं आने दी. गांव की सुधा चौबे कहती है, एक और जहां कई इलाकों में बेटियों को बोझ मानकर जन्म के बाद ही उन्हें मारने की सोच जिंदा है. वहीं उन्होंने अपनी बेटियों को बेटों की तरह परवरिश दी. उनकी सात बेटियां विवाह के बंधन में बंधकर दूसरे परिवारों की इज्जत बढ़ाने में योगदान दे रही हैं.
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जिले के मुकाबले गांव की स्थित बेहतर
टीकमगढ़ जिले का लिंगानुपात एक हजार पुरुषों पर 901 महिलाओं का है, जबकि गांव की स्थिति ठीक विपरीत है. गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि बेटे अगर भाग्य से घर में पैदा होते हैं तो बेटियां सौभाग्य से जन्म लेती हैं. गांव के कई परिवारों में महिलाओं का वर्चस्व आज भी बरकरार है.
'बेटियों के गांव' में महिलाओं की बड़ी इज्जत
गांव में कई परिवार ऐसे हैं, जहां बेटा तो एक है, लेकिन बेटियां पांच से भी ज्यादा. बेटी के जन्म पर गांवभर में बधाइयां दी जाती हैं, महिलाएं बेटी के घर जाकर नाच-गाना करतीं और लड़की के मंगल भविष्य की दुआएं देती हैं. बेटी का कहीं भी रिश्ता तय होने से पहले लड़के के बारे में सलाह ली जाती, उसके परिवार की जानकारी भी निकाली जाती. इन्हीं कुछ कारणों से गांव को 'बेटियों का गांव' भी कहा जाता है.
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साक्षरता दर अच्छी, लेकिन सुविधाओं का अभाव
लड़कियों की शिक्षा के मामले में गांव में जागरूकता है, यहां महिलाओं की साक्षरता दर 85 प्रतिशत है. लेकिन शिक्षा के लिए सुविधाओं की बात करें तो गांव में आठवीं तक ही स्कूल है. विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए पास के खिरिया गांव में हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है. गांव के बुजुर्गों का मानना है कि गांव में बेटियों को पूरा मान-सम्मान मिलता है, सरकार को चाहिए कि वो भी उनकी योजनाओं का लाभ उनके गांव तक पहुंचाए.
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