आधुनिक समाज में हो रही आधुनिक शादियों और बैंड बाजों के प्रयोग पर पाबंदी को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने मंथन किया. जिसमें उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय में शरिया कानून के तहत बैंड बाजा और महिला-पुरूषों का नाचना गाना वर्जित है.
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कर्ण मिश्रा/जबलपुर: आधुनिक समाज में हो रही आधुनिक शादियों और बैंड बाजों के प्रयोग पर पाबंदी को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने मंथन किया. इसके बाद उन्होंने कहा है कि मुस्लिम समुदाय में शरिया कानून के तहत शादियों में बैंड बाजा और दूल्हा-दुल्हन का नाचना गाना वर्जित है. यानी इसे शरिया के खिलाफ माना गया है. बावजूद इसके लोग आधुनिकता और दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा के चक्कर में शादी, निकाह में फिजूलखर्ची कर रहे हैं. जबलपुर में मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं ने इस पर पाबंदी लगाने पर विचार विमर्श किया है.
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जबलपुर के रानीताल ईदगाह में मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं की एक अहम बैठक हुई, जिसमें नशाखोरी सहित तमाम खामियों और कमियों को दूर करने पर विचार विमर्श किया गया. इस बैठक में सबसे ज्यादा चर्चा शादी-विवाह एवं अन्य पारिवारिक कार्यक्रमों में होने वाले खर्चों की रही. धर्मगुरुओं ने कहा कि शरिया कानून के तहत मुस्लिम समाज में शादी-विवाह सादगी के साथ होने चाहिए, जिसमें परिवार के सदस्य मौजूद रहें और दोनों पक्ष सहमति से परिजनों के साथ सहभोज कर विवाह संपन्न कराएं.
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मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा कि बीते वर्षों में शादियों में सामूहिक भोज, बैंड बाजा, डीजे और अन्य चीजों का चलन शुरू हो गया है. इसमें लाखों रुपए खर्च होते हैं. इन सबके बिना भी शादियां हो सकती हैं. ऐसे में फिजूलखर्च न करके परिवार की संपत्ति को बचाया जा सकता है और नव विवाहित जोड़े के भविष्य के लिए उस पैसे का उपयोग किया जा सकता है.
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प्रतिस्पर्धा में बढ़ता है कर्ज
मौलाना मो. मुशाहिद रजा ने कहा कि कई बार दूसरे से प्रतिस्पर्धा के चक्कर में लोग कर्ज लेकर शादियां करते हैं. परिवार का मुखिया कर्ज के बोझ के तले दब जाता है. बैठक में अभी सुझाव लिए गए हैं जिन पर विचार किया जा रहा है और जल्द ही मुफ्ती ए आजम इस संबंध में पूरी गाइड लाइन जारी करेंगे.
क्या होता है शरीयत कानून?
दरअसल शरीयत उन नियमों का एक समूह है जिससे पूरी दुनिया में इस्लामिक समाज संचालित किया जाता है. शरीयत इस्लाम के भीतर सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से जीवन जीने की व्याख्या करता है. इसमें बताया जाता है कि एक मुसलमान को कैसे अपना जीवन जीना चाहिए.
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