सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकार से पूछा है कि देश में कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सरकार से पूछा है कि देश में कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा. कोर्ट ने देश में आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली असमानता को लेकर भी चिंता प्रकट की है.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ (Supreme Court) ने शुक्रवार को मराठा आरक्षण कोटे (Maratha Reservation Case) की सुनवाई की. इस संविधान पीठ में जस्टिस अशोक भूषण के अलावा जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस रविंद्र भट शामिल हैं. इस दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कोर्ट में पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि मराठा कोटे के मामले में कोर्ट को मंडल मामले में दिए गए फैसले पर बदली हुई परिस्थितियों में पुनर्विचार करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि मंडल मामले से संबंधित फैसला 1931 की जनगणना पर आधारित था. ऐसे में न्यायालयों को बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ देनी चाहिए.
मराठा समुदाय को आरक्षण की पहल के पक्ष में दलील देते हुए रोहतगी ने मंडल मामले में फैसले के विभिन्न पहलुओं का हवाला दिया. इस फैसले को इंदिरा साहनी मामला के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों (ईब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र सरकार का फैसला भी 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता है. इस पर पीठ (Supreme Court) ने टिप्पणी की, ‘यदि 50 प्रतिशत की सीमा या कोई सीमा नहीं रहती है, जैसा कि आपने सुझाया है, तब समानता की क्या अवधारणा रह जाएगी. आखिरकार, हमें इससे निपटना होगा. इस पर आपका क्या कहना है. इससे पैदा होने वाली असमानता के बारे में क्या कहना चाहेंगे. आप कितनी पीढ़ियों तक इसे जारी रखेंगे. ’
इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा कि मंडल फैसले पर पुनर्विचार करने की कई वजह हैं. पहली वजह ये है कि वह फैसला 1931 की जनगणना पर आधारित था. जबकि अब आबादी कई गुना बढ़ा कर 135 करोड़ पहुंच गई है. इस पर संविधान पीठ (Supreme Court) ने कहा कि देश की आजादी के 70 साल गुजर चुके हैं और राज्य सरकारें कई सारी कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं. ऐसे में क्या ये स्वीकार किा जा सकता है कि कोई विकास नहीं हुआ है, कोई पिछड़ी जाति आगे नहीं बढ़ी है.’न्यायालय ने यह भी कहा कि मंडल से जुड़े फैसले की समीक्षा करने का यह उद्देश्य भी है कि पिछड़ेपन से जो बाहर निकल चुके हैं, उन्हें अवश्य ही आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाना चाहिए.
इस पर रोहतगी ने दलील दी, ‘हां, हम आगे बढ़े हैं, लेकिन ऐसा नहीं है कि पिछड़े वर्ग की संख्या 50 प्रतिशत से घट कर 20 प्रतिशत हो गई है. देश में हम अब भी भूख से मर रहे हैं. मैं यह नहीं कहने की कोशिश कर रहा हूं कि इंदिरा साहनी मामले में फैसला पूरी तरह से गलत था और इसे कूड़ेदान में फेंक दिया जाए. मैं यह मुद्दा उठा रहा हूं कि 30 साल हुए हैं, कानून बदल गया है, आबादी बढ़ गई है. पिछड़े लोगों की संख्या भी बढ़ गई है.’
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उन्होंने कहा कि ऐसे में जब कई राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक है, तब यह नहीं कहा जा सकता कि यह ज्वलंत मुद्दा नहीं है और 30 साल बाद इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं है. इस मामले में शुक्रवार को बहस अधूरी रही और अगली डेट सोमवार की लगा दी गई. बताते चलें कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने मराठा आरक्षण (Maratha Reservation Case) देने के फैसले को कायम रखा है, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपील दायर की गई है.
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