इस साल बिना पटाखों के मनानी होगी दिवाली, बाजार में नहीं आ पाएंगे पटाखे
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इस साल बिना पटाखों के मनानी होगी दिवाली, बाजार में नहीं आ पाएंगे पटाखे

पर्यावरण मंत्रालय ने ग्रीन पटाखों की मंजूरी दी है, लेकिन लाइसेंस की प्रक्रिया में काफी वक्त लगेगा. इसलिए, पटाखों के बिना दिवाली मनानी होगी.

ग्रीन पटाखे में कम धुआं निकलता है. (प्रतीकात्मक फोटो)

नई दिल्ली: इस साल आपकी दीवाली ग्रीन नहीं होगी ये बात पर्यावरण मंत्रालय ने साफ कर दी है. क्योंकि, ग्रीन पटाखों को हरी झंडी तो मिल गई है, लेकिन अब तक वे मैन्युफैक्चरर के हाथ नहीं आए हैं तो कस्टमर को कहां से मिलेंगे. अभी तक लाइसेंस का काम पूरा नहीं हुआ है. इससे साफ है कि इस बार आप पटाखे नहीं फोड़ पाएंगे. दीवाली में अब केवल एक हफ्ते का वक्त रह गया है. इतनी जल्दी लाइसेंस की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती है. 

पटाखा निर्माताओं को नए सिरे से लाइसेंस लेना होगा
CSIR ने एक साल की रिसर्च के बाद ग्रीन पटाखे तो बनाएं हैं, लेकिन इस साल ये बाजार में नहीं दिखेंगे. इसके लिए पटाखा निर्माताओं को नए सिरे से लाइसेंस लेना होगा जिसकी जिम्मेदारी पेसो को सौंपी गई है. लेकिन, एक हफ्ते में लाइसेंस की प्रक्रिया तो किसी कीमत में पूरी नहीं हो पाएगी. इसलिए, अगले साल तक ही बाजार में ये पटाखे दिख पाएंगे.

पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा पॉल्यूशन को बढ़ाने में पटाखों की धुआं का काफी बड़ा योगदान होता है. पर्यावरण मंत्रालय नीरी और सीएसआईआर के साथ मिलकर पिछले दो साल से कम धुंआ और आवाज पैदा करने वाले पटाखों की रिसर्च में जुटा है. नीरी ने इसे बना लिया है, लेकिन अब काम पेसो का है कि वो मैन्युफैक्चररको लाइसेंस दे.

रूटीन पटाखे और ग्रीन पटाखों में क्या होगा फर्क? 
ग्रीन पटाखे मतलब जिससे कम धुआं निकलेगी, आवाज कम होगी और जो पॉल्यूशन कम फैलाएंगे. केमिकल कंपोजिशन में बदलाव किया गया है. बता दें, पटाखे में पोटैशियम, बेलियम, ऐल्युमिनियम और कार्बन से सबसे ज्यादा खतरनाक धुआं निकलती है. अब पटाखों में इनके विकल्प का इस्तेमाल हुआ है. जैसे फ्लाई एश, मैग्नेशियम और पटाशियम कम मात्रा में जो टॉक्सिक न हो, कार्बन बिल्कुल नहीं होगा और एल्युमिनियम का इस्तेमाल भी नहीं होगा

दिखने में और जलाने में वैसे ही लगेंगे जैसे रूटीन पटाखे
अब ई-क्रैकर्स का इस्तेमाल हो सकता है. मतलब, लड़ियों में लाइट लगी हुई होगी. मैन्युफैक्चरर का खर्चा भी कम होगा. इसके लिए अलग से प्लांट लगाने की जरूरत नहीं होगी. बता दें, ग्री क्रैकर्स से 30 फीसदी कम 2.5 PM निकलेगा. इस पटाखे में इमिशन भी कम होगा.

भारत में पहली इमिशन टेस्टिंग लैब पुणे में बनने जा रही है. इस उद्योग से 5 लाख लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है और ये 6 हजार करोड़ की इंडस्ट्री है. सीएसआईआर और नीरी ने पूरे प्रोजेक्ट में 60 लाख रुपए का निवेश किया है. 

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