Munambam waqf dispute: एक ओर वक्फ संशोधन बिल 2024 पर बनी संसदीय समिति इस पर काम कर रही है, दूसरी ओर केरल के एर्नाकुलम जिले में राज्य के वक्फ बोर्ड और भूमि पर लंबे समय से स्थापित कब्जेदारों के बीच लगभग 404 एकड़ भूमि पर विवाद ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. जिसे मुनंबम वक्फ भूमि विवाद कहा जा रहा है.
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Waqf land dispute in Munambam: केरल के एर्नाकुलम के मुनंबम गांव में वक्फ बोर्ड द्वारा 404 एकड़ जमीन पर दावा करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है. इसाइयों के प्रार्थना स्थल चर्चों में विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रार्थनाएं की जा रही हैं. ये ऐसा मामला है, जिसमें इसाई और हिंदू दोनों मिलकर अपनी नाराजगी जताते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
भाजपा ने बनाया मुद्दा
जानकारों के मुताबिक देशभर में वक्फ बोर्ड की बेतुकी दलीलों और दावों को लेकर माहौल वैसे ही गर्म बना हुआ है. संसद की एक समिति संशोध को लेकर सुझाव ले रही है. इस बीच भाजपा की केरल इकाई ने इसे आगामी उप-चुनावों में एक चुनावी मुद्दा बना दिया है. केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से वक्फ को समझाने और उसकी मांग वापस लेने के लिए कहने की अपील की गई है.
मुनंबम भूमि का संक्षिप्त इतिहास
'इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू और इसाई यहां 150 से ज्यादा सालों से मिलजुलकर रह रहे थे. ऐसे में वक्फ के इस लैंड पर दावा ठोकने से तनातनी बढ़ गई है. वक्फ के फरमान के विरोध में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. वक्फ बोर्ड वालों के कथित दावे वाली जमीन केरल के एर्नाकुलम जिले में वाइपिन द्वीप के उत्तरी किनारे पर, मुनंबम के कुझुपिल्ली और पल्लीपुरम गांवों तक फैली है. प्रशासन की पैमाइश में ये इलाका करीब 404 एकड़ का है. ये जमीन ऐतिहासिक और पारंपरिक रूप से मछली पकड़ने वाले समुदायों का घर रही है. आज की तारीख में यहां पर करीब 604 परिवार रह रहे हैं. इनमें से करीब 400 ईसाई हैं जो मुख्य रूप से पिछड़े लैटिन कैथोलिक समुदाय से हैं, जबकि बाकी पिछड़े हिंदू हैं.
1902 में क्या हुआ था? पहली कानूनी लड़ाई
इस भूमि विवाद की उत्पत्ति की जड़े 1902 से मिलती है. तब पूर्ववर्ती त्रावणकोर के शाही परिवार ने यहां की 404 एकड़ जमीन, जो पहले से ही मछली पकड़ने वाले समुदायों के कब्जे में थी, वो अब्दुल सथार मूसा सैत नाम के कारोबारी को पट्टे पर दे दी थी, जो कोच्चि के पास मट्टनचेरी में बस गया था. 1948 में उनके उत्तराधिकारी और दामाद मोहम्मद सिद्दीक सैत ने पट्टे की जमीन का बैमाना अपने नाम करा लिया. कुछ समय बाद उन्होंने ये जमीन कोझिकोड के फारूक कॉलेज की मैनेजमेंट कमेटी को दे दी. जिसकी स्थापना 1948 में मालाबार (उत्तरी केरल) के मुसलमानों को शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने के लिए की गई थी.
1 नवंबर, 1950 को कोच्चि के एडापल्ली में उप-रजिस्ट्रार कार्यालय में एक वक्फ डीड रजिस्टर्ड हुई. जिसे सैत ने फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के पक्ष में लिखवाया था. वक्फ डीड एक दस्तावेज है जो एक वक्फ संपत्ति को स्थापित करता है, उसका काम देखता है, जो इस्लामी कानून के तहत धर्मार्थ या धार्मिक उद्देश्यों के लिए स्थायी रूप से समर्पित है.
पहली कानूनी लड़ाई से 2024 तक क्या हुआ?
फारूक कॉलेज के प्रबंधन को लगभग एक दशक बाद भूमि का स्वामित्व विलेख प्राप्त हुआ. और 1960 के दशक के उत्तरार्ध में भूमि के कब्जेदारों के बीच कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जिनके पास पीढ़ियों से वहां रहने के बावजूद स्वामित्व साबित करने के लिए कानूनी दस्तावेज नहीं थे, और कॉलेज प्रबंधन, जो इन कब्जेदारों को हर कीमत पर बेदखल करना चाहता था.
आखिरकार अदालत के बाहर तैयार हुए एक समझौते में, कॉलेज प्रबंधन ने अपने कब्जेदारों को बाजार दर पर जमीन बेचने का फैसला किया. दस्तावेज़ बताते हैं कि उस सेल डीड यानी विक्रय पत्र में, कॉलेज प्रबंधन ने यह उल्लेख नहीं किया कि संबंधित भूमि वक्फ की संपत्ति थी, जो शिक्षा के उद्देश्य से कॉलेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष को दी गई थी. इसके बजाय उन्होंने कहा कि संपत्ति 1950 में एक उपहार में यह जमीन मिली थी.
निसार आयोग और नये सिरे से विवाद
कई शिकायतों के मद्देनजर, 2008 में केरल की तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार ने रिटायर्ड जिला न्यायाधीश एम ए निसार के नेतृत्व में जांच आयोग बनाया. आयोग ने 2009 में रिपोर्ट सौंपी, जिसमें मुनंबम की जमीन को वक्फ प्रॉपर्टी मानते हुए कहा गया कि कि कॉलेज मैनेजमेंट ने बोर्ड की सहमति के बिना इसकी बिक्री को मंजूरी दी थी. ऐसे में इसकी वसूली के लिए कार्रवाई की अनुशंसा की जाती है.
2019 में, वक्फ बोर्ड ने स्वत: संज्ञान लेते हुए वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के अनुसार मुनंबम लैंड को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया. बोर्ड ने राजस्व विभाग को भूमि के वर्तमान कब्जेदारों से भूमि कर (प्रापर्टी टैक्स) स्वीकार नहीं करने का निर्देश दिया (जो कई वर्षों से कर चुका रहे थे). 2022 में एक ट्विस्ट आया और मामला केरल हाई कोर्ट पहुंचा. HC ने फिलहाल राज्य सरकार के फैसलों पर रोक लगा दी. वर्तमान में, इस विवाद के संबंध में भूमि के कब्जेदारों के साथ-साथ वक्फ संरक्षण समिति की ओर से एक दर्जन से अधिक अपीलें कोर्ट में पेंडिंग हैं.