बांदीपोरा का नाम सुनते ही आपको उत्तरी कश्मीर का वो जिला ध्यान आता होगा जो आए दिन आतंक की मार झेलता है. ये इलाका घुसपैठ और आतंकवादियों की पनाह के लिए सही जगह माना जाता है.
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श्रीनगर: कभी कर्फ्यू, कभी गोलीबारी, कभी आतंकी वारदात, कश्मीर (Kashmir) के हर जिले में ऐसी मुश्किलें जिंदगी का हिस्सा थीं लेकिन अब यहां के लोग उम्मीद और विकास की रोशनी की ओर देखना चाहते हैं. आज कश्मीर के बच्चे कश्मीर का वर्तमान और भविष्य दोनों लिख रहे हैं.
बांदीपोरा का नाम सुनते ही आपको उत्तरी कश्मीर का वो जिला ध्यान आता होगा जो आए दिन आतंक की मार झेलता है. ये इलाका घुसपैठ और आतंकवादियों की पनाह के लिए सही जगह माना जाता है. कुछ दिनों पहले ही बीजेपी नेता वसीम बारी, उनके भाई और पिता की सरेआम हुई हत्या के बाद से यहां आम लोगों में ही नहीं, नेताओं में भी दहशत का माहौल है.
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लेकिन बांदीपोरा की तस्वीर अब बदल रही है. ग्यारहवीं क्लास में पढ़ने वाली सबा फरहत ने मार्शल आर्टस की ट्रेनिंग ली है, वो अच्छे-अच्छों को धूल चटा सकती है. ये स्टूडेंट तिरंगे की शान के लिए देश की ओर से खेलना चाहती है. सबा ने आर्मी गुडविल स्कूल से दसवीं की पढ़ाई की है, उसी दौरान सबा ने ट्रेनिंग भी लेनी शुरू की. स्टेट की ओर से जूनियर चैंपियनशिप के लिए गईं सबा ने सीनियर को हराकर पहले ही इलाके में मिसाल कायम की है. सबा चाहती हैं कि कश्मीर की लड़कियां बाहर निकलें और नए कश्मीर की नई पहचान लिखें.
शेख अदनान और अहमद फराज भी बांदीपोरा के ही रहने वाले हैं. ये दोनों देश के गौरव के लिए खेलना चाहते हैं. इनको ना अनुच्छेद 370 से मतलब है और ना ही सियासत से. इन्हें केवल कश्मीर और भारत की नई पहचान से सरोकार है. छोटे बच्चे ये बड़ी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं.
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बांदीपोरा में फैजल अली एकेडमी के कोच फैजल अली ने कहा कि कश्मीर जैसे इलाके में बच्चों को स्टेडियम तक लाना आसान काम नहीं है. इनके संघर्ष बाकी राज्यों के बच्चों से बिल्कुल अलग हैं लेकिन इस एकेडमी ने तय कर लिया है कि अब कश्मीर दहशत नहीं खेलों की उपलब्धियों के लिए जाना जाएगा.
उन्होंने आगे कहा कि आज भी यहां डरे सहमे लोग अपने काम के लिए घरों से निकलते हैं लेकिन यहां के लोगों ने हार नहीं मानी है. कोरोना का खौफ कम होते ही ये टीम कराटे, ताइक्वांडो जैसे खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना लोहा मनवाने को बेताब है.
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