NSA Ajit Doval: अजीत डोभाल को भारत का जेम्स बॉन्ड कहा जाता है. 1968 बैच के केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे अजीत डोभाल 1972 में खुफिया एजेंसी रॉ से जुड़ गए थे. अजीत डोभाल को भी किसी बात से डर लगता है? इस सवाल का जवाब देते हुए डोभाल ने कहा था- 'भारत अपने लोगों से ज्यादा हारा है, आज भी यह शंका रहती है.'
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Ajit Doval Shaurya Doval: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एवं भारत के सबसे स्पेशल स्पाई अजित डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल ने कहा है कि बचपन में उन्हें कभी नहीं पता चल पाया कि उनके पिता एक IPS हैं और उन्हें लगता था कि वो विदेश सेवा में हैं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता एवं विचार मंच ‘इंडिया फाउंडेशन’ के संस्थापक शौर्य डोभाल ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि उन्हें अपने पिता के गुप्त अभियानों के बारे में बहुत बाद में पता चला. बैंकर से राजनीतिक विचारक बने शौर्य डोभाल ने एक सवाल के जवाब में कहा, 'बचपन में मुझे यह भी नहीं पता था कि वह एक आईपीएस (IPS) अधिकारी हैं...मुझे यह बहुत बाद में पता चला जब मैं भारत वापस आया.'
अजीत डोभाल को जिस ऑपरेशन की जिम्मेदारी दी गई, उन्होंने उसे बखूबी अंजाम दिया. कट्टरपंथियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाना हो, पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना हो या आतंकवाद का खात्मा या फिर चालबाज चीन की निगरानी. हर मामले में डोभाल का डंका गूंजा. डोभाल सात साल तक पाकिस्तान में अंडरकवर एजेंट की तरह काम करते रहे और किसी को भनक तक नहीं लगी. उनकी यही खूबी उन्हें भारत का 'जेम्स बॉन्ड' 007 बनाती है.
शौर्य डोभाल ने हल्के फुल्के अंदाज में कहा कि एक बार उन्होंने अपने पिता के एक सहकर्मी से पाकिस्तान की ISI की तुलना में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) की गतिविधियों के बारे में कम खबरें आने के बारे में सवाल किया था. शौर्य डोभाल ने कहा कि इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि ‘चूंकि आपको पता नहीं चल पाता है, इसी वजह से हम अपना काम कर पाते हैं.’
भारत के विशिष्ट जासूस की पहचान अर्जित करने वाले अजित डोभाल वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) हैं और इस पद पर उनका यह तीसरा कार्यकाल है.
केरल कैडर के 1968 बैच के आईपीएस अधिकारी अजित डोभाल भारत के दूसरे सबसे बड़े शांतिकालीन वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित होने वाले पहले पुलिसकर्मी भी हैं. रूस-चीन हो या पाकिस्तान-अमेरिका डोभाल का सिक्का हर जगह चलता है. 1968 बैच के केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे अजीत डोभाल 1972 में खुफिया एजेंसी रॉ से जुड़ गए थे.
डोभाल के पेशेवर जीवन में कई खुफिया अभियानों में मिली सफलताएं शामिल हैं. इनमें मिजो नेशनल आर्मी के भीतर अपनी पैठ बनाने से संबंधित खुफिया अभियान तथा म्यांमार और चीन से संबंधित महत्वपूर्ण अभियान शामिल हैं. ऑपरेशन ब्लैक थंडर के दौरान भी अजित डोभाल की केंद्रीय भूमिका रही थी जो विवादास्पद आपरेशन ब्लू स्टार के बाद हुआ था. उन्होंने ‘इंडियन एयरलाइंस’ उड़ान 814 अपहरण घटनाक्रम के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.
अपने पिता के गोपनीय करियर पर चर्चा करते हुए, शौर्य ने कहा, 'मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी....ये साफ है कि अगर एक ‘सुपर’ जासूस के बच्चों को उसके काम के बारे में पता होगा, तो वह भला किस प्रकार का ‘सुपर’ जासूस हुआ?’
उन्होंने अपने पिता के खुफिया करियर के बारे में कहा, ‘आज तक, मुझे नहीं पता कि वह क्या करते हैं, घर पर कामकाज को लेकर चर्चा की कोई संस्कृति (चलन) नहीं है. हालांकि वह मुझसे हर बात के बारे में पूछते हैं और शायद वह जानते हैं कि मैं क्या करता हूं.'
शौर्य की बेबाक टिप्पणियों से डोभाल परिवार के जीवन तथा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े एक उच्च-स्तरीय अधिकारी के करियर और उसके पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन की जटिलताओं की झलक मिलती है.
भारत में तैनात अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने बीते साल अजित डोभाल की प्रशंसा में उन्हें ‘पूरे विश्व की निधि’ कहा था. अजित डोभाल के उत्तराखंड के एक छोटे से गांव की मामूली पृष्ठभूमि से इस महत्वपूर्ण स्तर तक पहुंचने की ओर ध्यान दिलाते हुए अमेरिका के राजदूत ने कहा था, ‘भारत के NSA ना केवल राष्ट्रीय निधि हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय (पूरी दुनिया की) निधि’ भी हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में अध्ययन कर चुके शौर्य डोभाल के पास लंदन बिजनेस स्कूल और शिकागो विश्वविद्यालय से संयुक्त एमबीए की डिग्री है. वह निवेश बैंकिंग की अपनी शानदार नौकरी छोड़कर वर्ष 2009 में इंडिया फाउंडेशन की स्थापना के लिए भारत वापस आ गए थे.
उन्होंने कहा, 'यह एक ऐसे देश में एक अच्छी शुरुआत थी, जिसमें राजनीतिक ‘थिंक टैंक’ की संस्कृति नहीं थी. मैं अपने जीवन में केवल व्यावसायिक गतिविधियां ही नहीं चाहता था, इसलिए मैंने देश के लिए कुछ करने के मकसद से यह छोटी सी कोशिश की.'
इंडिया फाउंडेशन के सरकार के साथ संबंधों और थिंक टैंक (विचार मंच) के वित्तपोषण मॉडल के बारे में पूछे गए एक सवाल पर शौर्य ने कहा, 'हमारा सरकार के साथ बहुत अधिक संबंध नहीं है, पार्टी (बीजेपी) के साथ ज्यादा है और वह भी एक अनौपचारिक संबंध है.'
उन्होंने कहा, 'हमारी फंडिंग किसी भी अन्य थिंक टैंक की तरह है, कभी-कभी हमें यह निजी संगठनों से मिलता है और कुछ बार सरकार से समारोह आदि आयोजित करने के लिए मिलता है तथा हम अध्ययन रिपोर्ट लिखते हैं. इसलिए हमारे वित्तपोषण में कई चीजों का योगदान होता है.'
अजीत डोभाल को भारत का जेम्स बॉन्ड (indian james bond) कहा जाता है. 1968 बैच के केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे अजीत डोभाल 1972 में खुफिया एजेंसी रॉ से जुड़ गए थे. 'इतिहास उसे याद रखता है जो पावरफुल था.', डोभाल का ये कोट लोगों को बहुत पसंद आता है. अजीत डोभाल को भी किसी बात से डर लगता है? इस सवाल का जवाब देते हुए डोभाल ने कहा था- 'भारत अपने लोगों से ज्यादा हारा है, आज भी यह शंका बनी रहती है. जब-जब आक्रमण वेस्ट से हुआ चाहे वह पर्शियंस थे, हूण, मंगोल, मुगल आए. वे तो थोड़े से लोग आए थे. उनके लश्कर तब कहां बने? लश्कर बने काबुल में, उस समय तक इस्लामीकरण नहीं हुआ था, लाहौर और सरहिंद में.... हिंदुस्तानियों को हराया है तो हमेशा हिंदुस्तान के लोगों ने. साथ नहीं दिया देश ने और दर्द है तो सिर्फ इसी बात का.'
(एजेंसी इनपुट)