कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने कहा, ‘लोकतंत्र है तो राजनीति करने की आजादी सबको है. लेकिन क्या किसान को मारकर राजनीति की जाएगी, किसान का अहित करके राजनीति की जाएगी, देश की कृषि अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर अपने मंसूबों को पूरा किया जाएगा. इस पर चर्चा की जरूरत है'.
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नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने शनिवार को कहा कि सरकार आंदोलनकारी किसानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए कृषि कानूनों में संशोधन के लिए तैयार है. कृषि मंत्री ने गंभीर मुद्दे को लेकर राजनीति करने और किसानों के हित को नुकसान पहुंचाने के लिए विपक्षी दलों पर हमला किया. एग्रीविजन के 5वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि सरकार ने किसान संगठनों के साथ 11 दौर की वार्ता की है. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार कई बार कानून में संशोधन की पेशकश तक कर चुकी है.
कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि सरकार ने कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिए ये फैसला लिया था. केंद्र ने किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की आजादी देने के लिए तीन कानूनों को पास किया ताकि उन्हें फसलों का उचित निर्धारित मूल्य मिल सके. तोमर ने कहा, ‘मैं मानता हूं कि लोकतंत्र में असहमति का अपना स्थान है, विरोध का भी स्थान है, मतभेद का भी अपना स्थान है. लेकिन क्या विरोध इस कीमत पर किया जाना चाहिए कि देश का नुकसान करें.’
केंद्रीय मंत्री ने ये भी कहा, ‘लोकतंत्र है तो राजनीति करने की आजादी सबको है. लेकिन क्या किसान को मारकर राजनीति की जाएगी, किसान का अहित करके राजनीति की जाएगी, कृषि अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर अपने मंसूबों को पूरा किया जाएगा, इस पर निश्चित रूप से नई पीढ़ी को विचार करने की जरुरत है.’ कृषि मंत्री ने कहा कोई भी इस पर बात करने को तैयार नहीं है कि आखिर विरोध प्रदर्शन किसानों के हित में कैसे हो सकते हैं.
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तोमर ने खेद व्यक्त किया कि किसान यूनियनों के साथ-साथ विपक्षी दल भी इन कानूनों के प्रावधानों में दोष बताने में विफल रहे हैं. तोमर ने जोर देकर कहा कि कानूनों में संशोधन के सरकार के प्रस्ताव का मतलब यह नहीं है कि इन कानूनों में कोई कमी है. मंत्री ने कहा कि हमेशा बड़े सुधारों का विरोध होता है, लेकिन इरादे और नीतियां सही होने पर लोग बदलाव स्वीकार करते हैं.
सरकार ने 12-18 महीनों के लिए कानूनों के निलंबन और समाधान खोजने के लिए एक संयुक्त पैनल गठित करने सहित कई रियायतों की पेशकश की है, लेकिन यूनियनों ने इसे अस्वीकार कर दिया है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर दो महीने के लिए रोक लगाते हुए समिति से सभी हितधारकों से राय मशविरा करने के बाद रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था.
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