Delhi-NCR Pollution: दिवाली से पहले दिल्ली की आबोहवा का निकला 'दिवाला', प्रदूषण का स्तर बेहद खराब
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Delhi-NCR Pollution: दिवाली से पहले दिल्ली की आबोहवा का निकला 'दिवाला', प्रदूषण का स्तर बेहद खराब

Delhi Pollution: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण एक ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ है क्योंकि दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही है. हर साल 88 लाख असमय मौतें खराब हवा में सांस लेने से हो रही हैं 

Delhi-NCR Pollution: दिवाली से पहले दिल्ली की आबोहवा का निकला 'दिवाला', प्रदूषण का स्तर बेहद खराब

Delhi Pollution Level: इस वक्त दिल्ली एनसीआर के ज्यादातर हिस्सों में धुंआं और धूल नजर आ रहा है- जैसे जैसे ठंड बढ़ेगी इस तस्वीर का और खराब होना तय माना जा रहा है. धूल कम करने के सभी तरीके कम पड़ने लगे हैं.

सेंट्रल कमेटी फॉर एयर क्वालिटी (Central Commission for Air quality) की नई जानकारी में दिल्ली एनसीआर को लोगों को सावधान रहने के लिए कहा गया है. दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए बने इस कमीशन के मुताबिक राजधानी में प्रदूषण बेहद खराब स्तर पर पहुंच गया है.

5 अक्टूबर को जब प्रदूषण का स्तर ‘खराब’ यानी Poor  की कैटेगरी में पहुंचा था तब समूचे दिल्ली एनसीआर में ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान को प्रभावी कर दिया गया था - लेकिन इसका अमल ठीक से नहीं हो पा रहा है. नतीजा प्रदूषण से होने वाली बीमारियों की शुरुआत हो गई है.

इस वक्त (17/10/22) दिल्ली में एयर क्वालिटी का हाल है -

-आनंद विहार - 215

-लोदी रोड - 235

-नोएडा - 180

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर खराब होते ही GRAP यानी Graded Response Action Plan लागू किया जाना तय है. फिलहाल इसका ‘लेवल-1’ अमल में हैं. इस प्लान के लागू रहते वक्त:-

-500 गज से ज्यादा के प्लॉट पर निर्माण या तोड़ फोड़ दोनों ही नहीं किए जा सकते हैं - जिससे धूल को काबू किया जा सके.

-जहां निर्माण और तोड़फोड़ की इजाजत होती है वहां पूरी तरह से ढक कर ही ये काम किया जा सकता है.

-वाहनों का प्रदूषण सर्टिफिकेट ठीक होना चाहिए.

-रेड लाइट पर गाड़ियों का इंजन बंद होना चाहिए.

-खुले में कूड़ा या पराली जैसा कुछ भी जलाने पर पाबंदी.

-रेगुलर पावर सप्लाई के तौर पर जेनरेटर या डीजी सेट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.

-एंटी स्मॉग गन का प्रयोग होना चाहिए.

-पानी का छिड़काव होता रहना चाहिए.

दिल्ली की एयर क्वालिटी जब तक 200 से 300 के बीच रहेगी - तब तक GRAP का स्टेज 1 लागू रहता है. लेकिन हर वर्ष ये प्रयास नाकाफी साबित होते हैं GRAP लागू होने के बावजूद जगह-जगह निर्माण कार्य चालू है.

सेंट्रल प्लयूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के मुताबिक एयर क्वालिटी का हिसाब किताब ये है:-

AQI - Air quality index

0 - 50 - अच्छा - Good

51-100 - संतोषजनक - Satisfactory

101-200 - मध्यम स्तर Moderate

201-300 खराब  - Poor

301 - 400 बेहद खराब - Very Poor

401 - 500 गंभीर स्तर - Severe

भारतीय मौसम विभाग के Early warning system के मुताबिक दिल्ली में 19 अक्टूबर तक हवा का स्तर खराब की कैटेगरी में रहने वाला है. विभाग के मुताबिक अभी हवा की रफ्तार 4 से 8 किलोमीटर है जो कि बढ़कर 13 किलोमीटर होने का अनुमान है इसलिए 19 अक्टूबर के बाद थोड़े सुधार की उम्मीद की जा सकती है. हालांकि दिल्ली एनसीआर का पिछले कई सालों का इतिहास गवाह है कि सर्दियों में बेहतर हवा वाले दिन नसीब होना मुश्किल ही है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की डिप्टी डायरेक्टर अनुमिता राय चौधरी के मुताबिक प्रदूषण से निपटने के लिए साल के 365 दिन काम करने की जरुरत है.

वायु प्रदूषण एक ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण एक ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ है क्योंकि दुनिया की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही है. हर साल 88 लाख असमय मौतें खराब हवा में सांस लेने से हो रही हैं. लेकिन भारत में अभी तक प्रदूषण को मृत्यु के कारण के तौर पर दर्ज नहीं किया गया है.

हवा का स्तर 300 से ज्यादा होने का मतलब है हम सब के लिए बीमारियों की सौगात - ठंडी हवा में धूल के बारीक कण ठहर जाते हैं जो सांस लेते वक्त नाक से हमारे शरीर में जाते हैं. जिससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ने लगती है.

हवा में धूल के बारीक कण यानी पार्टिकुलेट मैटर 2.5 जितने बारीक हों तो ये हमारे फेफड़ों में अंदर तक चले जाते हैं. पीएम 2.5 तक भारत में धूल के कण मापे जाते हैं. इससे बारीक कणों को नापने का ज़रिया बने तो हमें और बड़े खतरे सामने दिखेंगे. फिलहाल हम ये जानते हैं कि इससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है. खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है. लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है.

कुछ रिसर्च ने ये भी साबित किया है कि धूल के बारीक कण नाक और सांस के जरिए खून में और ब्रेन में घुल जाते हैं. यानी हम क्यों बीमार पड़ रहे हैं ये हवा में हमें दिखता तो है लेकिन सीधे सीधे समझ में नहीं आता.

मास्क लगाने का समय लौट आया है. कोरोना का खतरा तो कम हो गया है लेकिन हवा में मौजूद खतरा लगातार बना हुआ है - उससे बचने के लिए मास्क बेहतर तरीका हो सकता है.

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