Beawar News: राजस्थान में अजमेर के ब्यावर में एक मंदिर में नवरात्रि के दौरान सुबह-शाम आरती के साथ-साथ हवनादि के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. काली माता मंदिर के पुजारी राजेश शर्मा ने बताया कि काली माता की मूर्ति उनके पूर्वज सोजत सिटी के सेवको के मौहल्ले में रहने वाले चतुर्भुज शर्मा के मकान में खुदाई के दौरान करीब 125 वर्ष पूर्व निकली थी.
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Beawar News: देशभर में शक्ति आराधना का पर्व जारी है. इस मौके पर देशभर के शक्तिपीठों में माता रानी की पूजा-अर्चना की जा रही है. देशभर में स्थापित इन शक्तिपीठों का अपना अलग ही इतिहास है. इतिहास के अनुसार इन शक्तिपीठों का विशेष महत्व है. शक्तिपीठ की स्थापना के इतिहास की कड़ी में आज हम आज बात करेंगे, ब्यावर शहर के सुरजपोल गेट बाहर स्थित जन-जन की आस्था के केन्द्र शक्तिपीठ काली माता मंदिर की.
मंदिर में नवरात्रि के दौरान सुबह-शाम आरती के साथ-साथ हवनादि के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें बड़ी संख्खया में श्रद्धालु उपस्थित होकर धर्म लाभ प्राप्त करते हैं. जानकारी मिली है कि उक्त शक्तिपीठ की स्थापना के लिए भी शहर के संस्थापक कर्नल डिक्शन ने ही जगह दी थी. काली माता मंदिर के पुजारी राजेश शर्मा ने बताया कि काली माता की मूर्ति उनके पूर्वज सोजत सिटी के सेवको के मौहल्ले में रहने वाले चतुर्भुज शर्मा के मकान में खुदाई के दौरान करीब 125 वर्ष पूर्व निकली थी.
खुदाई में निकली माताजी की मूर्ति को लेकर चतुर्भुज शर्मा ने उसे अपने कंधे पर लेकर स्थापना के लिए चित्तौडगढ़ गए लेकिन वहां पर किसी कारणवश मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाई. इसके बाद शर्मा मूर्ति को लेकर ब्यावर आए जहां पर सुरजपोल गेट बाहर स्थित उनके मकान में रखी दी. इसके बाद उन्होंने सुरजपोल गेट परकोटे की दीवार के यहां मूर्ति स्थापना के लिए स्थान बनाना शुरू किया लेकिन दिन में निर्माण करते वह निर्माण रात को गिर जाता.
बताया जा रहा है कि जब इस बात की जानकारी शहर के संस्थापक कर्नल डिक्शन को मिली तो वे स्वयं यहां पर आए तथा मंदिर के लिए वर्तमान स्थान पर जमीन दी. इसके बाद मंदिर का निर्माण किया गया और मूर्ति की स्थापना की गई.
पुजारी राजेश शर्मा ने बताया कि तात्कालीन समय के पुजारी रघुनाथ शर्मा के चार पुत्र गौरीशंकर, भवानीशंकर, ब्रह्मदत्त तथा रिखबचंद हुए जिनके वंशज आज तक माताजी की सेवा कर रहे हैं. पुजारी शर्मा के अनुसार नवरात्रि को मौके पर अष्टमी के दिन मंदिर में हवन तथा नवमी को कन्या पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें बड़ी संख्खया में श्रद्धालु शिरकत कर धर्मलाभ प्राप्त करते हैं.
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