गोडावण की संख्या लगातार घटती जा रही है. शोकलिया क्षेत्र में खनन के ब्लास्ट तेज धमाकों के कारण गोडावण (Great Indian bustard) गुम होता जा रहा है लेकिन राज्य पक्षी को लेकर सरकार गंभीर नही है.
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Ajmer: करीब तीन दशक पहले राजस्थान (Rajasthan News) सरकार की ओर से गोडावण को राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया और गुम होते गोडावण पर खतरा मंडराते देख सरकार ने वर्ष 1979 में शिकार निषिद्ध और संरक्षण क्षेत्र घोषित किया.
इसके बावजूद गोडावण की संख्या लगातार घटती जा रही है. शोकलिया क्षेत्र में खनन के ब्लास्ट तेज धमाकों के कारण गोडावण (Great Indian bustard) गुम होता जा रहा है लेकिन राज्य पक्षी को लेकर सरकार गंभीर नही है.
राजस्थान सरकार ने वर्ष 1981 में गोडावण को राज्य पक्षी तो घोषित कर दिया लेकिन गोडावण के संरक्षण (Nature maintenance) के पुख्ता इंतजाम नहीं किए, जिससे गोडावण क्षेत्र से खत्म होने के कगार पर हैं. सरकार ने गोडावण के संरक्षण के लिए 8 मई 1981 को जैसलमेर में मरू उद्यान की स्थापना की.
वैज्ञानिक भाषा में गोडावण ग्रेट इंडियन बर्ड के नाम से मशहूर हैं. इस परिंदे को स्थानीय भाषा में सोन चिड़िया, हुकना आदी कहकर पहचाना जाता है. गोडावण का कुत्रिम प्रजनन केंद्र जोधपुर (Jodhpur) में खोला गया है. अच्छी बरसात के माहौल में ही गोडावण अड्डे देती हैं. यह शर्मीला राज्य पक्षी राजस्थान में जैसलमेर के अलावा शोकलिया, अजमेर और सोरसेन आखेट निषेध क्षेत्र बारां में बहुतायत से नजर आता रहा है.
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क्या हैं कानून
राज्य सरकार ने गोडावण संरक्षण के लिए सख्त कानून बनाया है. सरकार और वन विभाग (Forest Department) ने वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9 सी के तहत गोडावण को प्रथम श्रेणी में शामिल किया है और गोडावण के शिकार पर 10 वर्ष की सजा एवं 25 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान है. सरकार ने नियम तो कठोर बनाए हैं लेकिन गोडावण लगातार कम क्यों होते जा रहे हैं, इस पर कभी ध्यान ही नहीं दिया गया, जिसके चलते गोडावण क्षेत्र से गुम से हो गए हैं.
वन विभाग प्रतिवर्ष गोडावण की गणना के लिए अभियान चलाता है कर्मचारी रात-दिन जंगल में रहकर गणना करते हैं और इस दौरान काफी पैसा भी खर्च होता है लेकिन गोडावण कभी कभार ही दिखते हैं. देश-विदेश के काफी पर्यटक भी यहां गोडावण देखने आते हैं लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगती हैं और उन्हें जंगल में भटककर वापिस ही जाना पड़ता है.
क्यों घट रहे हैं गोडावण
शोकलिया क्षेत्र में पत्थर खनन के लिए खदानों में ब्लास्ट किया जाता है. ब्लास्ट से होने वाले तेज धमाकों की दशहत से सहमे गोडावण पलायन कर रहे हैं. संरक्षित क्षेत्र में खनन पर रोक लगाने के उच्चतम न्यायलय ने आदेश भी दिए हैं लेकिन राज्य सरकार ने अपने स्तर पर अवैध खनन रोकने की कवायद नहीं की, जिससे खनन का गोरखधंधा जारी है.
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि संरक्षित क्षेत्र में अवैध खाने बेरोकटोक चल रही है, जिससे गोडावण की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है. उल्लेखनीय है कि राजस्थान के अजमेर जिले में शोकलिया क्षेत्र के जंगलों में यह दुलर्भ प्रजाति का पंरिदा रहता है. इसलिए सरकार ने शोकलिया को गोडावण के लिए संरक्षित घोषित कर रखा है. परंतु लगातार जमीन कम होती जा रही है. पहले बंजर भूमि में घास रहती थी जहां गोडावण कीड़े-मकोड़े खाती थी.
वहीं गोडावण का आशियाना था परंतु बढती जनसंख्या से खेती का विस्तार भी हुआ और अवैध खनन की बाढ़ सी आ गई, इस कारण गोडावण की संख्या लगातार कम होती जा रही है. राज्य सरकार कागजों में तो गोडावण को लेकर खासी चितिंत हैं परंतु असलियत में धरातल पर सरकार गोडावण संरक्षण को लेकर कोई प्रभावी कदम नहीं उठा रही है, जिससे क्षेत्र से गोडावण गुम होने के कगार पर है. एक जमाना था जब खेतों और जगलों में गोडावण के झुंड के झुंड दिखाई देते थे लेकिन जब से क्षेत्र में खनन शुरू हुआ गोडावण पलायन करने लग गए हैं. अगर सरकार ने समय रहते उचित कदम नहीं उठाया तो आने वाली युवा पीढ़ी को राज्य पक्षी गोडावण ढूंढने से भी नहीं मिलेगा. ऐसे हालात में आने वाली पीढ़ी को गोडावण को सिर्फ किताबों में देखकर ही संतुष्ट होना पड़ेगा.
यहां होता है अवैध खनन
शोकलिया, लोहरवाडा, सनोद, रामसर, देराठु, कलयाणपुरा, केसरपुरा, लक्ष्मीपुरा, मावसिया, अहेडा, बहेडा, भगवनतपुरा, कोटडी, बावडी, शेरगढ, गणेशपुरा, खीरिया, गोयला, जावला, सराना, झडवासा, भटियाणी, कुम्हारिया, जसवन्तपुरा, रामपुरा, केबानिया, शोकली, पीपरोली, हनुतिया, चापानेरी, सहीत अनेक गावों में प्रशासनिक मिलिभगत से अवैध खनन का गोरखधंधा बदस्तूर जारी है.
बरसात भी बनी हुई है बैरन
अजमेर जिले में कम बरसात होना भी गोडावण का कम होना प्रमुख कारण माना जा रहा है. वन अधिकारियों का मानना है कि क्षेत्र में कई वर्षों से समुचित बरसात नहीं हो रही है. इस कारण गोडावण क्षेत्र से माईग्रेट हो रहे है. अधिकारियों का कहना है कि गोडावण वहीं रहता है, जहां पानी से जलाशय लबालब हो और क्षेत्र के बाध तालाबों में पानी ही नहीं है. ऐसे मे पक्षी अपनी प्यास कहां बुझाए. पानी की कमी भी गोडावण कम होने का प्रमुख कारण माना जा रहा है. वन भूमि की कमी भी गोडावण कम होने का कारण मानी जा रही है. शोकलिया क्षेत्र में वन भूमि नहीं है. पहले खेत कम और बिड अधिक थे लेकिन धीरे-धीरे बिड खत्म हो गए.
इस पक्षी का नाम द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या गोडावण, सोन चिड़िया है. यह पक्षी आमतौर पर हमें गानों और कहानियों में ही सुनने को मिलता रहा है. अब यह चिड़िया विलुप्त होने के कगार पर हैं. देश के सूखे रेतीले इलाकों में पाई जाने वाली यह उड़ने वाली दुनिया की सबसे बड़े आकार वाली चिड़िया है, जो लगभग एक मीटर तक ऊंची और देखने में शुतुरमुर्ग जैसी होती है. आज दुनिया में सिर्फ 150 चिड़िया ही बची हैं.
कभी यह चिड़िया लाखों की संख्या में पाई जाती थी. मगर जब इंसान इसका शिकार करने में जुट गया तो इसकी संख्या घटकर मात्र 150 रह गई. आमतौर पर यह पक्षी अपनी ही तरह से लुप्तप्राय हो रहे काले हिरण के साथ घूमता पाया जाता है. भारत सरकार ने वन्यजीव संरक्षण कानून 1972 के तहत उसे संरक्षित पक्षी घोषित किया था.
इसकी गर्दन के पंख भी काले होते हैं, जो टोपी की तरह लगते हैं. यह सूखे इलाकों जैसे राजस्थान और गुजरात के रेतीली, कच्छवाले इलाके में रहना पसंद करता है. यह कीड़े खाकर भोजन की पूर्ति कर लेते हैं. साथ ही यह मूंगफली, दालों की फसलों को बहुत स्वाद से खाते हैं. जब इन्हें किसी तरह का खतरा पैदा होता है तो अपने चूजों के अंडे पंख फैलाकर उनके नीचे छुपा लेते हैं और कई पक्षी मिलकर उनके चारों और घेरा बना लेते है. यह बहुत तेजी से दौड़ता है और इस कारण इसका जीप पर चढ़कर शिकार किया जाता है और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लुप्तप्राय चिड़िया घोषित कर दिया गया था.
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गोडावण पक्षी के लुप्तप्राय होने में इंसान की बहुत बड़ी भूमिका रही है. जैसे-जैसे विकास के कारण गांवों, जंगलो में सड़के बनी, बिजली के टावर बने उनके आवास और शिकार की जगह कम होने लगी. यह पक्षी बहुत शर्मीला होता है और ऊंची घास के मैदानों में छिप कर रहता है लेकिन अब घास के मैदान साफ होने लगे. जब राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर आई तो इसके आवास की जगह काफी कम हो गई. यह पक्षी जमीन पर घोंसला बनाकर उसमें अपने अंडे देता है. वह साल में एक बार एक अंडा देता है जबकि उसके बच्चे कुत्ते सरीखे जानवरों के शिकार हो जाते हैं और बड़ी संख्या में शिकार के कारण गोडावण की जनसंख्या नहीं बढ़ पाती.
गोडावण प्रोटीन से भरपूर अनाज और कीडे़-मकोडे़ खाते हैं. ऐसा माना जाता है कि कृषित बागवानी के क्षेत्र में भारी मात्रा में कीटनाश के इस्तेमाल के कारण इन पक्षियों की अंडा पैदा करने की क्षमता पर भी असर पड़ा है. हाल ही में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इनके संरक्षण के लिए 33 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, जिसकी मदद से जैसलमेर के इनक्यूबेशन सेंटंर (अंडे लेने का केंद्र) स्थापित किया गया. मंत्रालय ने देश में ऐसे 14 स्थानों का पता लगाया है, जहां के वातावरण और माहौल के कारण यह पक्षी अपनी तादाद बढ़ा सकेगा.
नर जब 4-5 साल का हो जाता है तब वह बच्चे पैदा करता है जबकि मादा चार साल की आयु में इसके योग्य बनती है. एक पक्षी 14-15 साल तक जीता है. पहले यह चिड़िया कच्छ, नागपुर, अमरावती, सोलापुर, बिलारी में काफी तादाद में मिला करती थी. यह पक्षी ज्यादा दूर तक नहीं देख पाता है. जंगलों और मैदानों से गुजरने वाली बिजली के तार इसके लिए जानलेवा साबित होते हैं. यह पक्षी उड़ते समय उनसे टकरा जाता है और घायल होकर मर जाता है.
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जैसलमेर में भी काफी पक्षी बिजली के तार के कारण मर जाते हैं. अब देखना यह है कि इंसान द्वारा बरबाद की जा रही इस चिड़िया को बचाने में इंसानों की कोशिशें कितनी कामयाब साबित होती हैं. एक बार तो इसे हमारा राष्ट्रीय पक्षी तक घोषित किया जाने वाला था. बहुचर्चित पक्षी प्रेमी और विशेषज्ञ डॉ. सलीम अली ने ऐसा करवाने की बहुत कोशिश की थी, मगर बोलने और लिखने में होने वाली गलतियों की आशंका के कारण उसकी जगह मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया.
अजमेर जिले में बरसात की भारी कमी है जिससे सभी जलाशय सूखे पडे़ है. ऐसे में पक्षी अपनी प्यास कहां बुझाए. गोडावण वहीं रहता है, जहां बडी मात्रा में पानी हो. माइनिंग भी गोडावण कम होने का प्रमुख कारण है. माईनिंग लीजो को निरस्त करवाने के लिए विभाग अपने स्तर पर कार्यवाही कर रहा है. क्षेत्र में वन भूमि नहीं है. इस कारण भी राज्य पक्षी अधिक समय तक यहां ठहर नहीं सकता. जंगल खत्म होते जा रहे हैं और जंगल की जगह खेतों ने ले ली है. ऐसे मे गोडावण अपना पेट कहां भरे इस कारण भी गोडावण की संख्या में निरतंर कमी आ रही है.
क्या कहना है क्षेत्रीय वन अधिकारी का
गोडावण संरक्षित क्षेत्र में बड़ी मात्रा में अवैध खनन हो रहा है. सरकार को अवैध खनन को बंद करना चाहिए और जिन लीजधारकों की खाने लीज कर रखी हैं, उनकी लिज निरस्त करनी चाहिए, जिससे अवैध ब्लास्ट के धमाके से राज्य पक्षी भयभीत होकर यहां से पलायन नहीं करे. साथ ही गोडावण संरक्षण के लिए वन-विभाग को जगलों में जलाशय और तालाबों का निर्माण करवाना चाहिए, जिससे पक्षियों को अपनी प्यास बुझाने के लिए भटकना नहीं पडे़. पंचायत क्षेत्र में स्थित चरागाह भूमि को भी विकसित करते हुए चरागाहों में घास लगानी चाहिए ताकी गोडावण अपनी भूख मिटा सके.