Rajasthan Election: 56 साल से डीडवाना में रिपीट नहीं हुई विधायकी, नए जिले के बाद क्या चेतन डूडी तोड़ पाएंगे परंपरा
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Rajasthan Election: 56 साल से डीडवाना में रिपीट नहीं हुई विधायकी, नए जिले के बाद क्या चेतन डूडी तोड़ पाएंगे परंपरा

Deedwana Vidhansabha Seat : राजस्थान के नागौर जिले से अलग होकर बने डीडवाना-कुचामन जिले की डीडवाना विधानसभा क्षेत्र का सियासी समीकरण बदल गया है. चेतन डूडी डूडी यहां से मौजूदा विधायक है लेकिन पिछले 56 सालों में यहां कोई भी लगातार विधायकी रिपीट नहीं कर पाया है... ऐसे में सवाल है क्या डूडी ये करिश्मा कर पाएंगे..

Rajasthan Election: 56 साल से डीडवाना में रिपीट नहीं हुई विधायकी, नए जिले के बाद क्या चेतन डूडी तोड़ पाएंगे परंपरा

Deedwana Vidhansabha Seat : राजस्थान के पांचवें सबसे बड़े जिले यानी नागौर से अलग होकर सूबे के भूगोल पर नए जिले के रूप में उभरने वाले डीडवाना विधानसभा क्षेत्र में विधायकी रिपीट करना सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि यह क्षेत्र जातिवाद, वंशवाद और परिवारवाद से दशकों तक कोसों दूर रहा. लेकिन पिछले चुनाव में यह परंपरा टूट गई और पूर्व विधायक रहे रूपाराम डूडी के पुत्र चेतन डूडी की जीत हुई.

खासियत

डीडवाना विधानसभा क्षेत्र से अब तक 9 व्यक्ति विधायक चुने गए हैं. जिनमें मथुरादास माथुर उम्मेद सिंह राठौड़ और यूनुस खान अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी रहे. इस सीट पर अब तक हुए 15 विधानसभा चुनाव में 9 अलग-अलग व्यक्ति चुनकर विधानसभा पहुंचे. इनमें सबसे पहले नाम मथुरादास माथुर का आता है जो डीडवाना के पहले विधायक भी बने तो वहीं इसके बाद मोती लाल चौधरी, भोमाराम, उम्मेद सिंह राठौड़, चेनाराम, भंवर राम, रूपाराम डूडी, यूनुस खान और चेतन डूडी यहां से विधायक के रूप में विधानसभा पहुंचे. वहीं सबसे खास बात यह भी रही कि 1962 में मोतीलाल के बाद कोई भी नेता अपनी विधायकी लगातार रिपीट करने में कामयाब नहीं हो सका.

जिला बना डीडवाना-कुचामन

नागौर से अलग होगकर डीडवाना और कुचामन को संयुक्त रूप से जिला बनाया गया है. तकरीबन 30 सालों से इन क्षेत्रों को जिला बनाने की मांग थी. नवगठित जिले में डीडवाना, मौलासर, छोटी खाटू, लाडनूं, परबतसर, मकराना, नावां और कुचामन सिटी को शामिल किया गया है. नया जिला बनने से इस क्षेत्र के सियासी समीकरण भी बदल गए हैं. जिसका असर 2023 के विधानसभा चुनाव में देखने को निश्चित तौर पर मिलेगा.

डीडवाना का चुनावी इतिहास

पहला विधानसभा चुनाव 1951

1951 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मथुरादास माथुर चुनावी मैदान में उतरे. तो वहीं उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल गनी ने चुनौती दी. अब्दुल गनी के पक्ष में 8,536 वोट पड़े तो वहीं मथुरादास माथुर के पक्ष में 11,394 मतदाताओं का समर्थन मिला. इसके साथ ही डीडवाना के पहले विधायक मथुरा दास माथुर बने.

दूसरा विधानसभा चुनाव 1957

1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मोतीलाल चुनावी मैदान में उतरे तो उन्हें कई अन्य उम्मीदवारों ने चुनौती दी. इस चुनाव में मोतीलाल की जीत हुई और उन्हें 19,905 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ. जबकि मथुरादास माथुर सांसद के रुप में संसद पहुंचे.

तीसरा विधानसभा चुनाव 1962

1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मोतीलाल ही चुनावी मैदान में उतरे. जबकि उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार मगन सिंह ने चुनौती पेश की. इस चुनाव में भी मोतीलाल की ही जीत हुई. मोतीलाल के पक्ष में 23,523 मतदाताओं ने वोट किया. 

चौथा विधानसभा चुनाव 1967

1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मथुरा दास माथुर को डीडवाना से चुनावी मैदान में भेजा तो वहीं बीजेएस पार्टी से आर गगर ने चुनावी ताल ठोकी. हालांकि चुनावी नतीजे आए तो 17,595 मतों से मथुरादास माथुर चुनाव जीत चुके थे. इस बार वो विधायक के रूप में एक बार फिर विधानसभा पहुंचे.

पांचवा विधानसभा चुनाव 1972

1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदलते हुए आलिम खान को टिकट दिया. वहीं स्वराज पार्टी से भूमाराम चुनावी मैदान में उतरे इस चुनाव में आलिम खान के पक्ष में 18,570 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ. 22,890 के साथ भूमाराम ने जीत हासिल की. इसके साथ ही कांग्रेस के हाथ से डीडवाना का गढ़ निकल गया.

 

छठा विधानसभा चुनाव 1977

पिछले विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए कांग्रेस ने इस बार मथुरादास माथुर को फिर से टिकट दिया. जनता पार्टी की ओर से जबोदी खान चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में जबोदी खान के पक्ष में 23,976 वोट पड़े तो वहीं मथुरादास माथुर को 26,576 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ और उसके साथ ही मथुरादास माथुर एक बार फिर डीडवाना का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.

सातवां विधानसभा चुनाव 1980

पिछले चुनाव के 3 साल बाद ही फिर से चुनाव हुए. चुनाव में कांग्रेस भारी गुटबाजी का सामना कर रही थी. इस चुनाव में जहां कांग्रेस (यू) की ओर से भूमाराम को उम्मीदवार बनाया गया तो वहीं जनता पार्टी की ओर से उम्मेद सिंह को टिकट मिला. भूमाराम इससे पहले स्वराज पार्टी के टिकट से चुनाव जीत कर विधायक बन चुके थे. हालांकि इस चुनाव में उनकी किस्मत वैसी नहीं रही और उन्हें महज 13,338 वोट पड़े जबकि उम्मेद सिंह को 17839 वोट मिले. इस चुनाव में उम्मेद सिंह की जीत हुई.

आठवां विधानसभा चुनाव 1985

1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भंवर राम को टिकट दिया. जबकि जनता पार्टी की ओर से उस वक्त के तत्कालीन विधायक उम्मेद सिंह चुनावी मैदान में उतरे. हालांकि उम्मेद सिंह को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस के भंवर राम की जीत हुई.

9वां विधानसभा चुनाव 1990

1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने फिर से उम्मेद सिंह को ही टिकट दिया जबकि उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार बनकर चेनाराम ने चुनौती पेश की. इस चुनाव में चेनाराम के पक्ष में 30,857 वोट पड़े तो वहीं उम्मेद सिंह को 34,501 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया. इसके साथ ही उम्मेद सिंह ने एक बार फिर अपना लोहा मनवाया और जीत हासिल की.

10वां विधानसभा चुनाव 1993

1993 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय के तौर पर जनता दल के विधायक को चुनौती देने वाले चेनाराम एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरे. जबकि बीजेपी ने उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस से विधायक रह चुके भंवर सिंह को टिकट दिया. लेकिन बीजेपी का दांव उल्टा पड़ गया और निर्दलीय उम्मीदवार चेनाराम की इस चुनाव में जीत हुई. चेनाराम को 38,711 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ.

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11वां विधानसभा चुनाव 1998

1998 में इस सीट से कांग्रेस ने रुपाराम को टिकट दिया. जबकि बीजेपी ने यूनुस खान को चुनावी मैदान में उतारा. 1998 के चुनाव में रूपाराम डूडी की 41,984 वोटों से जीत हुई जबकि यूनुस खान को महज 33,201 मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया.

12वां विधानसभा चुनाव 2003

2003 के विधानसभा चुनाव में यूनुस खान और रुपाराम डूडी एक बार आमने-सामने थे. जहां बीजेपी ने यूनुस खान को रिपीट किया तो वहीं कांग्रेस ने रुपाराम डूडी को फिर से टिकट दिया. इस चुनाव में यूनुस खान का दांव सही पड़ा और उनकी जीत हुई. जबकि रुपाराम डूडी को हार का सामना करना पड़ा.

13वां विधानसभा चुनाव 2008

2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने रुपाराम को ही टाकट दिया जबकि बीजेपी की ओर से यूनुस खान चुनावी मैदान में उतरे यानी मुकाबला फिर से रूपा राम वर्सेज यूनुस खान ही था. इस चुनाव में रुपाराम की जीत हुई. यूनुस खान को 15,000 से भी ज्यादा मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा. 

14वां विधानसभा चुनाव 2013

2013 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर यूनुस खान अपनी किस्मत आजमाने चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं कांग्रेस ने रूपाराम डूडी के बेटे चेतन डूडी को टिकट दिया. हालांकि मोदी लहर पर सवार यूनुस खान की 68,795 वोटों से जीत हुई जबकि चेतन डूडी को अपने पहले ही चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.

15वां विधानसभा चुनाव 2018

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर चेतन डूडी पर ही दांव खेला जबकि बीजेपी ने यूनुस खान की जगह जितेंद्र सिंह को सामने उतारा. चेतन डूडी की 92,981 वोटों से जीत हुई.

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