आखिर कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है तेलंगाना में जीत,समझें सियासी गणित
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आखिर कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है तेलंगाना में जीत,समझें सियासी गणित

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ना केवल सिर्फ जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की बल्कि अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस ने आसानी से 130 के आंकड़े को पार किया है.

आखिर कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है तेलंगाना में जीत,समझें सियासी गणित

Telangana Election 2023: राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ना केवल सिर्फ जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की बल्कि अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस ने आसानी से 130 के आंकड़े को पार किया है. पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने कर्नाटक में जोरदार चुनाव प्रचार प्रसार किया था, इसके बावजूद कांग्रेस ने कर्नाटक में बड़ी जीत हासिल की. इस जीत ने एक दशक से टूट चुकी कांग्रेस के जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं में नई जान फूंकने का काम किया. कर्नाटक की जीत के बावजूद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने पुराने वोट बैंक मुस्लिम और दलितों के बीच फिर से भरोसा पैदा करने की हैं. कांग्रेस ने इसके लिए पहला कदम 81 वर्षीय नेता को पार्टी का अध्यक्ष बनाकर की.

26 अक्टूबर, 2022 को पार्टी की कमान संभालने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे की राहुल गांधी के साथ जुगलबंदी और इंडिया गठबंधन के बढ़ते कदम ने कांग्रेस को पुन: पूराने जोश से और अधिक लबरेज किया है. लेकिन बीजेपी के हिंदुत्व के मुद्दे पर सॉफ्ट हिंदुत्व का पीछा करती कांग्रेस अपने मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ बनाकर नहीं रख पायी.ऐसे में पूरे देश में जहां जहां मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस की जगह दूसरा विकल्प मिला, वहां ये मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का साथ छोड़ना शुरू कर दिया.

आखिर क्यों जरूरी तेलंगाना

यूएपीए के दूसरे कार्यकाल में जब कांग्रेस चौतरफा हमलों के साथ साथ कमजोर नेतृत्व से जुझ रहा था, उसी समय कांग्रेस गठबंधन में शामिल 91 साल पुरानी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन, या एआईएमआईएम भी अलग हो गयी. एआईएमआईएम वर्ष 1998 से ही आंध्र प्रदेश में अविभाजित कांग्रेस का समर्थन करता रही थी.
इसी दौरान एआईएमआईएम संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का हिस्सा भी रहा, लेकिन 2012 में वह गठबंधन से बाहर हो गया. 2014 के आम चुनावों के बाद, एआईएमआईएम ने बीआरएस के साथ गठबंधन किया और आज भी उसके नेता तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के कट्टर समर्थक है.

बीजेपी के हिंदुत्व के बढ़ते एजेंडे और कांग्रेस के ढुलमुल रवैये के बीच एआईएमआईएम के एकमात्र सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने खुलकर मुसलमानों के मुद्दे पर अपनी बात रखने लगे.
देश में बीजेपी के बढ़ते प्रभुत्व ने ओवैसी के लिए जितनी राह आसान की उससे ज्यादा कांग्रेस के भीतर निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होने से यह ओवैसी के पक्ष में गया.
ओवैसी के प्रति मुस्लिम युवाओं और क्षेत्रों में बढ़ती पहुंच ने कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक को ढहा दिया.एक ओर जहां ओवैसी अपनी पार्टी के लिए वोटबैंक बढाना चाहते थे तो दूसरी और पार्टी का प्रभुत्व हैदराबाद से पुरे देश में फैलाना चाहते थे. कांग्रेस के लिए अपने इस मुस्लिम वोट बैंक को लगातार दूर होने से बचाने के लिए तेलंगाना की जीत से ज्यादा ओवैसी और उसकी ताकत तेलंगाना राष्ट्र समिति की हार जरूरी है.

मायावती की तरह ओवैसी बड़ी चुनौती

1998 में पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा पंचायती राज में किए आरक्षण के नए प्रावधान और कांशीराम के बाद मायावती के प्रभाव ने कांग्रेस के कोर वोट बैंक दलितों को दूर कर किया.
और ऐसा ही कुछ देश की राजनीति में ओवैसी के बढ़ते प्रभाव के चलते कांग्रेस के दूसरे कोर वोट बैंक मुस्लिम वर्ग पर शुरू हुआ. स्थापना के करीब 8 दशक तक हैदराबाद तक सीमित रहीं मजलिस ने 2012 के बाद अपना प्रभाव आंध्र प्रदेश के दूसरे जिलों से बढ़ाकर पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक तक फैलने के बाद बिहार, दिल्ली से लेकर देश के कई राज्यों में बढ़ाने में कामयाबी हासिल की है.

ख़ास बात यह है कि ओवैसी महाराष्ट्र में सिर्फ मुसलमानों तक सीमित नहीं रहे हैं. उन्होंने मुस्लिम-दलित गठजोड़ पर फोकस किया है ताकि उनकी पार्टी का प्रभाव बढ़ सकें. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुश्किल ओवैसी की बढ़ती लोकप्रियता के साथ एआईएमआईएम का बढ़ता प्रभाव रहा है, जिसे वो कभी स्वीकार नहीं कर पायी. जब तक ओवैसी कांग्रेस के साथ थे, कांग्रेस ने कभी ओवैसी पर हमला नहीं बोला, लेकिन जब ओवैसी की पार्टी ने अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाया, कांग्रेस के लिए ओवैसी असहनीय हो गए. बहरहाल परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक तक फिर से पहुंच बनाने में जुटी कांग्रेस के लिए असदुद्दीन ओवैसी राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ी चुनौती है. ऐसे में कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद तेलंगाना पर सबसे ज्यादा जोर लगा रही है.क्योंकि कांग्रेस को तेलंगाना में जीत से ज्यादा जरूरी फिलहाल ओवैसी की हार की जरूरत है.

मिथक को तोड़ना चाहती है कांग्रेस

देश में अब तक कई राज्यों से कांग्रेस बुरी तरह से साफ हो गयी है. एक समय तक बीजेपी ये दावा करने लगी थी कि वह देश को कांग्रेस मुक्त कर देगी. इसके लिए बीजेपी उन राज्यों को उदाहरण देती रही जिनमें कभी कांग्रेस सर्वेसर्वा रही है. खासतौर से उत्तर प्रदेश और बिहार इसके सबसे बड़े उदाहरण है. वर्ष 2011 में BJP की 6 राज्यों में सरकार थी और कांग्रेस की 11 राज्यों में, वहीं 2016 में BJP की 9 राज्यों में सरकार बनी और कांग्रेस की सिर्फ 6 राज्यों में सरकार बची थी. कर्नाटक में जीत के बाद देश में अब कुल 4 राज्यों में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार है. जबकि 3 राज्यों में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है.

वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा तेलंगाना पर उम्मीद लगाए हुए हैं, इसका कारण उस मिथक को तोड़ना भी है जिसके लिए बीजेपी लगातार एक दशक से हमलावर है. कांग्रेस तेलंगाना में अपनी जीत दर्ज कर इस मिथक को तोड़ना चाहती है कि जो राज्य कांग्रेस के हाथ से निकल चुके है या जहां कांग्रेस पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है वहां वापस कांग्रेस सरकार नहीं बना सकती.

कांग्रेस अगर तेलंगाना में सरकार बना लेती है तो उसके लिए मनोवैज्ञानिक रूप से बेहद सकारात्मक ऊर्जा पैदा करने वाली होगी. साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं में बैठे इस विचार को समाप्त कर सकेगी कि खोये हुए राज्यों को दोबारा नहीं पाया जा सकता. तेलंगाना की जीत से कांग्रेस एक बड़ी ताकत के साथ लोकसभा चुनाव का सामना कर सकेगी तो वही अगर राजस्थान कांग्रेस के हाथ से निकल भी जाता है तो वह तेलंगाना की जीत से इसे पूरा कर सकती है. यहीं कारण है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से ज्यादा जरूरी कांग्रेस के लिए तेलंगाना की जीत है.

इंडिया गठबंधन में भूमिका पर असर

बीजेपी का सामना करने के लिए देश के सभी विपक्षी दलों ने मिलकर इंडिया गठबंधन बनाया था, शुरुआत में कांग्रेस नीतीश कुमार के पीछे खड़ी थी लेकिन तीन बैठक के बाद कांग्रेस इस गठबंधन की मुखिया के तौर पर सामने आ गयी. कांग्रेस हो या बीजेपी अपने गठबंधन के दलों से तभी समझौता करते है जब वे कमजोर होते है लेकिन जैसे ही वे थोड़ी भी मजबूत स्थिती आते है तो अपने गठबंधन के दलों से समझौता करने में ज्यादा कठोर हो जाते है.

कांग्रेस अगर तेलंगाना में जीत दर्ज करती है तो कांग्रेस इंडिया गठबंधन में अपनी शर्तों पर सीटों का बंटवारा करने की ओर बढेगी, यहीं कारण है कि विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस सपा हो या फिर दूसरे अन्य दलों से सीटों के बंटवारे पर बात नही करना चाह रही. हाल ही में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने भी कहा कि सीटों के बंटवारे पर 3 दिसंबर के बाद बात करेंगे. तेलंगाना चुनाव जितना कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है उतना ही इंडिया गठबंधन के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि तेलंगाना जीत के बाद कांग्रेस गठबंधन में खुद को और अधिक मजबूत नेता के तौर पर पेश करेगी.

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