Banswara News: जानिए, राजस्थान में अच्छी बारिश की कामना के लिए महिलाएं कौन-सी निभाती हैं परंपरा?
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Banswara News: जानिए, राजस्थान में अच्छी बारिश की कामना के लिए महिलाएं कौन-सी निभाती हैं परंपरा?

Banswara News: राजस्थान के इस जिले में महिलाओं ने अच्छी बारिश के लिए अनोखी परंपरा निभाई है. महिलाएं पुरुषों के वेश में हाथ में लाठी और तलवार लेकर सड़कों पर निकल पड़ी है. ये परंपरा पिछले 100 साल से निभाई जा रही है.

Dhaad Tradition

Banswara News: बांसवाड़ा जिले के आनंदपुरी उपखंड क्षेत्र में 100 साल पुरानी धाड़ की परंपरा निभाई जाती है. हाथों में लाठी-तलवार लिए निकली ये महिलाएं भगवान से अच्छी बारिश की कामना करती हैं. बांसवाड़ा जिले में ये परंपरा 100 साल से निभाई जा रही है. क्या है इसके पीछे की मान्यता चलिए आपको बताते हैं?

धाड़ की परंपरा 

धाड़ की परंपरा  बांसवाड़ा जिले में 100 साल पुरानी है. इस परंपरा को निभाकर महिलाएं भगवान इंद्र देव को रिझाने की कोशिश करती हैं, जिससे बारिश अच्छी हो और फसल को नुकसान न हो. इस खास मौके पर महिलाएं पुरुषों के वेश में हाथ में लाठी और तलवार लेकर सड़को पर निकल पड़ती हैं. 

क्या है मान्यता? 

कहा जाता है कि धाड़ की परंपरा के मुताबिक महिलाएं भगवान इंद्र देव से कामना करती है कि- हे भगवान अच्छी बारिश हो. अगर अच्छी बारिश नहीं हुई तो सूखा पड़ेगा, खेतों में फसलें सूख जाएंगी, खाने पीने के लिए कुछ नहीं मिलेगा. इससे परेशान होकर ऐसे ही सड़कों पर चोर लुटेरे निकलेंगे, घरों में लूट और डकैती डालेंगे.

टामटिया गांव में दिखा खास नजारा

शुक्रवार को आनंदपुरी पंचायत समिति के टामटिया गांव में अच्छी बारिश की कामना को लेकर महिलाओं ने पुरुषों की वेशभूषा धोती कुर्ता, सिर पर पगड़ी पहनकर और हाथों में लट्ठ व तलवारें लेकर धाड़ निकाली. धाड़ का मतलब डकैती डालना होता है.  जैसे ही महिलाएं टामटिया गांव से पांच किमी दूर तक छाजा तक धाड़ डालने निकली, तो अचानक दोपहर 12.45 मौसम पलटा और बादल गरजने के साथ मूसलाधार बारिश शुरू हो गई. धाड़ के लिए निकली महिलाएं बारिश में भीगती नजर आई. 

महिलाओं को देख डरे लोग

हाथों में धारिये, तलवार, लठ्ठ, सिर पर पगड़ी, माथे पर तिलक, कलाई में कड़े और पैरों में जूतियां पहनी महिलाओं को देखकर तो एक बार वहां से गुजर रहे वाहन चालक, राहगीर और ग्रामीण थोड़ा डरे हुए दिखे.  लेकिन इन महिलाओं की मंशा किसी पर हमले या डराने की नहीं थी. बल्कि सूखे के संकट का सामना कर रहे इस इलाके में अच्छी बारिश की कामना थी. शुक्रवार सुबह सशस्त्र महिलाएं पुरुषों के वेशभूषा पहनकर इकट्ठा हुईं थी.

महिलाओं ने की पूजा-अर्चना

इसके बाद महिलाओं ने टामटिया से होते हुए बरकोटा, छाजा के वागेश्वरी माताजी मंदिर में लोकगीतों के साथ पूजा अर्चना की. वहां से कथिरिया, कांगलिया होते हुए अनास नदी के पास प्राचीन गौतमेश्वर महादेव मंदिर में पूजा अर्चना की. इसके बाद वापसी में छाजा में ठाकुर द्वारा प्राचीन राममंदिर में नारियल होम किया, इसके रावले में पहुंचकर लोक गीत गाते हुए नजर आए. माता के मंदिर के बाहर सभी महिलाओं ने धारिये, तलवारें, तीर कमान, लठ्ठ लेकर लोक गीत गाते हुए गेर नृत्य किया.  ये महिलाएं 10-15 किलोमीटर घूमकर वापस टामटिया के माला देवी मंदिर पहुंचीं, जहां पूजा अर्चना कर नारियल होम में आहुतियां दी.

जुलूस के सामने नहीं आते पुरुष

खास बात ये है कि महिलाओं के इस जुलूस के सामने कोई भी पुरुष नहीं आता है. मान्यता के अनुसार  पुरुषों का सामने आना अपशगुन माना जाता हैं.

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