Bikaner News: राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम यानी आरजीएचएस में निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने की छूट के बाद सहकारी दवा भंडार मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है.
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Bikaner News: सरकारी अस्पतालों व अन्य स्थानों पर संचालित सहकारी भंडार के दवा केंद्र इन दिनों अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं. राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम यानी आरजीएचएस में निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने की छूट के बाद सहकारी दवा भंडार मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है, जिसके चलते भंडार के मुखिया सरकार से आरपार की लड़ाई के मूड में है.
आरजीएचएस में वित्तिय खामियां, बकाया भुगतान सहित अनेक मुद्दों को लेकर बीकानेर सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार में एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया, जिसमें प्रदेश के पांच से ज्यादा जिलों के अध्यक्षों ने अपनी पीड़ा को उजागर करते हुए न केवल सरकारी खामियों को उजागर किया. नवंबर 2021 से अब तक करीब 254 करोड़ रुपये की बकाया होने की बात भी कही, जिसके चलते भंडार की माली हालत खराब होने का जिक्र किया गया.
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बीकानेर सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार के अध्यक्ष नगेन्द्रपाल सिंह शेखावत ने बताया कि इन दवा केंद्रों की बिक्री भी गिर कर 10 फीसदी तक रह गई है, तो वहीं सरकार के स्तर पर भी 253 करोड़ 99 लाख का भुगतान बकाया चल रहा है. हालात यह है कि सहकारी दवा केंद्रों पर कार्यरत फार्मासिस्ट व हेल्पर्स तक के वेतन निकाल पाने के लाले पड़ रहे हैं. यह सब इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने आरजीएचएस योजना में निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने की छूट दे दी. ऐसे में जो पेंशनर या सरकारी कर्मचारी सहकार दवा केंद्रों से दवाइयां लेने आते थे, वे निजी दवा केंद्रों की ओर रुख कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि सहकारी दवा केंद्रों से एनओसी लेने के बाद स्थिति बिगड़ी है.
राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम में किए गए बदलाव में जहां निजी दवा केंद्रों को अधिकृत किया गया. वहीं, सहकारी दवा केंद्रों पर जो दवाइयां उपलब्ध नहीं होती थीं, उनके लिए अन्य दुकानों से खरीदने की एनओसी देने की बाध्यता भी खत्म कर दी गई. पूर्व में पेंशनर या अन्य सरकारी क र्मचारी सहकारी दवा केंद्रों पर डॉक्टर की लिखी दवाइयों की पर्ची लेकर जाता था और दवा केंद्रों पर इनमें से जो दवा उपलब्ध होती थी, वो मरीज को मिल जाती थी. बची हुई दवाई निजी मेडिकल स्टोर से खरीदने के लिए सहकार दवा केंद्र संचालक संबंधित कर्मचारी को एनओसी जारी कर देता था, जिसके आधार पर पेंशनर या कर्मचारी को उसका भुगतान मिल जाता था. लेकिन अब ये बाध्यता खत्म हो गई है. ऐसे में सरकारी कर्मचारी या पेंशनर्स सीधे मेडिकल स्टोर से ही समस्त दवाइयां ले लेते हैं.
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आरजीएचएस योजनान्तर्गत कैंसर,किडनी व अन्य गंभीर बीमारियों की दवाईयों की खरीद में प्राइवेट मेडिकल स्टोर व सहकारी भंडार की दुकान की दर में भारी मात्रा में अंतर है, जिससे राज्य सरकार को प्रतिमाह करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान हो रहा है. उन्होंने बताया कि प्राइवेट मेडिकल स्टोर वाले एमआरपी पर बारह प्रतिशत कम राशि पर दवा देते हैं. जबकि सहकारी भंडार में खरीद मूल्य पर केवल दस प्रतिशत प्रभार ही लिया जाता है. प्राइवेट मेडिकल स्टोर और सहकारी भंडारों के सॉफ्टवेयर में समान व्यापार समान नीति के तहत एकरुपता की जानी चाहिए ताकि एक तरफ जनता के पैसे का सदुपयोग हो और दूसरे सहकारी संस्थाएं पुनर्जीवित हो सकें.
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