Holi 2023: होली के पर्व पर गोबर से बनें उपलों का विशेष महत्व होता है. होलिका दहन पर गाय के गोबर के बने उपलों को इस्तेमाल किया जाता है. डूंगरपुर शहर के संकट मोचक, हर हर महादेव मित्र मंडल और उन्नति सेवा संस्थान की महिलाओं ने उपलों का महत्व समझते हुए इसे अवसर के रूप में लिया.
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Holi 2023: होली का त्योहार आने वाला है. इधर डूंगरपुर शहर के संकट मोचक, हर हर महादेव मित्र मंडल और उन्नति सेवा संस्थान की महिलाओं ने होली पर गोबर से बने उपलों की डिमांड को देखते हुए उपलों की माला बनाने का काम शुरू किया है. महिलाओं द्वारा प्राकृतिक चीजों को मिलाकर गोबर के उपलों को बनाया जा रहा है.इसमें गोकुल, कपूर, तिल, जौ, चावल, नीम की पलाश, अश्वगंधा, इलायची, शक्कर, सूखा नारियल और गाय के गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है.
शॉपिंग एप पर उपलों की बिक्री देखकर आया ख्याल
मित्र मंडल की अध्यक्ष उमा श्रीमाल ने बताया कि उन्होंने एक शोपिंग एप पर 160 रुपये में 12 नग (पीस) उपले बिकते देखा तो उन्हें ख्याल आया कि इससे सस्ते में उपलों को तैयार किया जा सकता है और बाजार में बेचा जा सकता है. उपलों की माला का होली पर महत्व होता है.
इसकी ज्यादा डिमांड होती है. ऐसे में महिला समूहों ने मिलकर गोबर की उपलों की माला बनाने का निर्णय लिया. वहीं, इसके बाद उपले बनाने का काम शुरू किया. ताकि उपलों की माला ज्यादा बनाई जा सके और उसे बाजार में बड़े स्तर पर बेचा जा सके. फिलहाल 40 महिलाएं मिलकर उपलों की माला बनाने का काम रही हैं.
शहर में यहां मिलेगी उपलों की माला
गोबर से उपलों की माला बनाकर यह महिलाएं शहर के तहसील चौराहा पर उन्नति सेवा संस्था के केबिन और गैप सागर की पाल पर दुकान लगाकर बेचेंगी.समूह की महिलाएं दो प्रकार की माला बना रही हैं. जिसमे छोटी माला 25 रुपे और बड़ी माला 50 रुपए में बेची जाएगी. वहीं, उन्नति सेवा संस्था की अध्यक्ष नीलम श्रीमाल ने बताया कि उपलों की डिजाइन से लोगों को कोरोना को लेकर भी संदेश दिया जा रहा है. इसके लिए कोरोना डिजाइन के भी उपले तैयार किए गए हैं.
होली पर गोबर के उपलों का धार्मिक महत्व भी
इधर पं विनोद त्रिवेदी ने होलिका दहन में गोबर से उपलों का धार्मिक महत्व बताया. उन्होंने बताया कि होलिका दहन में परम्परा से ही गोबर के उपलों का उपयोग होता आ रहा है. उपलों का ना सिर्फ पौराणिक मान्यताओं के अन्तगर्त बल्कि पर्यावरण की दृष्टि से भी कितना महत्व है. उन्होंने बताया कि धार्मिक मान्यता के हिसाब से गाय के उपलों से अगर होलिका दहन किया जाए तो वातावरण में प्रदूषण नहीं फैलता बल्कि वातावरण शुद्ध होता है.
इसीलिए हर मंगल कार्य को करने के लिए उपलों को जलाया जाता है. गाय के गोबर से बने उपले जलाने से होलिका का महत्व कई गुना बढ़ जाता है. वहीं, उपलों की माला को भाईयों के सिर के ऊपर से सात बार घुमाकर आग में डाल दिया जाता है और ऐसा माना जाता है कि इससे भाइयों को हर बुरी नजर से बचाया जा सकता है.
बहराल डूंगरपुर जिले की महिलाए होली की परम्परा का निर्वहन करते हुए गोबर से बने उपलों का निर्माण करने में जुटी है. वहीं, इन्हें बेचने के लिए भी व्यवस्था महिला समूह की ओर से की जा रही है. ताकि होली की परंपरा का तो निर्वहन तो ही साथ ही लोगो को आसानी से और कम कीमत पर ये गोबर के उपले उपलब्ध हो सके.