राजस्थान का एक ऐसा गांव जहां शादी के बाद दुल्हन नहीं जाती है पति के घर, जानिए क्यों?
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राजस्थान का एक ऐसा गांव जहां शादी के बाद दुल्हन नहीं जाती है पति के घर, जानिए क्यों?

राजस्थान न केवल अपनी खूबसूरती, किले-महल, राजे-रजवाड़े और इतिहास के लिए जाना जाता है बल्कि यहां की परंपराएं भी लोगों को दंग कर देने वाली हैं. कुछ ऐसी हैं जिन्हें आज का समाज स्वीकार नहीं करता तो वहीं कुछ रोचक परंपराएं भी हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

Jaipur: राजस्थान न केवल अपनी खूबसूरती, किले-महल, राजे-रजवाड़े और इतिहास के लिए जाना जाता है बल्कि यहां की परंपराएं भी लोगों को दंग कर देने वाली हैं. कुछ ऐसी हैं जिन्हें आज का समाज स्वीकार नहीं करता तो वहीं कुछ रोचक परंपराएं भी हैं. Zee Rajasthan अपने पाठकों के लिए Rajasthan Ajab gajab (राजस्थान अजब गजब) नॉलेज सीरीज लेकर आया है. इस सीरीज के तहत हम आपको यहां के एक ऐसे गांव की अनूठी परंपरा के बारे में बता रहे हैं जो न केवल रोचक है बल्कि चौंकाने वाली भी है. 

राजस्थान के सिरोही (Sirohi) जिले में जवाई गांव है. यहां लड़कियां शादी के बाद अपने पति के घर नहीं जाती बल्कि पति खुद अपने घर से विदा होकर लड़की के घर रहने आता है. यानी लड़के की डोली उसके घर से उठती है. गांव में जवाई के रहने के कारण इसका नाम ही जवाई गांव पड़ गया है. बताया जा रहा है कि ये परंपरा 500 साल पुरानी है. तब इस गांव में जिसकी भी शादी हुई वो यहां की खूबसूरती पर इतना फिदा हो गया कि यहीं आकर बस गया.

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धीरे-धीरे गांव में जवाईयों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई कि इसका नाम ही जवाई गांव पड़ गया. अब यहां जवाई का रुक जाना एक परंपरा बन गया है. यानी यहां की लड़की से जिसकी भी शादी होती है उसे इस परंपरा के तहत जवाई गांव यानी लड़की के घर आकर रहना पड़ता है. माउंट आबू से करीब 10 किमी दूर ये गांव प्रकृति की खूबसूरती में बसा है. 

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इस गांव के बसने के पीछे ये कहानी भी फेमस 
इस गांव के जवाई नाम पड़ने को लेकर एक कहानी भी फेमस है. बताते हैं कि करीब 500 साल पहले इस गांव में लड़कियों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई. इनकी शादी नहीं हो रही थी. ऐसे में दो भाई जीवाजी और कान्हाजी ने इस गांव की दो बेटियों से शादी रचाई. कहते हैं जीवाजी रंबा के साथ यहीं रह गए और गांव का नाम जवाई पड़ गया. वहीं दूसरे भाई कान्हाजी ने पवना से शादी कर इसी गांव से 10 किलोमीटर दूर जंगल तरफ कनारी ढाणी बसा लिया. फिलहाल इस गांव की आबादी 300 के करीब है. यहां 40 से ज्यादा परिवार रह रहे हैं. इस गांव में परमार राजपूतों की संख्या बहुतायत है.  

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