राजस्थान: तड़प रही गायों को आज भी पाबूजी राठौड़ की जरुरत, जो गायों के लिए कुर्बान हो
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राजस्थान: तड़प रही गायों को आज भी पाबूजी राठौड़ की जरुरत, जो गायों के लिए कुर्बान हो

राजस्थान में बीते करीब दो महीने से गायों में लंपी डिजीज कहर बरपा रहा है. गायों के लिए प्राण घातक साबित हो रही है. इस बीमारी से अब तक राजस्थान में 29 लाख 24 हजार 157 गायें संक्रमित हुईं हैं, जिनमें से 50 हजार 366 गायों की मौत हो चुकी है.

विपत्ति पर याद आ रहे पाबूजी राठौड़.

Pabuji Rathod: राजस्थान में बीते करीब दो महीने से गायों में लंपी डिजीज कहर बरपा रहा है. गायों के लिए प्राण घातक साबित हो रही है. इस बीमारी से अब तक राजस्थान में 29 लाख 24 हजार 157 गायें संक्रमित हुईं हैं, जिनमें से 50 हजार 366 गायों की मौत हो चुकी है. ये सरकारी आंकड़े है जबकि हकीकत है कि इस बीमारी से राजस्थान के अकेले बीकानेर में 70 हजार से ज्यादा गायों की मौत हुई है. ऐसे में आज राजस्थान में आज इस विपत्ति की घड़ी में लोग पाबूजी राठौड़ को याद कर रहे हैं.

याद आ रहे पाबूजी राठौड़
राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार शुरुआत में इस बीमारी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. इसी राजस्थान में जब कोई गाय बीमार होती है तो पाबूजी राठौड़ की परसादी चढ़ाई जाती है. गायों के लिए हरी घास का संकट होता है. तो बारिश की प्रार्थना के साथ पाबूजी राठौड़ की जागरण दी जाती है. बापूजी राठौड़ जो  गायों को छुड़वाने के लिए अपने शादी के तीसरे फेरे लेने के बाद विवाह से उठ खड़े हुए और देवल चारणी की गायों को छुड़वाने के लिए अपने घोड़े पर रवाना हो गए. लेकिन आज उसी पाबूजी राठौड़ के राजस्थान में हजारों गायें काल के गाल में समा गई है. लेकिन सरकार से लेकर सामाजिक संगठनों तक सब मूकदर्शक बने हुए है.

आखिर कौन थे पाबूजी राठौड़
पाबूजी राठौड़ राजस्थान के प्रसिद्ध लोकदेवताओं में से एक है. उनकी वीरता, प्रतिज्ञा पालन, त्याग, शरणागत वत्सलता एवं गौ रक्षा के लिए बलिदान के कारण जनमानस उन्हें लोकदेवता के रूप में पूजते हैं. उनकी स्मृति में कोलू (फलौदी, राजस्थान) में प्रतिवर्ष मेला भरता है.

पाबूजी को राजस्थान में ऊंट लेकर आने का श्रेय भी दिया गया. जिसके कारण उन्हें ऊंटों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है. प्रदेश के भोपे-भोपियां रात्रि में पाबूजी की फड़ लगा कर उन्हें प्रसन्न करते हैं. उनकी फड़ पूरे राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है और यह आज भी प्रचलित है. उनका इतिहास बाबा रामदेव जी से भी पहले का है.

पाबूजी राठौड़ गाय के लिए दे दी कुर्बानी
पाबूजी और जिंदराव खींची की आपस में बनती नहीं थी. जब पाबूजी का सोढ़ी के साथ विवाह हो रहा था तब उनके बहनोई जिंदराव खींची ने विवाह में विघ्न डाला. उन्होंने अपनी पुरानी दुश्मनी के कारण देवल चारणी की गायों को घेर लिया. देवल चारणी ने अपनी गायों को छुड़वाने के लिए सहायता मांगी. जब गाय छुड़वाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने पाबूजी से सहायता मांगी.

गाय के लिए शादी के फेरे से तक छोड़ दी
पाबूजी महाराज ने दो फेरे लिए और जिस समय तीसरा फेरा चल रहा था, ठीक उसी समय केसर कालवी घोड़ी हिनहिना उठी, चारणी पर संकट का समाचार आ गया था. ब्राह्मण कहता ही रह गया कि अभी तीन ही फेरे हुए है चौथा फेरा अभी बाकी है लेकिन कर्तव्य मार्ग के उस वीर पाबूजी राठोड़ को तो केवल कर्तव्य की पुकार सुनाई दे रही थी. जिसे सुनकर वह चल दिए. पाबूजी राठौड़ राजपूत थे इसलिए प्रजा की सेवा उनका क्षत्रिय धर्म था. देवल चारणी के कहने पर वह अपने विवाह को बीच में छोड़ करके गायों को छुड़वाने के लिए चले गए. 

विपत्ति पर याद आ रहे पाबूजी राठौड़
इस निर्णय से उनकी वीरता, प्रतिज्ञा पालन, त्याग, शरणागत वत्सलता एवं गौ रक्षा हेतु बलिदान का परिचय मिलता है. जिंदराव खींची के साथ उनकी दुश्मनी बहुत पुराने समय से चल रही थी जिसकी वजह से उन पर आज यह विपत्ति आई थी. 

पाबूजी अपने बहनोई जिंदराव के खिलाफ युद्ध करते हुए 1276 ईश्वी में कड़े संघर्ष के बाद वीरगति को प्राप्त हो गए. पाबूजी के साथ उनके सभी सैनिक साथी लोग भी शहीद हो गए.पाबूजी की फड़ एक रात्रि जागरण की तरह होती है जो मध्य रात्रि तक चलती है. फड़ में मुख्य कलाकार भोपे-भोपियाँ होते हैं जो पाबूजी के भजन गाते हैं व नृत्य करते हैं.

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लोगों का मानना है कि आज भी जब ऊंट और गायें बीमार हो जाते हैं तो पाबूजी के आशीर्वाद से जब स्वस्थ हो जाते हैं तब क्षेत्रीय लोग उनके स्वस्थ होने की खुशी में पाबूजी की फड़ का आयोजन करवाते हैं. 

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