राजस्थान कांग्रेस के नए प्रभारी के सामने ये 5 चुनौतियां, गहलोत-पायलट की सुलह से शुरुआत
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राजस्थान कांग्रेस के नए प्रभारी के सामने ये 5 चुनौतियां, गहलोत-पायलट की सुलह से शुरुआत

Rajasthan Congress : राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के साथ ही अन्य कोई नेता भी अगर अपनी बात रखना चाहता है, तो सभी के साथ बैठकर बातचीत की जाएगी.

राजस्थान कांग्रेस के नए प्रभारी के सामने ये 5 चुनौतियां, गहलोत-पायलट की सुलह से शुरुआत

Rajasthan Congress : राजस्थान कांग्रेस को सुखजिंदर सिंह रंधावा के रूप में नया प्रदेश प्रभारी मिल गया है. अजय माकन की जगह लेने वाले रंधावा नई जिम्मेदारी मिलने के साथ ही राजस्थान के दौरे पर भी आ गए और भारत जोड़ो यात्रा में भी शामिल हुए. लेकिन भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने वाले रंधावा के लिए राजस्थान में कांग्रेस जोड़ो अभियान में कई चुनौतियां हैं. चुनावी साल से ठीक पहले पार्टी में अलग-अलग गुटों को साधकर एक जाजम पर लाना रंधावा के लिए बड़ा टास्क होगी. लेकिन इससे भी पहले इस्तीफा प्रकरण का निपटारा और विधायक दल की बैठक बुलाना रंधावा के लिए सबसे बड़ी टास्क होगी. उधर रंधावा के आते ही बीजेपी ने भी चुटकी लेना शुरू कर दिया है. विपक्षी पार्टी का कहना है कि प्रभारी बदलने से कांग्रेस के हालात नहीं बदलने वाले.

पंजाब के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखजिन्दर सिंह रंधावा को राजस्थान कांग्रेस का प्रभारी बनाया गया है. तीन बार के विधायक रंधावा राजस्थान के नेताओं से पुराना नाता रखते हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश चौधरी के साथ ही कई नेताओं से रंधावा का तार्रुफ़ है.

राजस्थान में अपने लिए चुनौतियों के सवाल पर रंधावा कहते हैं कि वे कांग्रेस के वफादार सिपाही हैं, लिहाजा कांग्रेस को मजबूत करने का काम उनकी प्राथमिकता होगी. उन्होंने माना कि कई बार नेताओं में आपसी प्रतिस्पर्धा होती है लेकिन ऐसे हालात कई राज्यों में हो जाते हैं. रंधावा ने कहा कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत के साथ ही अन्य कोई नेता भी अगर अपनी बात रखना चाहता है, तो सभी के साथ बैठकर बातचीत की जाएगी.

रंधावा के सामने प्रमुख चुनौतियां -

विधायको के इस्तीफे प्रकरण का निपटारा करना -

रंधावा के सामने सबसे पहली चुनौती 25 सितंबर को हुए इस्तीफे प्रकरण का निपटारा करना है. दरअसल कांग्रेस नेतृत्व के निर्देश पर बीते 25 सितंबर को राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होनी थी, लेकिन वह बैठक नहीं हो सकी. बैठक में आने की बजाय पार्टी के विधायकों के साथ ही सरकार समर्थित कुछ विधायकों ने अपना इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को सौंप दिया था. अब रंधावा के सामने सबसे पहले इस्तीफ़ा प्रकरण का निपटारा करना बड़ी चुनौती होगी. क्या रंधावा विधायकों को इस्तीफे वापस लेने के लिए तैयार कर पाएंगे? क्या स्पीकर सीपी जोशी रंधावा की बात इस मामले में सुनेंगे?

कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाना -

इसके साथ रंधावा के सामने दूसरी बड़ी चुनौती होगी कांग्रेस के विधायक दल की बैठक बुलाना. 25 सितंबर को जो बैठक आहूत की गई थी वह आयोजित नहीं हो सकी. लिहाजा तब से ही विधायक दल की बैठक को लेकर कयास लगाए जाते रहे हैं कि आखिर ऐसा कौन सा नेता है जो सभी विधायकों में तालमेल बिठाकर पार्टी के विधायक दल की बैठक बुलवा सकेगा?

गहलोत-पायलट कैम्प को साध कर एक जाजम पर लाना -

मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमन्त्री सचिन पायलट कैंप को साध कर एक जाजम पर लाना भी रंधावा के सामने चुनौती से कम नहीं है. दरअसल पार्टी में अलग-अलग कैंप की बात भले ही कुछ नेता नहीं मानें, लेकिन अब यह ओपन सीक्रेट हो चुका है. कई बार तो स्थितियां ऐसी आई हैं जब नेता एक दूसरे की तरफ देखते तक नहीं हैं. ऐसे में 2023 के चुनाव में जाने की तैयारी कर रही पार्टी क्या इन हालातों को सुधार पाएगी? रंधावा को जिन अपेक्षाओं के साथ पार्टी आलाकमान ने भेजा है उन पर खरे उतरने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत से ज्यादा कुशल रणनीति की जरूरत होगी.

तीन नेताओं को नोटिस और उस पर आगे की स्थिति स्पष्ट करना -

कांग्रेस पार्टी ने 25 सितंबर को सामूहिक इस्तीफे के प्रकरण के बाद तीन नेताओं को नोटिस भी दिया था. इस मामले में पार्टी नेतृत्व की मंशा क्या है? यह भी रंधावा को ही पार्टी के नेताओं को बतानी होगी. अगर उन नेताओं पर कार्रवाई हो रही है? तो वह बताना. अगर उन्हें क्लीन चिट दी जा रही है? तो उस पर बात करना और तीसरे विकल्प के रूप में उन्हें केवल हिदायत देकर छोड़ा जा रहा है, तो उस पर बात करना भी रंधावा की ही जिम्मेदारी होगी.

चुनावी साल में ज़िलों का संगठन नेतृत्व विहीन -

इसके साथ ही चुनावी साल में कांग्रेस का संगठन ज़िला स्तर पर नेतृत्व विहीन दिख रहा है. संगठन में नियुक्तियां नहीं हुई हैं. कांग्रेस में 25 से ज्यादा संगठन के जिले खाली पड़े हैं. ऐसे में संगठनात्मक नियुक्तियां करवाकर पार्टी को नीचे तक मजबूत बनाना भी रंधावा के लिए चुनौती होगी.

हालांकि जयपुर एयरपोर्ट पर उतरते ही मीडिया से बातचीत में रंधावा कहते हैं कि राजस्थान के हालात ज्यादा चिंताजनक नहीं हैं. वे यह भी कह चुके हैं कि भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान से विदा होने के बाद सभी पक्षों से सभी मुद्दों पर बात करेंगे. इसके साथ ही पंजाब में चुनाव पूर्व हालातों से तुलना पर वे कहते हैं कि पंजाब में चुनाव से पहले समय बहुत कम था, लेकिन यहां थोड़ा समय है और सब के साथ बैठकर सब बातों का समाधान निकाला जाएगा. कांग्रेस के नये प्रदेश प्रभारी सुखजिन्दर रंधावा के दावे अपनी जगह हैं, लेकिन सवाल यही है कि अगर रंधावा राजस्थान में समय पर्याप्त मानते हैं तो क्या वे अपना मिशन शुरू करने में अभी थोड़ा और वक्त लगाएंगे?

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