अभिनेता इरफान खान की याद में Jaipur में शुरू हुआ देश का पहला इरफान रंग उत्सव
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अभिनेता इरफान खान की याद में Jaipur में शुरू हुआ देश का पहला इरफान रंग उत्सव

दीप प्रज्वलन मशहूर रंगकर्मी एवं आईपीएस अधिकारी सौरभ श्रीवास्तव एवं राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा द्वारा किया गया. इस महोत्सव में विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी सरताज नारायण माथुर मौजूद रहे. खास बात ये है की ये महोत्सव देश का पहला रंग उत्सव है, जो इरफान खान (Irrfan Khan) की याद में शुरू किया गया है. 

इरफान थिएटर फेस्टिवल.

Jaipur: प्रोग्रेसिव फोरम द्वारा आयोजित इरफान थिएटर फेस्टिवल (Irfan Theater Festival) जयपुर के जवाहर कला केंद्र में शुरू हुआ है. दीप प्रज्वलन मशहूर रंगकर्मी एवं आईपीएस अधिकारी सौरभ श्रीवास्तव एवं राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा द्वारा किया गया. इस महोत्सव में विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी सरताज नारायण माथुर मौजूद रहे. खास बात ये है की ये महोत्सव देश का पहला रंग उत्सव है, जो इरफान खान (Irrfan Khan) की याद में शुरू किया गया है. 

फेस्टिवल के पहले दिन नाटक अंधायुग का मंचन हुआ. ये नाटक डॉ. धर्मवीर भारती द्वारा लिखित है और प्रसिद्ध रंगकर्मी सरताज नारायण माथुर द्वारा निर्देशित किया गया है. नाटक के मंचन में महाभारत युद्ध के अठारवे दिन की संध्या वेला में एक युग का उदय हुआ, जिसको धर्मवीर भारती ने आधुनिक युग के परिपेक्ष्य में इस नाट्यकृति के माध्यम से प्रस्तुत किया है. 

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इस कथानक का केंद्रीय पात्र अश्वत्थामा  है. अश्वत्थामा, पिता द्रोण की छल द्वारा मृत्यु और भीम के अधर्म युक्त वार से पराजित दुर्योधन की स्थिति को देख, क्रोध वश पांडवों के वध के लिए आतुर हो जाते हैं. किंतु कौरव सेना में अश्वत्थामा के अतिरिक्त वृद्ध गुरु कृपाचार्य और कृतवर्मा ही जीवित बचे हैं. द्वंद की इस अवस्था में अश्वत्थामा एक उल्लू को सोए हुए कौए का वध करते हुए देखता है और उसी क्षण ये निश्चय कर लेता है कि वह भी सोते हुए पांडवों का वध करेगा. अश्वत्थामा रात्रि में ही पांडव शिविर पर आक्रमण कर  शत्रुओं की हत्या कर देते हैं. 

धर्मवीर भारती ने युद्ध उपरांत जन्मी एक ऐसी संस्कृति का उल्लेख किया है जिसमे कुंठा, निराशा, पराजय, अनास्था, प्रतिशोध,आत्मघात और पीड़ा व्याप्त हो जाती है. मानव मूल्यों के लिए संघर्षरत यह चरित्र पाशविक, मानवी और दैवीय प्रवृतियों से संचालित हैं. इनके माध्यम से मूल्यों का जो संघर्ष सामने आता है, यह नाटक उसे अत्यंत प्रभावशाली रूप से हमारे सम्मुख प्रस्तुत करता है. इस नाट्यकृति को देखने के पश्चात ये प्रश्न स्वाभाविक ही है कि क्या धर्म, नीति, मर्यादा और सत्य किसी ओर था, यह भी विचारणीय है. 

Reporter- Anoop Sharma 

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