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Rajasthan Deputy CM: राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के बाद लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री पद को लेकर सस्पेंस बना रहा. भाजपा आलाकमान ने फैसले के बाद भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी तो दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा राजस्थान के उपमुख्यमंत्री बने. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि उपमुख्यमंत्री की संवैधानिकता कितनी है.
दरअसल दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा ने पद और गोपनीयता की शपथ उपमुख्यमंत्री के तौर पर ली, जबकि संवैधानिक तौर पर मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद का ही जिक्र मिलता है. इससे पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी उपमुख्यमंत्री पद को लेकर सवाल उठाया था, जिसके बाद यह बहस छिढ़ गई कि आखिर उपमुख्यमंत्री पद की संवैधानिकता क्या है?
किसी भी प्रदेश में उपमुख्यमंत्री के पास कोई विशेष जिम्मेदारी नहीं होती है, यह एक प्रतीकात्मक पद है जो बताता है कि उपमुख्यमंत्री कि सरकार में नंबर दो की हैसियत है. राज्यों में एक या दो उपमुख्यमंत्री ज्यादातर बार जातीय समीकरणों को साधने के लिए बनाए जाते हैं. कई बार किसी नेता को संतुष्ट करने के लिए डिप्टी सीएम बना दिया जाता है. आसान भाषा में कहें तो डिप्टी सीएम का होना पार्टी के लिए तो अहमियत रख सकता है, लेकिन राज्य सरकार में उनके होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. संवैधानिक तौर पर राज्य सरकार में ऐसा कोई पद होती ही नहीं है.
देश में उपमुख्यमंत्री बनाने का इतिहास बहुत पहले से मिलता आ रहा है, देश में पहली बार डिप्टी सीएम आंध्र प्रदेश में बनाया गया था और नीलम संजीव रेड्डी पहले उपमुख्यमंत्री बने थे. साल 1953 में मद्रास प्रेसीडेंसी से तेलगु भाषी इलाके को अलग करके आंध्र प्रदेश बनाया गया. इसके बाद टी प्रकाशम प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने नीलम संजीव रेड्डी को अपना उपमुख्यमंत्री बनाया. इसके बाद से ही देश में उपमुख्यमंत्री बनाए जाने का सिलसिला शुरू हो गया.
अब तो कई राज्यों में दो या दो से अधिक उपमुख्यमंत्री भी देखने को मिल जाते हैं. सियासी पंडितों का कहना है कि उपमुख्यमंत्री पद अधिकतर जातीय समीकरण को साधने के लिए बनाए जाते हैं. राजस्थान में भी दो उपमुख्यमंत्री बनाए गए है तो उनमें से एक राजपूत समाज से बनाया गया है जबकि दूसरा दलित समाज से, यानी यहां भी जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की गई है.
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