राजस्थान में चुनाव से पहले साल 1950 से 1952 के बीच 3 नोमिनेट सीएम देख लेता है. हीरालाल शास्त्री, सी एस वेंकटाचारी और जयनारायण व्यास. इसी कड़ी में बात करते हैं जयनारायण व्यास की. पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे
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Rajasthan Third CM, Jai Narayan Vyas : राजस्थान का चुनाव यहां की रिवाजों के चलते भी बाकी राज्यों से अलग हो जाता है. यहां कुल 200 विधानसभा सीटें है, लेकिन, पिछले तीन चुनावों से लगातार 199 सीटों पर मतदान हो रहे है. इसे इत्तेफाक कहे या महज संयोज. इतना ही नहीं हर बार के चुनाव में यहां पर सरकार के बदल जाने की परंपरा भी है. आज बात करते हैं राजस्थान के तीसरे सीएम जयनारायण व्यास.
राजस्थान में चुनाव से पहले साल 1950 से 1952 के बीच 3 नोमिनेट सीएम देख लेता है. हीरालाल शास्त्री, सी एस वेंकटाचारी और जयनारायण व्यास. इसी कड़ी में बात करते हैं जयनारायण व्यास की. राजस्थान की तारीख 26 अप्रैल 1951 की. जयनारायण व्यास पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे और राजस्थान के तीसरे CM बने. हालांकि इस पद पर वो ज्यादा समय तक नहीं रह पाए. चुनाव में मिली शिकस्त के कारण इन्हें हटना पड़ा. कहानी भी बड़ी ऐतिहासिक है.
देश 1947 में आजाद हुआ और इसके ठीक 5 साल बाद देश में पहला आम चुनाव हुआ. 1952 में एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था के तहत लोकसभा और विधासभाओं के चुनाव कराए गए थे. उस समय राजस्थान के सीएम जयनारायण व्यास थे. जयनारायण व्यास उस समय साजस्थान के सिटिंग सीएम थे. वे राजस्थान में दो जगह से चुनाव लड़ रहे थे. ये सीट थी जालौर-ए और दूसरी जोधपुर शहर-बी सीट थी. इन दोनों ही सीट से व्यास अपनी जीत को लेकर ऑवर कॉन्फिडेंट थे. नतीजा सिफर निकला और व्यास दोनों ही सीट से चुनाव हार गए.
हांलाकि पार्टी चुनाव में160 में से 82 सीटों पर जीत का परचम लहराया था. कांग्रेस पार्टी को एक तरफ जीत की खुशी थी तो दूसरी तरफ व्यास की हार का गम भी था. क्योंकि सालभर पहले ही इस खेमे ने हीरालाल शास्त्री को हटाकर जयनारायण व्यास को सीएम के पद पर बिठाया था.
जोधपुर के माचिया किले में अंग्रेजों ने माचिया किले में दिसम्बर 1942 से अगस्त 1943 (करीब 8 महीने) तक 32 स्वतंत्रता सेनानियों को नजरबंद रखा गया था. उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में जयनारायण व्यास भी नजरबंद थे.
1933 में जेल से रिहा होने के बाद व्यास ने अखिल भारतीय देशी राज्य प्रजा परिषद का गठन किया. जवाहर लाल नेहरू को इसका अध्यक्ष बनाया गया और जयनारायण ने सचिव के पद पर काबिज होकर काम संभाला. व्यास की गतिविधियों का केंद्र जोधपुर के बदले मुंबई हो गया. यहीं पर उन्होंने 'अखंड भारत' नाम का अखबार शुरू किया.
आलम ये था कि दिन में अखबार बेचते का काम करते और रात में उसी बचे हुए अखबार को बिछाबन बनाकर समंदर किनारे सोते थे. जयनारायण कई बार पैसे कमाने के लिए फिल्मों में काम करने का मन बनाये थे.
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किसी तरह दो साल बीत गए. अंत में अखबार भी बंद हो गया. आखिरकार व्यास जी ने जोधपुर लौटने का मन भी किया. इधर, जोधपुर के प्रधानमंत्री डोनाल्ड फील्ड ने उनको राज्य से बदर कर रखा था. व्यास जी ने फिर भी मुंबई से लौटने लगे लेकिन पुलिस ने उन्हें ट्रेन से उतरने नहीं दिया और अजमेर के ब्यावर के लिए रवाना कर दिया. यहां वे दो साल काटे फिर पिताजी की तबीयत बिगड़ी तो राजशाही कुछ पिघलती नजर आई.
जिसके चलते जयनारायण व्यास को जोधपुर वापसी की इजाजत दे दी गई. नियति कुछ और ही थी, इसके वापसी के कुछ दिनों बाद पिता ची दुनिया से चल बसे. अपने मन को मारकर जयनारायण वापस नहीं गए और मारवाड़ लोकपरिषद के काम में जुट गए. अंग्रेजी हुकुमत ने स्थानीय निकाय चुनाव करवाए, जहां व्यास नगरपालिका अध्यक्ष चुने गए.
फिर भारत छोड़ो आंदोलन का वक्त आया. व्यास जी के पद का कोई मतलब नहीं रह गया. फिर जेल यात्रा शुरू हो गई और प्रधानमंत्री डोनाल्ड से तनातनी भी हुई. साल 1945 में जेल से सभी राजनीतिक कैदी रिहा हुए. देश में अब आजादी की बात चलने लगी.
ये वो वक्त था जब जोधपुर के कद्दावर नेता जयनारायम व्यास की तूती बोलती थी. एक घटनाक्रम में डोनाल्ड फील्ड की शिकायत जयनारायम व्यास ने पंडित नेहरू को चिट्ठी लिखकर की. पंडित नेहरू ने चिट्ठी मिलने और शिकायत सुनकर जोधपुर पहुंचे. फिर क्या था.... सीधे महाराजा उम्मेद सिंह से मुलाकात की थी और बिना किसी देरी के डोनाल्ड फील्ड को पद से हटा दिया.
26 अप्रैल 1951 को जय नारायण व्यास राज्य के तीसरे सीएम मनोनीत हुए, पर चुनाव हार गए. किशनगढ़ से विधायक चांदमल मेहता ने इस्तीफा देते हुए जयनारायण व्यास को वहां से उपचुनाव लड़ने का न्योता दिया. व्यास उपचुनाव में जीते और 1 नवंबर 1952 को फिर सीएम बनाए गए.