Jaipur News:राष्ट्रीय मरू नाट्य समारोह 2024 के दूसरे दिन दो नाटक पार्क ओर सरजूपार की मोनालिसा का मंचन किया गया. कार्यक्रम संयोजक केशव गुप्ता ने बताया कि शनिवार दूसरे दिन पहला नाटक हिमाचल से आए नाट्य दल द्वारा मानव कौल लिखित रजित सिंह कंवर द्वारा निर्देशित नाटक पार्क का मंचन किया गया.
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Jaipur News:राष्ट्रीय मरू नाट्य समारोह 2024 के दूसरे दिन दो नाटक पार्क ओर सरजूपार की मोनालिसा का मंचन किया गया. कार्यक्रम संयोजक केशव गुप्ता ने बताया कि शनिवार दूसरे दिन पहला नाटक हिमाचल से आए नाट्य दल द्वारा मानव कौल लिखित रजित सिंह कंवर द्वारा निर्देशित नाटक पार्क का मंचन किया गया.
मानव कौल द्वारा लिखित नाटक पार्क में एक युवक गांधी पार्क की एक बेंच पर बैठ कर डाक्टर का इंतजार कर रहा है. तभी एक अन्य उसे उस बेंच से जबरन अपदस्थ कर देता है. वह दूसरी बेंच पर जा बैठता है लेकिन एक साईस और संगीत का शिक्षक जो ‘गब्बर सिंह’ के नाम से कुख्यात है, वह भी उसी बेंच पर बैठना चाहता है, क्योंकि वह वहां आकर रोज बैठता है. अब उस बेंच पर किसका दावा मजबूत है.
इसका फैसला वह व्यक्ति करना चाहता है. जिसने पहले ही उस को अपदस्थ किया था. वह अपनी नींद पुरी करने के लिए इस मसले का शीघ्र हल चाहता है. चुटीले संवाद, हास्य और सधे अभिनय से नाटक गति को बनाये रखता है. पार्क धीरे धीरे अलग रूप लेने लगता है और कुछ जीवंत सवालों की तह में जाने लगता है. सहज रूप से फिलस्तीन, तिब्बत, कश्मीर इत्यादि ऐसे ही कुछ स्थल है जिनके उदाहरणों से तर्क वितर्क होता है. कुछ दिलचस्प संवादों से अधिकार जमाया जाता है.
शाम की दूसरी प्रस्तुति फरीदाबाद से आये नाट्य दल ने नाटक सरजूपार की मोनालिसा से करी. नाटक दी समाज में जाति प्रथा के कड़वे सच को सामने रखता है. समाज में मानी जाने वाली निचली जाति में पैदा हुई एक लड़की की पीड़ा को उजागर करती है और उसके माध्यम से समाज के तथाकथित सवर्ण वर्ग द्वारा सरकारी अमले के दुरूपयोग को भी सामने रखती है.
ठाकुरों के लड़के द्वारा एक लड़की के साथ किए गए कुकृत्य को सही साबित करने के लिए पुलिस प्रशासन का सहारा लिया जाता है. इसे सही साबित करने के लिए एक युवक पर चोरी का झूठा आरोप लगाकर मारा-पीटा जाता है और जब इतने से भी संतुष्टि नहीं मिलती तो ग़रीबों की झोपड़ियों में आग लगाकर उनका घर तक जला दिया जाता है.
उन्हें जेल में डालकर जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता है. उन पर किसी भी हद तक रौब झाड़ कर उन्हें मरने तक के लिए छोड़ दिया जाता है. इन दो पंक्तियों से आप नाटक के दर्द को महसूस कर पाएंगे. कह दो इन कुत्तों के पिल्लो से कि इतराएं नहीं, हुक्म जब तक मैं न दूं कोई कहीं जाए नहीं.
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