जयपुर के केशव विद्यापीठ में RSS सरसंघ चालक ने ईसाई मिशनरियों व घुमंतु समाज को लेकर कही यह बड़ी बात
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जयपुर के केशव विद्यापीठ में RSS सरसंघ चालक ने ईसाई मिशनरियों व घुमंतु समाज को लेकर कही यह बड़ी बात

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ मोहनराव भागवत ने शुक्रवार को राष्ट्रीय सेवा संगम का उद्घाटन किया. इस मौके पर संघ के सर संघचालक डॉ  मोहनराव भागवत ने कहा कि सेवा का पैमाना नहीं, लेकिन हिंदू साधू-संत देश में ईसाई मिशनरियों से ज्यादा सेवा कर रहे हैं. 

जयपुर के केशव विद्यापीठ में RSS सरसंघ चालक ने ईसाई मिशनरियों व घुमंतु समाज को लेकर कही यह बड़ी बात

Jaipur News: देशभर में विभिन्न सेवा कार्यों से जुड़े लोगों का जयपुर के केशव विद्यापीठ में महाकुंभ शुरू हुआ. इस मौके पर संघ के सर संघचालक डॉ  मोहनराव भागवत ने कहा कि सेवा का पैमाना नहीं, लेकिन हिंदू साधू-संत देश में ईसाई मिशनरियों से ज्यादा सेवा कर रहे हैं. साथ ही देश के घुमंतु समाज को लेकर कहा कि जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी, झुके नहीं, शासकों ने अपराधी घोषित किया, आज उन्हें भूल गए, लेकिन स्वयंसेवकों ने उनकी सुध ली है.

जयपुर के केशव विद्यापीठ में महाकुंभ शुरू

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ मोहनराव भागवत ने शुक्रवार को राष्ट्रीय सेवा संगम का उद्घाटन किया. इस तीन दिवसीय सेवा संगम में देशभर से करीब आठ सौ संस्थाएं तथा तीन हजार से ज्यादा सेवा कार्य करने वाले प्रतिनिधि शामिल हुए हैं. उद्घाटन समारोह में बाल त्यागी संत उमेशनाथ महाराज, पिरामल ग्रुप के अजय पिरामल, उद्योगपति नरसी कुलारिया, संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले सहित वरिष्ठ प्रचारक, एस्सेल ग्रुप के चैयरमेन सुभाष चंद्राजी सहित कई संत और राजनीति से जुड़े प्रतिनिधि मौजूद थे.

डॉ भागवत ने कहा कि हमारे देश में सेवा का मंत्र पहले से दिया गया है, लेकिन कभी सेवा शब्द आने पर सामान्यता देश के प्रबुद्धजन मिशनरियों का नाम लेते हैं. दुनियाभर में ईसाई मिशनरियां अनेक संस्थाएं, स्कूल, अस्पताल चलाते हैं. सोचा की हिंदू समाज के हमारे संत क्या कर रहे हैं ? ऐसा सोच कर दक्षिण के चार प्रांतों  चैन्नई, कर्नाटक, कन्नड़ भाषी, तेलगू, मलयाली  प्रांतों के आध्यात्मिक क्षेत्र के आचार्य सन्यासी संत सेवा करते हैं, वो मिशनरियों की सेवा से कई गुना ज्यादा हैं.

भागवत ने कहा कि मैं स्पर्धा की बात नहीं कर रहा हूं, उनसे ज्यादा, उनसे कम, मेरा  कोई पैमाना नहीं है. सेवा का कोई पैमाना हो भी नहीं सकता. सेवा, सेवा है सेवा स्पर्धा की बात नहीं, सेवा से कोई काम नहीं निकलता है. सेवा मुनष्यत्व की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है मनुष्य और पशु में क्या अंतर है. पशु को संवेदना होती है. संवेदना सबको होती है, लेकिन संवेदना पर कृति करने का गुण मनुष्य का है उसे करूणा कहते हैं.

डॉ मोहन भागवत ने कहा स्वयंसेवक का स्वभावतया सेवा  संघ स्थापना के समय से ही करते हैं. संघ के मूल में डॉ हैडगैवार है उससे पहले ही हैं. जहां- जहां समाज में जहां जरूरत हैं अभाव की पूर्ति करने की बात है. वहां-  वहां दौड़कर अपनी शक्ति लगा दो. जगह जगह स्वयंसेक अपनी शक्ति बुद्धि के अनुसार  सेवा में लग जाते हैं. हेडगेवार की जन्मशती पर सोचा गया देश में इतना काम हो रहा है व्यवस्था में लाएं कार्य का विस्तार करें. तब से संघ ने सेवा विभाग के कार्य का प्रारंभ हो गया. संघ की शोखाओं में आने वाले स्वयंसेवकों में सेवा की मानसिकता जागृत करना.भागवत ने कहा जैसे देश की सुरक्षा एक विषय है है वैसे से देश वासियों की सेवा भी दूसरा विषय है, उसकी आवश्यकता है.

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भागवत ने कहा कि मेरे पास जो सबको देकर बचता है उसमें मेरा चले, क्योंकि मैं और बाकी अलग नहीं है सबमें मैं हूं और सब मुझमे में है.  सेवा मनुष्य की स्वाभाविक अनुभूति है सेवा सत्य की प्रत्यक्ष अनुभूति है. इस भाव से सेवा होनी चाहिए इस भाव से सेवा होती है तो देश में समरसता का साधन मिलता है. देश में सब मिलकर हमारा समाज हैं सब मिलकर समाज हैं एक नहीं हैं तो हम अधूरे हो जाएंगे. सब साथ  तो पूरे हो जाएंगे. 

दुर्भाग्य से यह परिस्थिति आई है. कारण क्या है क्यों है चिकित्सा करने वाले करें हमें यह विषमता नहीं चाहिए एक राष्ट्र के अंग होने के नाते. काम के अनुसार रूप रंग निराला होता है लेकिन सब में एक ही प्राण है। 

शरीर के जैसे समाज को होना चाहिए - डॉ मोहन भागवत

सर संघ चालक डॉ भागवत ने कहा कि शरीर के जैसे ही समाज को होना चाहिए. पैरों में कील चुभी जहां सुई चुभी वहां शरीर के सब अंग उसी ओर जाते हैं. सारा शरीर एक भाग के दुख के कारण संवेदना से भर जाता है तो  समाज का एक अंग उपेक्षित दुबला है उसको नीचे का स्थान ये कैसे हो सकता है. एक अंग ठीक नहीं तो उसे स्वस्थ शरीर नहीं कह सकते. अपने देश को अच्छा विश्व गुरु बनाना है तो उसका प्रत्येक अंग सामर्थ्यशील बनाना है. समाज को इसकी आवश्ययकता है कि समाज मेरा अपना है सारे समाज का छोटा सा रूप  मेरे अंदर है मैं इसको देखता हूं सत्य के आधार पर सहज सेवा है. मेरे समाज राष्ट्र का कोई अंग दुर्बल पिछड़ा नहीं रहने दूंगा वो मेरे जैसा ही है कार्य के बंटवारे में अलग हो सकता है. मेरा जितना महत्वूर्ण कार्य है उसका काम भी उतना ही प्रतिष्ठापूर्ण है.

सेवा स्वस्थ समाज बनाती है, सेवा में अहंकार की जगह नहीं- मोहनराव भागवत

भागवत ने कहा कि सेवा स्वस्थ समाज को बनाती है लेकिन पहले हमको स्वस्थ करती है.  सेवा में अहंकार की जगह नहीं है. समाज में त्याग की कदर होती है. सहज सेवा में संकल्प जुड़ जाता है देश को बड़ा करने का. समाज का एक अंग पिछड़ गया तो पूरा समाज पिछड़ गया.
भागवत ने कहा कि हमको जो भी मिलता है वो समाज से सेवा के लिए मिला है. सबकी सेवा ऐसी होनी चाहिए की वो लेते लेते दूसरों को देने वाला बन जाए.हम सबकी सेवा ऐसी होनी चाहिए आज मजबूरी मतें वो लेने वाले बन रहे हैं कल वो देने वाले बनेंगे.  एक दूसरे को समझ कर आगे बढ़ाना होगा तब दुनिया के सामने उदाहरण बन पाएंगे.

 
आजादी की लड़ाई लड़ी, लेकिन उपेक्षित - मोहनराव भागवत

संघ के सरसंघ चालक डॉ भागवत ने कहा कि बहुत समय पहले समाज का एक वर्ग उपेक्षित, पीछे है यह कहते हैं. उनका कहीं न कहीं नाम  तो है उनका राशन कार्ड मतदान हैं.समाज का  एक वर्ग है, थोड़ा है जिनका नाम कहीं नहीं है घुमंतु है. एक जगह नहीं रहते हैं राशनकार्ड नहीं है वोटर कार्ड भी नहीं हैं. ऐसा क्यों है कारण जो भी उसकी चिकित्सा करने वाले करते रहे, लेकिन  देश की स्वतंत्रता के लिए निरंतर लड़ते रहे,  देश के समाज में सांस्कृतिक आधार पर विभिन्न विधाओं का प्रचार करने के लिए घर छोड़ दिया.

 भागवत ने कहा कि वो झुके नहीं स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे तो विदेशी शासकों ने उनको अपराधी घोषित कर दिया. उनका नाम तक मिटा दिया,  संघ का प्रचंड काम है लेकिन हमारा समाज कही इससे बड़ा है. सर्वांग सुंदर समझ खड़ा करने के किए हमरे देश में मिलकर पूरक बनकर चले ऐशा करना है.

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