जयपुर में हर महीने सात करोड़ रुपये कचरा संग्रहण पर खर्च होता है. इसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है.
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Jaipur: जयपुर और इंदौर में कचरा संग्रहण पर बराबर खर्च होता है, लेकिन जयपुर (Jaipur News) पर गंदगी का दाग नहीं मिट रहा है. इंदौर के लगातार पांच साल से स्वच्छता रैंकिंग में अव्वल आने के पीछे नगर निगम की सक्रियता है. इतर राजधानी जयपुर सहित अन्य निकायों में स्थिति यह है कि कोई भी निकाय कचरा निस्तारण पर गंभीरता से काम नहीं कर रहा. इंदौर (Indore News) घर-घर कचरा उठवाने के नाम पर हर महीने 8 करोड़ खर्च करता है. वहीं जयपुर में हर महीने सात करोड़ रुपये कचरा संग्रहण पर खर्च होता है. इसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा है.
सियासत की गंदगी ने हमारे गुलाबी नगरी की सफाई पर दाग लगा दिया. जयपुर नगर निगम (Jaipur Nagar Nigam) के बंटवारे के बाद पहली बार हुए स्वच्छता सर्वे (Swachh Survekshan 2021) में हेरिटेज को 32वां और ग्रेटर को 36वां स्थान मिला है. यह रैंकिंग देश के 10 से 40 लाख आबादी वाले 48 शहरों के सर्वे में मिली है. हालांकि 2020 (जब निगम एक था) में हुए सर्वे में जयपुर निगम (Jaipur Nigam) की 28वीं रैंक (सर्वश्रेष्ठ रैंक) थी.
जबकि इंदौर के लगातार सफाई में अव्वल आने की पीछे नगर निगम (Nagar Nigam) की सक्रियता है. जनप्रतिनधि से लेकर अधिकारी तक बेहद सक्रिय रहते हैं. वहीं, राजधानी जयपुर सहित अन्य निकायों में एक जैसा ही हाल है. स्थिति यह है कि कोई भी निकाय कचरे निस्तारण को लेकर गंभीरता से काम नहीं कर रहा है. इंदौर घर-घर से कचरा उठवाने के नाम पर हर महीने आठ करोड़ रुपये खर्च करता है. इसका प्रभाव स्वच्छता की रैंकिंग पर साफ दिखाई देता है. पिछले पांच सर्वेक्षणों में पहले स्थान पर आ रहा है.
वहीं, राजधानी जयपुर में हर महीने सात करोड़ रुपये घर-घर कचरा संग्रहण पर खर्च करता है. इसके बाद भी स्थिति में कोई सुधार होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. हैरानी की बात यह है कि राजधानी में सफाई के नाम पर 450 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होते हैं. इंदौर में नगर निगम ही अपने स्तर पर सफाई के सारे काम करता है. जबकि राजधानी में सफाई व्यवस्था को ठेके पर दे दिया है. स्थिति यह है कि निगरानी का काम भी ठीक से नहीं हो पाता है.
दोनों निगम में अलग-अलग बोर्ड गठित होने के एक साल बाद आए स्वच्छता सर्वे के परिणामों को देखें तो 2020 के मुकाबले हेरिटेज 3 और ग्रेटर 8 पायदान नीचे लुढ़क गया है. इसके पहले 2019 में 44वीं, 2018 में 39वीं और 2017 में 215वीं रैंक आई थी. हैरानी की बात यह कि 3 चरणों में होनी वाले सफाई सर्वे में हम पब्लिक फीडबैक (Public Feedback) में तो 40% तक नंबर कटे. लोग इतने नाराज थे कि उन्होंने फीडबैक तक नहीं दिया.
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इंदौर शहर में 1200 टन कचरे (Garbage) का रोज निस्तारण किया जाता है. 400 टन कचरे को खत्म करने के लिए निगम प्लॉन्ट पर भेजता है. इनसे निगम को सालाना ढाई करोड़ रुपये का राजस्व भी मिलता है. वहीं, 700 टन गीले कचरे से सीएनजी (CNG) और खाद बनती है. 45 करोड़ निगम कमाता है. सीएनडी वेस्ट (घर निर्माण के दौरान निकलने वाला मलवा) का निस्तारण किया जा रहा है. इससे टाइल बनाई जाती हैं. ये फुटपाथ बनाने के लिए काम में ली जाती है. इससे निगम को 20 करोड़ रुपये की आय भी हो रही है.
जयपुर में 1500 टन कचरा रोज निकलता है. इसमें से महज 300 टन कचरे का निस्तारण हो पाता है. वो भी नियमित रूप से नहीं होता. बाकी 1200 टन कचरा डम्पिंग यार्ड (Dumping Yard) पर जाकर डाला जाता है. इसी वजह से कचरे के पहाड़ बढ़ते जा रहे हैं. कचरा उठाने की व्यवस्था भी सही नहीं है. कई जगह तो नियमित रूप से हूपर ही नहीं आते.
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जयपुर में सीएनडी वेस्ट के निस्तारण को लेकर लम्बे समय से बैठकों में ही बातें हो रही हैं. अब 300 टन क्षमता के प्लॉन्ट को लगाने की प्रक्रिया शुरू हुई है. हैरिटेज नगर निगम (Heritage Nagar Nigam) ने जमीन का आवंटन किया है. इसके अंक ही जयपुर को स्वच्छता सर्वेक्षण में नहीं मिल पाते हैं.
इंदौर शहर में संसाधन
-अपने स्तर पर संसाधन जुटाए
-हर महीने खर्चा- आठ करोड़ रुपये
-700 हूपर, 150 डंपर और बड़ी गाडियां, 25 रोड स्वीपिंग मशीनें, निगरानी के लिए अफसरों के पास 22 गाड़ियां और सात् ट्रांसफर स्टेशन
जयपुर शहर में खर्चा और संसाधन
-हर महीने खर्चा-सात करोड़ रुपये
-540 हूपर, आठ रोड स्वीपिंग मशीनें हैं. ये सभी किराए पर हैं. हर महीने इन मशीनों का 10 लाख रुपए किराया दिया जाता है. अफसरों की निगरानी के नाम पर खानापूर्ति होती है. 15 ट्रांसफर स्टेशन शहर भर में बना रखे हैं.ट
-निगम ने डेढ़ करोड़ रुपये के 30 हूपर खरीदकर बीवीजी कम्पनी को किराए पर भी दे रखे हैं.
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राजधानी में दोनों नगर निगम मिलकर भी सफाई व्यवस्था (cleaning system) को दुरुस्त नहीं रख पा रहे हैं. स्वच्छता सर्वेक्षण के परिणामों ने यह एक बार फिर साबित कर दिया है कि राज्य सरकार (State Government) ने 500 करोड़ से अधिक का खर्चा कर राजधानी में एक अतिरिक्त निगम बनाया, लेकिन उसका सीधा फायदा जनता को होता हुआ नजर नहीं आ रहा. राजधानी में दो निगम होने के बाद दो रैंक आई. पिछले साल जब मेयर, पार्षद व निगम का बोर्ड नहीं था तो अफसरों ने खुद के बूते 28वीं रैंक हासिल की थी और अब ग्रेटर निगम 8 रैंक नीचे चला गया. जबकि हेरिटेज निगम 4 रैंक नीचे आकर 32 रैंक पर आ पाया.
वजह साफ है ग्रेटर मेयर-बोर्ड भाजपा (BJP) का रहा तो मेयर, पार्षदों व कमिश्नर के विवाद का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा और सफाई सुधरने की बजाए बिगड़ी. हेरिटेज-ग्रेटर दोनों निगमों में सियासत इतनी हावी रही कि निगम अफसर अपना मूल काम सफाई भी भूल गए. यहीं वजह रही कि हम सफाई की रैंकिंग सुधारने की बजाए अपनी पुरानी रैंक भी कायम नहीं रख सके. इस रैंक में दोनों निगम सुधार कर सकते थे, लेकिन सच्चाई यह है कि सर्टिफिकेशन के 1100 अंकों में राजधानी के दोनों निगम भाग ही नहीं ले पाए. परिणाम आने के बाद दोनों महापौर ने अगले सर्वेक्षण में बेहतर करने का दावा किया. जबकि पिछले एक वर्ष से दोनों ही सर्वेक्षण में अव्वल आने की बात कर रही थीं.
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बहरहाल, दो नगर निगम होने के बाद पहली बार रैंक आई है. इसमें यह साबित हो गया कि नगर निगम सफाई व्यवस्था को लेकर गंभीर नहीं हैं. ग्रेटर निगम में तो पिछले एक वर्ष में सियासत ही हावी रही है. पहले भाजपा की महापौर और पार्षदों का निलंबन हुआ और उसके बाद भी स्थिति सामान्य होती नहीं दिखाई दे रही कार्यवाहक महापौर बेहतर ढंग से काम नहीं कर पा रही हैं. कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पार्षद भी विकास कार्य न होने का आरोप लगाते रहे हैं. वहीं, हेरिटेज निगम की रैंक जरूर ग्रेटर से बेहतर है. लेकिन व्यवस्थाओं में सुधार के लिए काफी काम करना होगा. यहां विपक्ष निगम के कांग्रेसीकरण होने का आरोप लगाता रहा है.