Lal krishna advani Bharat ratna: देश के पीएम मोदी ने शनिवार को भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से बीजेपी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी को सम्मानित करने के लिए दिए जाने की घोषणा की है. इसी के साथ उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत मरूधरा की भूमि से की थी.
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Lal krishna advani Bharat ratna: आठ नवंबर, 1927 को वर्तमान पाकिस्तान के कराची में बीजेपी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी का जन्म हुआ था. 1980 में भाजपा बनने के बाद से महासचिव पद पर रहते हुए पार्टी को राष्ट्रीय पहचान दिलाई. उनके इस योगदान हमेशा से सराहा गया. लेकिन शनिवार की सुबह बीजेपी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी के लिए हमेशा याद रहने वाली है. क्योंकि देश के पीएम मोदी ने देशहित में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की.
10 साल तक पार्टी के रहें अध्यक्ष
आडवाणी 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से 1986 तक पार्टी के महासचिव रहे. इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्होंने सम्भाला. इस तरह 10 साल पार्टी के अध्यक्ष पद रहते हुए उन्होंने पार्टी के हर उत्तरदायित्व को बाखूबी निभाया. और उनके इसी अथक प्रयास का ही परिणाम है कि देश में जनता पार्टी का परचम अधिकांश राज्यों में फहरा रहा है.
आडवाणी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य भी हैं. इसी के साथ उनका राजस्थान से भी बेहद गहरा नाता रहा है और उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत मरूधरा की भूमि से की थी.
बंटवारा के बाद ली राजस्थान की डगर
लालकृष्ण आडवाणी जब केवल 14 साल थे, तब साल 1941 में वह RSS के प्रचारक बन गए थे. देश का बंटवारा होने से पहले वो साल 1947 तक कराची ( जोअब पाकिस्तान में) संघ की शाखाएं लगाते थे. बंटवारा होने के बाद वो प्रचारक बनकर राजस्थान आए. यहां अलवर, भरतपुर, कोटा, बूंदी और झालावाड़ जिलों में उन्होंने साल 1952 तक संघ के लिए निरंतर काम किया.
10 सालों तक राजस्थान में रहे और जनसंध को किया मजबूत
1948 में जब आरएसएस पर रोक लगी तो उसके बाद एक राजननीतिक संगठन की स्थापना की गई जिसका नाम जनसंघ रखा गया. जिसे स्थापित करने के लिए साल 1952 में जनसंध के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आडवाणी को राजस्थान भेजा गया था. जिसके बाद से लगातार 10 सालों तक राजस्थान में जनसंघ की जड़ों को गहरा करने लाल कृष्ण आडवाणी की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जो आज तक राजनीति में मिसाल पेश करती है.
नानाजी की हवेली में जनसंघ का बना कार्यालय
राजस्थान में जनसंघ को मजबूत करने के लिए आडवाणी ने साल 1952 में जयपुर में प्रसिद्ध हवा महल के करीब पुरानी राजस्थान विधानसभा के सामने धाभाई जी की हवेली में जनसंघ का कार्यालय बनाया. जहां से वहजनसंघ की गतिविधियों को चलाते थे. कुछ समय तक वहां पर काम करते फिर वह गुलाबी नगरी के पुराने शहर में चौड़ा रास्ता में नानाजी की हवेली में जनसंघ के कार्यालय को ले गए. यही हवेली बाद में आगे चलकर संघ का मुख्यालय भी रही.
नानाजी का जनसंघ से था गहरा लगाव
नानाजी स्वयं जागीरदार थे और संघ से उनका गहरा जुड़ाव रखते थे. इसी कारण जनसंघ के नेताओं का नानाजी की हवेली में आना-जाना था. तो जनसंघ से जुड़े होने कारण आडवाणी नानाजी की हवेली में करीब 10 साल तक रहे और जनसंघ के कार्य को आगे बढ़ाकर राजस्थान में पहचान दिलाई.
भैरोंसिह शेखावत से लेकर भानु कुमार शास्त्री पर दिखाया भरोसा
भारत के 11 वें उपराष्ट्रपति रहे भैरोंसिह शेखावत को राजस्थान विधानसभा के साल 1952 में हुए पहले चुनाव में आडवाणी ने ही चुनाव का टिकट दिया था. इस चुनाव में भैरोंसिंह शेखावत समेत 8 विधायकों ने आडवाणी के भरोसे को कायम रखा और राजस्थान विधानसभा चुनकर पहुंचे. यही पहले 9 विधायक थे जनसंघ के जो विधानसभा पहुंचे. इसीलिए यह कहना गलत नहीं है कि आडवाणी की दूरदृष्टि के कारण ही भैरोंसिंह शेखावत राजनीति में आ पाए थे. वहीं बाद में राजस्थान के मुख्यमंत्री और देश के उप राष्ट्रपति भी रहे. फिर जब साल 1952 में लोकसभा का चुनाव हुआ तो आडवाणी ने भानु कुमार शास्त्री को टिकट दिया था, शास्त्री बाद में राजस्थान में विधायक और यहां से सांसद भी रहे.
आडवाणी के रहते ही जनसंघ ने राजस्थान में जागीर प्रथा को समाप्त करने वाले राजस्थान भूमि सुधार एवं जागीर पुनर्भरण अधिनियम 1952 का समर्थन किया था, जिसके बाद भैरोंसिंह शेखावत और जगत सिंह झाला को छोड़कर शेष 6 जनसंघ विधायकों ने विरोध में पार्टी छोड़ दी थी. तब यूं लगा था कि राजस्थान में जनसंघ समाप्त हो जाएगा, लेकिन आडवाणी और भैरों सिंह शेखावत की राजनीतिक कुशलता ने पार्टी को गिरने नहीं दिया.
लालकृष्ण आडवाणी को खिचड़ी खाना बहुत पसंद था. वो जयपुर में नानाजी की हवेली पर कोयले की सिगड़ी रखते थे, जिस पर अक्सर खिचड़ी बनाकर खाया करते थे. आडवाणी को चाय पीने का भी शौक था. संघ कार्यालय के पास एक सिंधी की चाय नाम की दुकान थी, जहां वो अक्सर चाय पिया करते थे.