Sakat Vrat Katha 2023: सकट चौथ व्रत की ये कहानियां पढ़ना है जरूरी, होगी मन मांगी मुराद पूरी
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Sakat Vrat Katha 2023: सकट चौथ व्रत की ये कहानियां पढ़ना है जरूरी, होगी मन मांगी मुराद पूरी

Sakat Vrat Katha 2023 in Hindi: सकट चौथ या संकष्टी चतुर्थी व्रत संतान की लंबी आयु और खुशहाली के लिए रखा जाता है. आज इन कहानियों को पढ़ने और सुनने से आपकी हर मनोकामना पूरी होगी.

Sakat Vrat Katha 2023: सकट चौथ व्रत की ये कहानियां पढ़ना है जरूरी, होगी मन मांगी मुराद पूरी

Sakat Chauth 2023 Vrat Katha in Hindi: आज 10 जनवरी 2023 को संकष्टी चतुर्थी या सकट चौथ व्रत है. माना जाता है आप कितनी भी पूजा कर लें लेकिन आज व्रत का फल तभी मिलेगा जब सकट चौथ व्रत कथा को सुना या पढ़ा जाएगा.

सकट चौथ का व्रत बिना व्रत कथा के पूरा नहीं माना जाता है. जिसमें बुढ़िया माई की कहानी, भगवान श्रीगणेश से जुड़ी कथा और माता पार्वती-भगवान शंकर आदि से जुड़ी कहानियां सुनी जाती हैं.

पहली सकट चौथ व्रत कथा 
एक बुढ़िया थी जो बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थीं. उसके एक बेटा और बहू थे. वह बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी ऐसे में एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले-
'बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।'
इस पर बुढ़िया बोली- 'मुझसे तो मांगना नहीं आता. कैसे और क्या मांगू?' 
तब गणेशजी बोले कि 'अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले' 
तब बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- 'गणेशजी कहते हैं 'तू कुछ मांग ले' बता मैं क्या मांगू?' 
पुत्र ने कहा कि 'मां! तू धन मांग ले।' 
बहू से पूछा तो बहू ने कहा कि 'नाती मांग ले।' 

तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कर रहे हैं. इसलिए बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- 'बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जिएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे. तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी बाकी की जिंदगी आराम से कट जाए'

इस पर बुढ़िया बोली गणेश जी को बोली की यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता, दें और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें दें' 

बुढ़िया से गणेशजी बोले- 'बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिल जाएगा.

बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वो सबकुछ मिल गया. हे गणेशजी महाराज! जैसे तुमने उस बुढ़िया मां को सबकुछ दिया, वैसे ही सबको देना.

दूसरी सकट चौथ व्रत कथा 
मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं. स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर नहीं आ जाउं. किसी को भीतर आने की मत आने देना. गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा दिया. उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए, लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने को कहा. जिसपर भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया और फिर गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार कर दिया, जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी.

स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई थी. ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दीजिए. इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगाया. इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिल गया. तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड है और तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करती हैं.

तीसरी सकट चौथ व्रत कथा
एक नगर में एक कुम्हार रहता था. एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पक सका. परेशान होकर वो राजा के पास गया और बोला कि महाराज पता नहीं क्यों आंवां पक ही नहीं रहा है. राजा ने राजपंडित को बुलाकर इसका कारण पूछा. राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवां पक सकता है'' राजा का आदेश हो गया. बलि आरम्भ हुई. जिस परिवार की बारी होती, वो अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता था. इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई और बुढि़या के एक ही बेटा था जो उसके जीवन का सहारा था, पर वो राजा को मना नहीं कर सकती थी. दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वो भी सकट के दिन मुझ से छिन जाएगा. तभी उसको एक उपाय सूझा. उसने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठना. सकट माता तेरी रक्षा जरुर करेंगी.

सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और उसकी मां सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी. पहले तो आंवां पकने में कई दिन लग जाते थे लेकिन इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया था. सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया क्योंकि आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित था. सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बच्चे भी जीवित हो गये. ये देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली. तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है. 

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