Vijaya Ekadashi 2023: विजया एकादशी का व्रत रखने वाले भक्तों को चावल खाना तो दूर घर में चावल पकाना भी वर्जित माना गया है. मान्यता यह भी है कि एकादशी के दिन चावल खाना मांस और रक्त के सेवन करने जैसा माना जाता है. इसके पीछे आध्यात्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी है और इन दोनों का जिक्र आज हम करेंगे.
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Vijaya Ekadashi 2023: एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन श्रीहरि की विधि-विधान के साथ पूजा करने से भक्त को पापों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी व्रत रखा जाता है. इस साल विजया एकादशी 17 फरवरी 2023 को है. गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उत्तम माना गया है. कहा जाता है श्री हरि की कृपा जिस भक्त को मिलती है उसका जीवन धन्य हो जाता है. श्री हरि की कृपा के लिए भक्त विजया एकादशी का व्रत रखते है, लेकिन सवाल ये कि श्री हरि कैसे प्रसन्न होंगे. पूजा विधि के साथ नियम भी है जिसे आप कर श्री हरि को प्रसन्न कर मनबांछित फल पा सकते है.
सनातन धर्म में यूं तो हर व्रत का अपना महत्व है लेकिन एकादशी का विशेष महत्व है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है इसलिए एकादशी को हरि वासर या हरि का दिन भी कहा जाता है. हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में दो एकादशी पड़ती हैं और इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं व व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
विजया एकादशी का व्रत रखने से व्रत के नाम स्वरूप साधक को शत्रु पर विजय प्राप्त करने का वरदान मिलता है. बता दें कि श्रीहरि के शरीर से एकादशी का जन्म हुआ है, यही वजह है कि एकादशी व्रत साल में आने वाले सभी व्रतों में सर्वश्रेष्ठ और उत्तम फल देने वाला माना गया है. तो आइए जानते हैं विजया एकादशी के दिन चावल पकाने से लेकर खाने की मनाही है. अब सवाल यह आता है कि आखिर एकादशी व्रत में चावल क्यों नहीं खाना चाहिए. क्या भगवान विष्णु के इस व्रत में अन्न यानी चावल खाने की क्यों रोक है. इसके पीछे आध्यात्मिक के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी है और इन दोनों का जिक्र आज हम करेंगे.
सबसे पहले धार्मिक मान्यता जानते है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया था, इसके बाद उनके शरीर का अंश पृथ्वी के अंदर समा गये. मान्यता है कि जिस दिन महर्षि का शरीर धरती में समा गया था, उस दिन एकादशी थी और महर्षि मेधा चावल और जौ के रूप में धरती पर अवतरित हुए. यही वजह कि चावल और जौ को जीव मानते हैं इसलिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाया जाता. मान्यता यह भी है कि एकादशी के दिन चावल खाना मांस और रक्त के सेवन करने जैसा माना जाता है. इसलिए एकाजसी के दिन चावल खाना और पकाना वर्जित माना गया है.
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वहीं वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गौर करें तो, चावल में जल तत्व की मात्रा होती है. वहीं जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है और चंद्रमा मन का कारक ग्रह होता है. चावल को खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ जाती है, इससे मन विचलित और चंचल होने लगता है. मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है. यही वजह है कि एकादशी के दिन चावल से बनी चीजों का खाना वर्जित बताया गया है.
मान्यता है कि श्री हरि की विधि-विधान से पूजा-पाठ और व्रत आदि करने से जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं. घर में कभी धन की कमी नहीं होती. भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी जी (Maa Laxmi Ji) भी प्रसन्न हो जाती हैं.