Chaiti Chhath 2023: कब है चैती छठ पूजा, जानें नहाय खाय से लेकर सूर्य को अर्घ्य देने की डेट, पूजा मुहूर्त और महत्व
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Chaiti Chhath 2023: कब है चैती छठ पूजा, जानें नहाय खाय से लेकर सूर्य को अर्घ्य देने की डेट, पूजा मुहूर्त और महत्व

Chaiti Chhath 2023 Date and Time: छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत्र मास में और दुसरा कार्तिक मास में. इस साल नहाय खाय 25 मार्च 2023 को है.षष्ठी देवी माता को देवी कात्यायनी के नाम से भी जाना जाता है.

Chaiti Chhath 2023: कब है चैती छठ पूजा, जानें नहाय खाय से लेकर सूर्य को अर्घ्य देने की डेट, पूजा मुहूर्त और महत्व

Chaiti Chhath 2023 Date and Time: भारत में छठ का पर्व यानी सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है. यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है. पहली बार चैत्र माह में और दूसरी बार कार्तिक माह में मनाया जाता है. चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ जबकि कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिक छठ कहा जाता है. ये पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल देने वाला पर्व है. आइए जानते हैं साल 2023 चैती छठ पूजा की डेट और मुहूर्त.

चैती छठ 2023 तिथि (Chaiti Chhath 2023 )

नहाय खाय (Chaiti Chhath Puja Nahay Khay) - 25 मार्च 2023
खरना (Chaiti Chhath Puja Kharna) - 26 मार्च 2023
अस्तगामी सूर्य (ढ़लते सूर्य) अर्घ्य - 27 मार्च 2023
उदयीमान सूर्य को अर्घ्य - 28 मार्च 2023

नहाय-खाय के साथ चैती छठ पूजा शुरूआत 

नहाय-खाय के साथ चैती छठ पूजा शुरूआत होती है. चैत्र मास के प्रारंभ में ही घर की साफ-सफाई शुरू हो जाती है और घर के सभी लोग शुद्ध शाकाहारी भोजन करते है. नहाय-खाय के दिन व्रती महिलाएं या पुरूष इस दिन व्रत का संकल्प लेती हैं और सेंधा नमक युक्त भोजन में चने की दाल, लौकी की सब्जी, अरबा चावल खाती हैं.

 दूसरे दिन खरना यानी महापूजा

चैती छठ पूजा का दूसरे दिन खरना कहलाता है. इस दिन का विशेष महत्व है. इस दिन बनने वाले प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है. इस दिन शाम को  कड़े नियम के साथ उपले या आम की लकड़ी पर गुड़ की खीर का विशेष पारंपरिक प्रसाद बनाया जाता है और फिर व्रती और सभी घर के सदस्य इसे ग्रहण करते हैं. इस दिन नमक का सेवन करना वर्जित रहता है. इस महाप्रसाद का एक भी दाना छोड़ा नहीं जाता है.  इसके बाद से व्रती का 36 घंटे का कठिन व्रत शुरू हो जाता है. घर कका पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है. छठ के गाने से पूरा वातावरण अद्भूत और आधात्म से सराबोर कर देता है.

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डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा

चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि पर छठ पूजा के प्रथम दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. संध्या अर्घ्य पर डूबते हुए भगवान सूर्य की उपासना की जाती है. व्रती नदी,तालाब या घर पर बने कुंड में खड़े होकर हाथ में बांस से बने टोकरी में ठेकुआ लेकर भगवान सूर्य को दूध, गंगा जल से अर्घ्य देते हैं. छठी मैय्या और सूर्यदेव की पूजा कर अगले सुबह की तैयारी की जाती है.

उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ समापन

छठ पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है.सूर्य अर्घ्य के लिए बांस की टोकरी में ठेकुआ, चावल के बने लड्डू और सीजनल फलों को चढाया जाता है.भगवान सूर्य देव को दूध और गंगाजल का अर्घ्य देकर छठी मैया को प्रसाद चढ़ाया जाता है. इसके बाद व्रती व्रत का पारण करते हैं. घर के सभी लोग व्रती का पैर छूकर आशीर्वाद लेते है.  

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