दादीमां की पुरानी अलमारी में रखा भूरा संदूक जब पोते ने खोला तो उसकी आंखे फट गई
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दादीमां की पुरानी अलमारी में रखा भूरा संदूक जब पोते ने खोला तो उसकी आंखे फट गई

Grand Mother : रात के 12 बज रहे थे लेकिन सचिन को नींद नहीं आ रही थी. छत पर खाट पर लेटा सचिन आसमान में तारे गिन रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि आखिर उसकी प्यारी दादी मां ने आज पहली बार उसपर हाथ क्यों उठाया. आंखों में आंसू लिए सचिन इसी सवाल को मन में लिए सो गया.

दादीमां की पुरानी अलमारी में रखा भूरा संदूक जब पोते ने खोला तो उसकी आंखे फट गई

Grand Mother : रात के 12 बज रहे थे लेकिन सचिन को नींद नहीं आ रही थी. छत पर खाट पर लेटा सचिन आसमान में तारे गिन रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि आखिर उसकी प्यारी दादी मां ने आज पहली बार उसपर हाथ क्यों उठाया. आंखों में आंसू लिए सचिन इसी सवाल को मन में लिए सो गया.

अगले दिन जब दादी मां ने आवाज दी तो सचिन ने अनसुना कर दिया और बिना मिले ही स्कूल चला गया. वापस आया तो भी दादी मां से बात नहीं की. दादी मां ने पुचकारा और माफी भी मांगी लेकिन सचिन टस से मस नहीं हुआ. उसके मन में एक ही सवाल था कि आखिर दादी मां ने इतनी छोटी सी बात पर उसे क्यों मारा.

सचिन एक पल के लिए दादी मां की खटिया के पीछे रखी छोटी सी आलमारी में रखे, भूरे रंग के उस संदूक को खोलकर देखना ही तो चाहता था. तो ऐसा क्या बड़ा पाप हो गया कि दादी मां ने हाथ उठा दिया. दिन बीतते गये लेकिन सचिन का गुस्सा शांत नहीं हुआ. हालांकि अब वो दादी मां से बात करने लगा था.

फिर भी हर दिन ये ही सोचता की उस संदूक में रखा क्या है. जरूर कोई कीमती चीज होगी जो दादी मां  किसी को देना नहीं चाहती होगी. लेकिन अगले ही पल सचिन ये सोचता कि वैसे भी दादी मां के पास होता ही क्या हैं. कोई मिलने वाला आकर कुछ दे भी गया तो, वो भी मुझे ही दे देती हैं. तो फिर आखिर उस संदूक में है क्या ?

सचिन का सब्र जवाब दे रहा था. 15 साल का सचिन उस उम्र में था जब किसी भी बात को जानने का जुनून सबसे ज्यादा होता है. ऐसे में एक दिन दादी मां पास के मंदिर में चल रहे भजन में शामिल होने के लिए गई. लेकिन जाते जाते सचिन को फिर से वही हिदायत दी कि मेरी आलमारी को हाथ मत लगाना.

दादी मां के जाते ही सचिन सीधे आलमारी के पास गया उसे खोला और फिर उस भूरे संदूक को बाहर निकाला. सचिन के चेहरे पर चमक थी. जैसे कोई खजाना हाथ लग गया हो. जब सचिन ने उस संदूक को खोला तो अंदर एक जोड़ी काले हो चुके सोने के कुंडल मिले, कुछ पुराने पेन जो किसी काम के नहीं थे और बहुत से खत जो धूल से भरे थे मिले. 

ये सब देखकर सचिन को बहुत गुस्सा आया, उसने सोचा कि इस बेकार सामान के लिए दादी मां ने मुझे मारा था. उसका चेहरा तमतमा रहा था. तभी उसकी नजर धूल से भरे एक खत पर पड़ी. जिसकी आखिरी लाइन में दादी मां का नाम लिखा था और एक मुहर लगी थी.

सचिन ने उस खत को पढ़ना शुरू किया. जिसमें लिखा था कि अनाथालय से जिस बच्चे को आपने गोद लिया है. उसके पिता यहां आए थे और बच्चे के बारे में पूछ रहे थे. ये सही है कि आपने उस बच्चे को उस समय गोद लिया जब कोई नहीं था. लेकिन अब जब बच्चे का परिवार मिल चुका है, बेहतर होगा कि आप उस बच्चे को वापस कर दें.

सचिन के मानों पैरों तले के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी. वो सोच रहा था क्या वो बच्चा सचिन ही है. क्यों आज तक दादी मां ने मुझे मेरे मां-बाप के बारे में नहीं बताया. क्यों घर में एक भी फोटो मेरे मां-बाप की नहीं है. क्या दादी मां उसकी अपनी नहीं थी ? कि तभी दादी मां आ गयी और सचिन के हाथों में सिदूक देखकर, जहां खड़ी थी वहीं बैठ गयी.

कुछ देर के लिए दोनों आखों में बात करते रहें. दादी मां रो रही थी और सचिन गुस्से में था. कुछ देर के सन्नाटे के बाद सचिन ने बोलना शुरू किया और वो खत दिखाते हुए पूछा कि क्या ये मेरे बारे में हैं. दादी मां ने हां में सिर हिला दिया. सचिन का गुस्सा 7वें आसमान पर पहुंच गया. इतने सालों जिसने पढ़ाया लिखाया और बड़ा किया वो एक पल में पराई हो चुकी थी. सचिन को अपने पिता की याद सताने लगी थी और दादी एक टक शून्य की ओर निहार रही थी.

गुस्से में सचिन घर से चला गया और रात को वापस आया तो देखा दादी मां रसोई में खाना बनाया हुआ था. जमीन पर दो थालियां लगी थी. हमेशा की तरह एक सचिन की और एक दादी मां की . लेकिन दादी मां उदास बैठी थी. सचिन पास आकर 
बैठ गया दादी मां के आखों से आंसू निकल रहे थे.

सचिन ने दादी मां से पूछा कि मैं कौन हूं. दादी मां ने बताया कि वो उनका पोता है. सचिन ने गुस्से में फिर से पूछा तो दादी मां ने बताया की उनके पूरे परिवार की मौत एक हादसे में हो गयी थी. वो अकेली थी लेकिन एक दिन सड़क किनारे झाड़ी में किसी बच्चे की आवाज सुनी.

उस बच्चे को उठाकर अस्पताल पहुंची और इलाज कराया. वहां से बच्चे को अनाथालय भेज दिया गया. पर ना जानें क्यों दादी मां उससे अलग नहीं होने चाहती थी. तो अनाथालय पहुंची और बच्चे को गोद लेने की बात कहीं. तमाम कागजी कार्रवाई के बाद वो बच्चा अब दादी मां का हो चुका था.

जब सचिन ने उस खत के बारे में पूछा तो दादी मां फिर से रोने लगी और कहां कि मुझे डर था तू चला जाएगा. इसलिए कभी ये बात नहीं बताई. सचिन ने दादी मां को गले से लगा लिया और कहां कि मैं कहीं नहीं जाउंगा. पर ये जानना मेरा हक है कि मेरे मां-बाप कौन हैं और मैं ये पता लगाकर रहूंगा.

सचिन ने अब अनाथालय के चक्कर लगाने शुरू कर दिये थे और आखिरकार उसे पता चल ही गया. अनाथालय से मिले पते पर सचिन पहुंचा. उसे लगा था कि उसके पिता उसे गले से लगा लेंगे. लेकिन हुआ उसका उलट जब सचिन के पिता ने उसे वहां से जाने को कहा.

सचिन ने अनाथालय से मिले खत के बारे में पूछा तो पिता का कहना था कि तुम्हारे पैदा होते ही तुम्हारी मां चली गयी. इसलिए मुझे तुमसे नफरत है. लेकिन एक दिन भावुकता में मैं अनाथालय चला गया और तुम्हारे में बारे में पता किया था. अब हालात बदल गये हैं. मैने दूसरी शादी कर ली और मेरे दो बच्चे हैं. हमारा हंसता खेलता परिवार है. जिसमें तुम्हे शामिल नहीं कर सकता हूं.

सचिन आंखों में आंसू लिए दुबारा घर लौटा और दादी मां की गोद में सिर रखकर खूब रोया. दादी मां ने उससे कुछ नहीं पूछा. सचिन के आंसू सब बयां कर रहे थे. अब उसकी दादी मां ही उसकी पूरी दुनिया थी. जिनके लिए उसे जिंदगी को आसान करना था.  सचिन एक तेज दिमाग लड़का था, उसने खूब मेहनत की और अच्छी सरकारी नौकरी में लग गया और दोनों हंसी खुशी रहने लगें.

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