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बस्सी/जयपुर: गांवों में पुरानी कहावत है कि जब सियार के बुरे दिन आते हैं.तो वह गांव की ओर मुंह करता है..यह कहावत सत्य होती दिखाई दे रही है. क्योंकि बिना वाटर पांइट अर्थात तालाब, तलाईयो या टांको की कमी के कारण पहाड़ी इलाकों एवं जंगलों की ताल-तलैयाओं में बरसात के पानी का भराव नहीं हो पाता जिससे वन्य जीव गांव व शहरों की और पलायन कर रहे हैं.
हाल ही के गत दिनों कस्बे में पैंथर ने प्रवेश कर लोगों को भयभीत कर दिया था. वहीं आए दिन घनी आबादी के बीच कभी सियार तो कभी पैंथर आ घुसते हैं. पैंथर ही नहीं अब तो सियार के भय से भी लोग भयभीत हो रहने लगे हैं. वन विभाग की माने तो वन्य जीव सियार, लोमड़ी, जरख व पैंथर गांवों एवं शहरों की ओर अपने घर (जंगल) को छोड़कर तभी आते हैं जब उनके घर में भोजन-पानी का अभाव होता है.
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पानी की सुविधा नहीं होने से सूखी रहती हैं तालाब, तलाईयां
खासकर वे भोजन तो तलाश लेते हैं, लेकिन पानी की उनके सामने विकट समस्या आती है. आज से डेढ़ दशक पहले तक शहरों की बात तो दूर गांवों में भी सियार दिखाई नहीं देते थे, लेकिन अब गांव ही नहीं वन्य जीव शहरों में प्रवेश करने लगे हैं. जिसको लेकर सरकार को वन्य जीवों के संरक्षण के लिए पानी की सुविधाएं मुहैया करवाने की अति आवश्यकता है.
इधर वन विभाग पूरे प्रदेश में मई माह में एक साथ गणना करता है. वन विभाग का मानना है कि वन्य जीव पानी वाले स्थान पर 24 घंटे में एक बार पानी पीने के लिए जरूर आते हैं. इन्ही वाटर पांइट वाले स्थानों पर वनकर्मी वन्य जीवों की गणना करते हैं. खुद अधिकारी कह रहे है पानी सँग्रह के लिये बरसात के मौसम में इसकी पहले से ही तैयारी रखनी चाहिये ताकी पूरे वर्ष वन्य जीवों पीने का पानी मिलता रहे.
वन विभाग व प्रसाशनिक अधिकारियों की अनदेखी पर रही भारी
अगर बात बांसखो के पहाडी क्षेत्र की जाए तो करीब 2 हैक्टेयर क्षेत्र में फैले वनीय क्षेत्र में गत दिनों ही एक मादा पैंथर मृत अवस्था में मिली थी. इसके अलावा क्षेत्र में गत दिनों एक पैंथर आने से आस-पास के इलाके में अफरा-तफरी मच गई. सूचना पर वन विभाग के कर्मचारी मौके पर पहुंचे. हालांकि पैंथर किसी पर हमला नहीं कर पाया था, लेकिन जब तक भी पैंथर पकड़ में नहीं आया तब तक भी लोग सहमे रहे. मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने पैंथर को रेश्कु कर दबोच लिया. बाद में उसको जंगल में छोड़ा गया था. ये इसका जीता जागता उदहारण देखा जा सकता है.
स्थानीय ग्रामीणो का कहना है कि पहाडी इलाके में वन्य जीवों के लिए पानी की व्यवस्था नहीं होने के चलते वे कई जीव तो प्यासे मरते दम तोड़ देते है. वही कुछ जीव जंगलो को छोड़कर आबादी में घुस आते हैं जिससे सभी लोग हमेशा डर के साए में रहने को मजबूर रहते हैं. आज की मौजूदा स्थिति में वन विभाग को पहाड़ी के चारो ओर बाउन्ड्री करवाने के साथ ही पानी के लिये और भी वाटर पाइंट टांके,तालाब या एनिकट बनाए जाने की अति आवश्यकता है.
वनीय इलाके में आज हालात ये है कि पहाडी के आसपास तलहटी में रहने वाले लोगो को दिन-रात डर के साए में जीना पड़ रहा है. पहाड़ी इलाके में विभाग ने भले ही एनिकट, खेलियां,तालाब एवं तलाईया बना रखी है. लेकिन आज भी उनमे पानी की कोई सुविधा नहीं हैं. पहाड़ी में चरणगढ गांव समेत कई जगह तो ऐसी हैं जहां पर पहाड़ से सीधे-सीधे झरने बहते हैं.
पानी संरक्षण की दिशा में करना होगा काम
अगर विभाग की ओर से ऐसी जगहो पर वाटर पांइट टांके,एनिकट ,तालाब बना दिए जाए तो बरसात के दिनों में व्यर्थ बहने वाले झरने के पानी को वन्य जीवों के लिये बचाया जा सकता है. साथ ही साथ वाटर पांइट के लिए बनाए जाने वाले टांके, एनिकट, तालाब में विभाग व स्थानीय समाजसेवियो के सहयोग से वन क्षेत्र में पानी की व्यवस्था की जा सकती है. ऐसे में अब देखना यह होगा कि वन विभाग की ओर से आखिर कब तक पहाड़ी के चारों ओर बाउंड्री वाल करवा कर अधिक से अधिक वाटर पॉइंट बनाएं जाये ताकि वन्य जीव पानी के अभाव में अपना दम न तोड़े.
Reporter- Amit Yadav