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Jaisalmer Gangaur News : राजस्थान अपने शौर्य,परम्परा और कल्चर के लिए विश्व विख्यात है. यहां कई ऐसे रीति रिवाज है जिसका पालन राजा हो या रंक हर कोई करता है. लोग इसे अंधविश्वास ना मानकर गौरवशाली परंपरा मानते हैं. ऐसी मान्यता है कि शनिवार के दिन बेटी की पीयर से विदाई नहीं होती जिसका पालन तत्कालीन रियासत जैसलमेर में आज भी बरकरार है. चैत्र शुक्ला चतुर्थी को जैसलमेर राजपरिवार गणगौर की पूजा व शाही सवारी निकालता है. वहीं इस बार चतुर्थी के दिन शनिवार होने के चलते जैसलमेर में शाही गणगौर की पूजा चैत्र शुक्ला तृतीया को ही की गई वहीं शाही गणगौर की सवारी नहीं निकाली गई.
जैसलमेर सोनारदुर्ग के त्रिपोलिया कक्ष में गौर माता का पूर्व महारावल चेतन्यराज सिंह द्वारा विधि विधान से पूजन किया गया. गणगौर पूजन के समय महारावल द्वारा मां गणगौर की आरती की गई इस दौरान राज परिवार के ठाकुर विक्रम सिंह नाचना व उनकी धर्मपत्नी मेघनासिंह के साथ ही राजपरिवार के सदस्यों सहित समाज के प्रबुद्ध जन भी मौजूद रहे. वहीं पूजन के बाद गणगौर को दुर्ग स्थित दशहरा चौक के चामुंडा माता मंदिर के पास लाया गया. जहां जिलेवासियों ने माता के दर्शन कर कुशलक्षेम की प्रार्थना कर आशीर्वाद लिया. इस दौरान गोर पूजन करने वाली महिलाओं के साथ ही काफी संख्या में शहवासी भी पहुँचे.
जैसलमेर के राजपरिवार ने किया गणगौर पूजन#Jaisalmer #GangaurFestival pic.twitter.com/WhMFdPVHni
— ZEE Rajasthan (@zeerajasthan_) March 24, 2023
भगवान शिव पार्वती के प्रेम के प्रतीक के रूप में ईसर-गणगौर की जहां पूजा होती है. वही भारत-पाक सीमा पर बसे मारवाड़ के सरहदी जिले जैसलमेर की गणगौर अपने आप में ऐतिहासिक घटना के चलते अलग ही पहचान रखती है. राजस्थान में जहां अन्य जगह चैत्र शुक्ला तृतीया को गणगौर की शाही सवारी निकाली जाती है वही जैसलमेर राजपरिवार चैत्र शुक्ला चतुर्थी को शाही गणगौर की सवारी निकालता है. लेकिन इस बार गणगौर पूजन तृतीया को ही किया गया.
आज से लगभग 200 वर्ष पहले रियासत काल के समय बीकानेर की सेना यहां के ईसर को उठा ले गई थी जिसके चलते जैसलमेर की गणगौर को आज भी अपने ईसर का इंतजार है. यहां की गणगौर बिना पलक धपकाए खुली आंखों से आज भी ईसर का इंतजार कर रही है.
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