झुंझुनूं के बिसाऊ के समीप गांव टांई के नाथ आश्रम के शिखरबंद में लगाए कलश में रखा घी 150 साल बाद भी उसी ताजगी और महक के साथ मिला है. गांव के भवानी सिंह ने बताया कि इन दिनों आश्रम के नवनिर्माण का कार्य चल रहा है, जब शिखरबंद को हटाया गया तो उसमें घी से भरे कलश को सुरक्षित तरीके से वहां से उतारा गया.
Trending Photos
Mandawa: राजस्थान के झुंझुनूं के बिसाऊ के समीप गांव टांई के नाथ आश्रम के शिखरबंद में लगाए कलश में रखा घी 150 साल बाद भी उसी ताजगी और महक के साथ मिला है. गांव के भवानी सिंह ने बताया कि इन दिनों आश्रम के नवनिर्माण का कार्य चल रहा है, जब शिखरबंद को हटाया गया तो उसमें घी से भरे कलश को सुरक्षित तरीके से वहां से उतारा गया. घी देखने में एकदम ताजा और सुगंध ताजातरीन घी के जैसे मिली तो ग्रामीणों को उस कलश और घी को देखने की होड़ सी हो गई.
आश्रम के सोमनाथ महाराज ने बताया कि नवनिर्माण के दौरान शिखरबंद बनते समय पुन इसी घी से भरे कलश को यहां स्थापित किया जाएगा. आश्रम के महंत सोमनाथ महाराज कहते हैं कि आश्रम को बने करीब 150 साल से ज्यादा हो गए हैं, निर्माण के वक्त ही शिखर में घी का कलश रखा गया था.
ऐसे में घी 150 साल पुराना है. महंत ने बताया कि अकसर वे सुनते थे कि गाय का घी लंबे समय तक ताजा रहता है. बता दें कि झुंझुनूं मुख्यालय से चूरू रोड पर करीब 35 किलोमीटर दूर मन्नानाथ पंथियों का आश्रम बना हुआ है. इस आश्रम का इतिहास काफी पुराना है. ग्रामीण के मुताबिक, इस आश्रम का इतिहास करीब दो हजार साल पुराना है. राजा अपना राजपाट छोड़कर तपस्या के लिए आए थे. बाबा गोरखनाथ ने उन्हें कहा था कि जहां पर यह घोड़ा रुक जाए. वहीं पर अपना तपस्या स्थल बना लेना.
राज रशालु का घोड़ा इसी भूमि पर आकर रुका था. रशालु ने यहां पर तपस्या की थी. गोरखनाथ अपने शिष्य को संभालने के लिए टांई की इस तपस्या भूमि पर आए थे. रशालु तपस्या में लीन थे. बाबा गोरखनाथ उन्हें मन्ना नाथा नाम दिया था, तब ही मन्ना नाथी पंथ शुरू हुआ था. ग्रामीण बताते है कि टांई का नाम भी इसी मठ से जुड़ा हुआ है.
कहते हैं कि गोरखनाथ के शिष्य रशालु ने अपना झोला एक सूखी टहनी पर टांग दिया था. इससे वह सूखी टहनी हरी हो गई थी, यहीं से इस गांव का नाम टांई पड़ गया था. गांवों में पेड़ की टहनी को भी टांई कहते हैं.
Reporter- Sandeep Kedia
यह भी पढे़ंः Fatehpur Weather: तेज अंधड के साथ बरसी आफत, गिरे ओले