Jalore की इस जगह गिरा था देवी सती का सिर, 'अघटेश्वरी' बन पूरी करती हैं हर इच्छा
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1005891

Jalore की इस जगह गिरा था देवी सती का सिर, 'अघटेश्वरी' बन पूरी करती हैं हर इच्छा

संपूर्ण भारत देश तीर्थों की भूमि है. ऋषियों और संतों की भूमि है. वीरों की भूमि है़. मरुभूमि राजस्थान का कोसों तक फैला है.

सुंधा माता मंदिर की भक्तों में गहरी मान्यता है.

Jalore: संपूर्ण भारत देश तीर्थों की भूमि है. ऋषियों और संतों की भूमि है. वीरों की भूमि है़. मरुभूमि राजस्थान का कोसों तक फैला है. हरीतिमा मंडित और मीलों तक लहराता रेत का सुनहरा समंदर अपनी अलग ही छटा बिछड़ता है.

इसी अरावली पर्वतमाला की श्रंखला में जालोर जिले में ऐतिहासिक एवं पौराणिक सौगंध पर्वत जिसे सुंधा पहाड़ के रूप में जाना जाता है, वहां विराजमान मां चामुंडा का मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इसकी प्राकृतिक घटा, मनोरम वातावरण पहाड़ों पर बिखरी हरियाली कल-कल करते झरने एक अलग ही दृश्य उपस्थित करते है़ं.

यह भी पढे़ं- यहां माता की मूर्ति के मुंह में लगाई जाती है शराब की बोतल, राज जानकर हो जाएंगे हैरान

चामुंडा माताजी के मंदिर में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों से लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं. बारिश के समय सारा पर्वत हरियाली से भर जाता है़. हल्के-फुल्के बादल मानों नीचे उतर कर मंदिर की परिक्रमा करते जान पड़ते हैं. 

युगों से सुशोभित है माता का यह मंदिर
बताया जाता है कि सुंधा माता मंदिर की जालोर के शासक चाचिगदेव ने संवत् 1319 में अक्षय तृतीया को स्थापना की थी. दिनांक 2 जुलाई 1986 में मालवाडा ठाकुर दुर्जनसिंह देवल ने ट्रस्ट की स्थापना की थी. 1220 मीटर की ऊंचाई के सुंधा पहाड़ पर चामुंडा माता जी का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, जिसे सुंधामाता के नाम से जाना जाता है. सुंधा पर्वत की रमणीक एवं सुरम्य घाटी में सागी नदी से लगभग 40-45 फीट ऊंची एक प्राचीन सुरंग से जुड़ी गुफा में अघटेश्वरी चामुंडा का यह पुनीत धाम युगों-युगों से सुशोभित माना जाता है. इसके अलावा वर्ष 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ शासक इतिहास पुरुष महाराणा प्रताप ने अपने कष्ट के दिनों में सुंधा माता की शरण भी ली थी.

वातावरण है इस मंदिर की खासियत
यह मंदिर जिला मुख्यालय जालोर से 105 Km तथा भीनमाल कस्बे से 25 Km दूरी पर दांतलावास गांव के निकट स्थित है. यह स्थान रानीवाड़ा तहसील में मालवाड़ा और जसवंतपुरा के बीच में है. यहां गुजरात, राजस्थान और अन्य राज्यों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु पर्यटक माता के दर्शन हेतु आते हैं. यहां का वातावरण अत्यंत ही मोहक और आकर्षक है, जिसे वर्ष भर चलते रहने वाले फव्वारे और भी सुंदर बनाते हैं.

यह भी पढे़ं- Rajasthan में बसा पाकिस्तान का एक ऐसा मंदिर, जहां देवी की गर्दन है टेढ़ी

स्तंभों पर की गई है बेहद खास कारीगरी
माता के मंदिर में संगमरमर स्तंभों पर की गई कारीगरी आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिरों के स्तंभों की याद दिलाती है. यहां एक बड़े प्रस्तर खंड पर बनी माता चामुंडा की सुंदर प्रतिमा अत्यंत दर्शनीय है. यहां माता के सिर की पूजा की जाती है. यह कहा जाता है कि चामुंडा जी का धड़ कोटड़ा में तथा चरण सुंदरला पाल (जालोर) में पूजित है. सुंधामाता को अघटेश्वरी कहा जाता है जिसका अभिप्राय है- "वह घट (धड़) रहित देवी, जिसका केवल सिर ही पूजा जाता है."

क्या है मंदिर की पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार, अपने ससुर राजा दक्ष से यहां यज्ञ के विध्वंस के बाद शिव ने यज्ञ वेदी में जले हुए अपनी पत्नी सती के शव को कंधे पर उठाकर तांडव नृत्य किया. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के टुकड़े-टुकड़े कर छिन्न-भिन्न कर दिया. उनके शरीर के अंग भिन्न-भिन्न स्थानों पर जहां जहां गिरे, वहां शक्ति पीठ स्थापित हो गए. यह माना जाता है कि सुंधा पर्वत पर सती का सिर गिरा, जिससे वे 'अघटेश्वरी' के नाम से विख्यात है. देवी के इस मंदिर परिसर में माता के सामने एक प्राचीन शिवलिंग भी प्रतिष्ठित है, जो 'भुर्भुवः स्ववेश्वर महादेव' (भूरेश्वर महादेव) के नाम से सेव्य है. इस प्रकार सुंधा पर्वत के अंचल में यहाँ शिव और शक्ति दोनों एक साथ प्रतिष्ठित है.

चामुंडा माताजी की प्रतिमा के पास वाले स्थान भू-भुर्व: स्वेश्वर महादेव के गुफानुमा कक्ष में दक्षिण दिशा वाली दीवार के पूर्वी कोने में एक में विवर मुख (भोयरें का मुंह) है, जो एक लम्बी सुरंग है, जो पूर्व दिशा में काफी दूर तक चली गई है. सर्प और अन्य वन्य जीवों के भय के कारण इसे बन्द कर दिया गया. इस सुरंग में टार्च से रोशनी फेंककर कुछ दूर झांका जा सकता है. यह सुरंग कहां तक जाती है, इस सम्बन्ध में प्रमाणिक रुप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन कहते हैं कि यह सुरंग आबू पर्वत तक जाती है और प्राचीन समय में वहां का राज परिवार इसमें होकर यहां दर्शनार्थ आता था. यह चामुंडा चौहानों की कुलदेवी है और चाचिगदेव के शिलालेख के अनुसार, यह उस समय अघटेश्वरी नाम से इस सुगन्धगिरी पर लोक प्रसिद्ध और लोक पूजित थी. अघटेश्वरी से अभिप्राय है वह घट (धड़) रहित देवी जिसका केवल सिर ही पूजा जाता है. इसकी साक्षी में कवि सूजा विरचित यह छंद भी प्रचलित है-
सिर सुंधा, धड़ कोरटा, पग सुंदरला री पाल.
आप माता चामुंडा इसरी, गले फूलां री माल॥

फलदाय़ी हैं माता के दर्शन
बता दे कि सुंधा माता के विषय में एक जनश्रुति यह भी है कि बकासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए चामुंडा माता अपनी सात शक्तियों (सप्त मातृकाओं) समेत यहां पर अवतरित हुईं, जिनकी मूर्तियां चामुंडा (सुंधा माता) के पार्श्व में प्रतिष्ठित हैं. माता के इस स्थान का विशेष पौराणिक महत्व है, यहां आना अत्यंत पुण्य फलदायी माना जाता है. कई समुदायों/जातियों द्वारा इस परिसर में भोजन प्रसाद बनाने के लिए हॉल का निर्माण कराया गया है. नवरात्रि के दौरान यहां भारी तादाद में श्रद्धालु माता की अर्चना के लिए आते हैं. पर्वत चोटी पर स्थित मंदिर पर जाने में आसानी के लिए वर्तमान में 800 मीटर लंबे मार्ग वाला रोप-वे भी यहां संचालित है, जिससे लगभग छः मिनट में पर्वत पर पहुंचा जा सकता है.       

कई नेता और अभिनेता भी कर चुके हैं दर्शन
सुंधा माता मंदिर में नेता और अभिनेता भी माता के दर्शन कर मनोकामना मांगते हैं. प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे माता के दर्शन को आती है़ं तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ सचिन पायलट सहित कई मंत्री भी माता के दर्शन को आते हैं और पूजा अर्चना करते है़ं तथा खुशहाली की मनोकामना मांगते हैं. श्री चामुंडामाता ट्रस्ट की ओर से भी पर्वत पर विभिन्न सुविधाएं करवाई गई है़ं, वहीं, नवरात्रि ओर दीपावली पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.

Reporter- Bablu Meena

Trending news