मासूम से चेहरे पर चिंता की लकीरों को छिपाने की कोशिश करते हुए छोटे लोक गायक बाले खान बताते हैं कि मेरे मामा जी प्रसिद्ध राजस्थानी लोक गायक हैं. वह कई समारोहों में गाते हैं.
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Jaisalmer: यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है... किसी लेखक की लिखी ये चंद लाइनें अगर कोई अपने जीवन में उतार ले, तो शायद ही उसे कभी हताशा हाथ लगे.
कहते हैं कि वक्त उसी की घड़ी-घड़ी परीक्षा लेता है, जो परीक्षार्थी बेहद मजबूत होता है. जरा सी बात पर परेशान होकर हार मान लेने के हजार बहाने हैं, पर उस किसी एक वजह को हिम्मत मानकर आगे सफलता की इबारत लिखने के शायद ही कोई बहाने हों. राजस्थान के जैसलमेर की एक ऐसी ही कहानी आज आप पढ़ेंगे, जिसमें मुश्किलें न तो हौसलों को डगमगा सकीं और न ही मंजिल उससे दूर रह सकी.
ये दास्तां है जैसलमेर के सूर्यगढ़ के उस छोटे लोक गायक बाले खान की, जिसने अपने संघर्ष को बयां किया है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ऑफिशियल ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे को अपना मासूम बचपन याद करते हुए यह मासूम लोक गायक बाले खान बताते हैं कि मैं कभी अम्मी-अब्बू के साथ नहीं रहा. हम 4 भाई-बहन हैं और अब्बू के लिए हमारा पालन-पोषण करना कठिन था. अब्बू भी लोक गायक ही थे और इतने पैसे भी नहीं कमा पाते थे कि हम चारों का पालन-पोषण कर सकें. इसलिए जब मैं 5 साल का था, तभी मुझे नाना-नानी के घर रहने के लिए भेज दिया गया था.
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मुझे अम्मी के हाथ से बनी लहसुन चटनी, अब्बू की रात को सुनाई जाने वाली कहानियां और भाई-बहनों के संग की मस्तियां बहुत याद आती है पर फिर भी मैं नानी के घर पर काफी खुश हूं. मैंने यहां रहकर मामा जी से राजस्थानी लोक गायन सीखा है.
पसंद है तालियों की गड़गड़ाहट
मासूम से चेहरे पर चिंता की लकीरों को छिपाने की कोशिश करते हुए छोटे लोक गायक बाले खान बताते हैं कि मेरे मामा जी प्रसिद्ध राजस्थानी लोक गायक हैं. वह कई समारोहों में गाते हैं. उनकी गायकी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है. पर उससे भी ज्यादा मुझे पसंद है कि गायन के आखिरी में दर्शकों और श्रोताओं की प्यार भरी तालियां. मुझे भी अपने लिए एक दिन ऐसी ही तालियां सुननी थी, इसलिए मैं भी उनसे लोक गायन सीखने लगा.
पहले वीडियो पर मिला ढेर सारा प्यार
रोज सुबह पहले मैं स्कूल जाता फिर शाम को मामा जी से गायन सीखता. सीखने की ललक इस कदर थी कि कई बार मैं खाना-पीना भूलकर घंटों रियाज करता रहता. एक बार मेरे मामा जी मेरी गाते हुए एक वीडियो ऑनलाइन अपलोड कर दी. मेरे पहले वीडियो ने दो दिन में दस हजार से ज्यादा लाइक्स पाए और सप्ताह भर में मुझे गाने के ढेरों ऑफर्स आए. मेरी खुशी की इंतेहा नहीं थी. ऐसा लग रहा था कि मानों मेरा सपना पूरा हो रहा है. 8 साल की छोटी उम्र में मेरी गायकी को लोगों ने बहुत सारा प्यार दिया.
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खुशी चार गुनी तब बढ़ गई, जब एक इवेंट मैनेजर ने मुझे मलेशिया में परफॉर्म करने के लिए ऑफर दिया. मेरी खुशी सातवें आसमान पर थी. मामा जी भी मान गए थे. दो महीने में मेरी ट्रेनिंग पूरी हुई. मैं पहली बार मलेशिया के लिए फ्लाइट में था.
कैसा रहा मलेशिया का सफर
मलेशिया में कदम रखते ही ऐसा लगा कि मानों जैसे कोई सपना देख रहा हूं. नए देश में मैं बहुत नर्वस महसूस कर रहा था. पर जैसे ही मुझे मंच पर भेजा गया कि मैं अपने आस-पास का सबकुछ भूल गया और गायकी का बेहतर प्रदर्शन किया. जैसे ही मेरा गाना खत्म हुआ, लोग खड़े होकर मेरे लिए तालियां बजा रहे थे. इस लम्हें को देखकर मेरी आंखें खुशी से भर आईं. उस पल की खुशी को मैं बयां नहीं कर सकता.
भविष्य के लिए शुरू की बचत
मलेशिया से वापस आने के बाद मैंने अपनी गायकी के लिए और ज्यादा मेहनत शुरू की. इसके बाद एक बार फिर मैंने मलेशिया और फिर ऑस्ट्रेलिया में परफॉर्म किया. यहां मैं बहुत से लोगों से मिला. एक बार एक जर्मन महिला ने मुझसे कहा कि उसे मेरा कॉन्फिडेंस बहुत पसंद है. मुझे उस समय कॉन्फिडेंस का मतलब नहीं पता था पर मैंने सिर झुकाकर उसको 'नमस्ते' कहा. वह मुस्कुराकर चली गई. इसके बाद मैंने पैसे कमाने शुरू कर दिए और भविष्य के लिए भी बचत शुरू की.
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अम्मी-अब्बू को सताती थी पढ़ाई की चिंता
जिंदगी के पन्नों को पलटते हुए छोटे लोक गायक बताते हैं कि दो साल पहले जब मैं 11 साल का था, तब सूर्यगढ़ जैसलमेर में गाना गाना शुरू किया. मुझे बहुत अच्छा लगता था, जब लोग कहते थे कि 'वाह, क्या एक्सप्रेशन हैं'. इस खुशी के साथ ही मुझे मेरी पढ़ाई की भी चिंता सताने लगी थी. अम्मी और अब्बू चाहते थे कि मैं पढ़ूं और मैं हमेशा उनकी बात सुनता हूं.
गर्व से चौड़ा हुआ अब्बू का सीना
पढ़ाई की बात बता ही रहे थे कि अचानक छोटे गायक की आंखें भर आती हैं. भीगी आंखों से बताया कि एक साल पहले चूल्हे में खाना बनाते समय अम्मी का हाथ जल गया. डॉक्टर ने इलाज के लिए 80 हजार रुपयों की जरूरत बताई. अब्बू इतने पैसे कहां से लाते, इसलिए मैंने अपनी बचत के सारे रुपये अम्मी के इलाज के लिए अब्बू को दे दिए. मेरे इस फैसले पर अब्बू खुशी से भर गए और बोले- बेटा, एक दिन तू बहुत बड़ा आदमी बनेगा.
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मैं अब्बू का रॉक स्टार हूं
छोटे लोक गायक बताते हैं कि अब मैं 13 साल का हो गया हूं लेकिन अपने अब्बू की नजरों में एक रॉक स्टार हूं. मैं एक बहुत बड़ा कलाकार बनना चाहता हूं. मैं एक खूब बड़ा सा घर खरीदना चाहता हूं, जिसमें मैं अपने पूरे परिवार के साथ रह सकूं और मम्मी के हाथ की बनी लहसुन की चटनी खाना सकूं. मैं सपनों को पूरा करना चाहता हूं पर उसके लिए कड़ी मेहनत की जरूरत हैं. मैं और कड़ी मेहनत कर रहा हूं.
फिलहाल बाले खान अपनी पढ़ाई पर फोकस कर रहे हैं पर समय मिलते ही वह रियाज से नहीं चूकते हैं. 13 साल के रियाज उन तमाम लोगों के लिए मिसाल हैं, जो बिना मेहनत सब कुछ हासिल करना चाहते हैं या फिर अपने सपने को बीच में ही छोड़ देते हैं. बाले खान सूर्यगढ़ जैसलमेर में लोक गायकी की एक नई मिसाल बनेंगे. इनके मासूम से जज्बे को देखकर तो चंद लाइनें ही याद आती हैं कि
हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल दे, तुझे तेरा मुक़ाम मिल जाएगा,
बढ़ कर अकेला तू पहल कर, देख कर तुझको काफिला खुद बन जाएगा...