मंकीपॉक्स के संक्रमण के खतरों के बीच मानसून के इस सीजन में जानवरों में ''लम्पी'' नामक लाइलाज बीमारी कहर बनकर टूट रही है.
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Jodhpur: प्रदेश में लम्पी वाइरस पशुओं पर कहर बनकर टूट रहा है.पशु चिकित्सकों का कहना है कि गांठदार चर्म रोग वायरस (एलएसडीवी) या लम्पी रोग नामक यह संक्रामक रोग के सामने आने के बाद पशुपालन विभाग तेजी से कदम उठा रहा है. गायों को बचाने के हर संभव प्रयास जारी. वहीं उपखंड क्षेत्र में विभिन्न गांव एवं शहर में युवाओं द्वारा टीम बनाकर गायों पर आयुर्वेदिक दवा से बना पानी का छिड़काव, विटामिन एवं एंटीबायोटिक इंजेक्शन लगाकर बचाने का कर रहें हैं. पीपाड़ सिटी के कृषि उपज मंडी में गौ भक्तों द्वारा बीमार गायों की सेवा के लिए रेस्क्यू सेंटर खोला गया है.
मंकीपॉक्स के संक्रमण के खतरों के बीच मानसून के इस सीजन में जानवरों में ''लम्पी'' नामक लाइलाज बीमारी कहर बनकर टूट रही है. चौंकाने वाली बात यह है कि जानवरों में त्वचा संक्रमण के जरिए तेजी से फैलने वाली इस बीमारी के इलाज के लिए अभी तक कोई टीका भी तैयार नहीं किया गया है. पीपाड़ उपखंड क्षेत्र में 100 से अधिक गायों की मौत से पशुपालक परेशान नजर आ रहें हैं. ''लम्पी'' के वायरस से संक्रमित गायों का कोई सटीक इलाज नहीं होने की वजह से पशुपालक खासकर गायों को पालने वाले किसान ज्यादा परेशान नजर आ रहें हैं.
पशु चिकित्सकों का कहना है कि गांठदार चर्म रोग वायरस (एलएसडीवी) या लम्पी रोग नामक यह संक्रामक रोग सामने आने के बाद तेजी से कदम उठाए हैं और प्रभावित इलाकों में अलग-अलग टीम भेजी गई है। रोगी पशुओं को अलग रखने की सलाह दी गई है.
जानवरों में कैसे फैलता है लम्पी का संक्रमण
जानवरों में लम्पी यह एलएसडी कैप्रीपॉक्स से फैलती है. अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं. ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है,क्योंकि पशु भी एक जगह से दूसरी जगह है या गांव कस्बों में तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे दूसरी जगह या गांव या कस्बों में भी फैल जाती है.
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लम्पी के इलाज के लिए कोई टीका नहीं
लम्पी बीमारी से बचाव के लिए अभी तक इस बीमारी का टीका नहीं बना है. लेकिन फिर भी ये बीमारी बकरियों में होने वाली गोट पॉक्स की तरह ही है. इसलिए अभी गाय-भैंस को भी गोट पॉक्स का टीका लगाया जा रहा है. जिसका कुछ ठीक परिणाम भी सामने आ रहा है. इसके साथ ही, दूसरे पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए संक्रमित पशु को एकदम अलग बांधें और बुखार और लक्षण के हिसाब से इलाज कराएं. प्राप्त जानकारी के अनुसार आईवीआरआई में इस बीमारी से बचने का टीका बनाया जा रहा है. आने वाले एक साल में इसका टीका आ सकता है. वहीं पीपाड़ उपखंड क्षेत्र के पीपाड़ शहरी क्षेत्र के अलावा कोसाना, मालावास, साथीन, बोरुंदा, सिलारी, रिया सहित और भी कहीं अन्य गांव में युवा अपनी जान की परवाह किए बगैर टीम बनाकर गायों को संक्रमण से बचाने के लिए गर्म पानी, नीम, फिनाइल, डिटोल, फिटकरी तारपीन का तेल लाल दवा सहित इत्यादि का मिश्रण कर गोल तैयार कर उनका छिड़काव गायों पर कर रहें है. साथ ही खाने में हल्दी, काली मिर्च, देसी शक्कर घी का मिश्रण कर रोटी के साथ उनके इम्युनिटी पावर बढ़ाने के लिए खिलाने का काम किया जा रहा है. इसके अलावा विटामिन, एंटीबायोटिक, बुखार के अलावा अन्य इंजेक्शन भी अपने स्तर पर खरीद कर लगाया जा रहें हैं, ताकि गायों को इस बीमारी से बचाया जा सके. साथ ही पीपाड़ सिटी के कृषि उपज मंडी में भी बहुत बड़ा रेस्क्यू सेंटर बनाया गया है, जहां पर 50 गायों की सेवा दिन-रात की जा रही हैं. मेडिकल की टीम वहां पर अपनी सेवाएं दे रही है. भामाशाह के सहयोग से चारे पानी और दवाइयों की भी व्यवस्था की गई है.
संक्रमण से बचाव के उपाय
लम्पी के संक्रमण से पशुओं को बचाने के लिए अपने जानवरों को संक्रमित पशुओं से अलग रखना चाहिए. अगर गौशाला या उसके नजदीक किसी पशु में संक्रमण की जानकारी मिलती है, तो स्वस्थ पशु को हमेशा उनसे अलग रखना चाहिए.
रोग के लक्षण दिखने वाले पशुओं को नहीं खरीदना चाहिए. मेला, मंडी और प्रदर्शनी में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए.
गौशाला में कीटों की संख्या पर काबू करने के उपाय करने चाहिए.मुख्य रूप से मच्छर, मक्खी, पिस्सू और चिंचडी का उचित प्रबंध करना चाहिए.
रोगी पशुओं की जांच और इलाज में उपयोग हुए सामान को खुले में नहीं फेंकना चाहिए.
अगर गौशाला या उसके आसपास किसी असाधारण लक्षण वाले पशु को देखते हैं, तो तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल में इसकी जानकारी देनी चाहिए.
एक पशुशाला के श्रमिक को दूसरे पशुशाला में नहीं जाना चाहिए.
पशुपालकों को भी अपने शरीर की साफ-सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए.
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