फसलों के खराब होने की वजह से किसान परिवारों के घर अब भी मायूसी है. फसलों में हुए खराबे से चिंतित किसान अब सरकार से राहत की उम्मीद लगाकर बैठे हैं. किसानों का कहना है कि इस बार की बारिश ने धरतीपुत्रों की दीपावली की सारी खुशी गायब कर दी.
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Sangod: दीपावली के दस दिन शेष हैं जिसकी वजह से बाजारों में रौनक बढ़ने लगी है, लेकिन किसान परिवारों के घर अब भी मायूसी है. फसलों में हुए खराबे से चिंतित किसान अब सरकार से राहत की उम्मीद लगाकर बैठे हैं. किसानों का कहना है कि इस बार की बारिश ने धरतीपुत्रों की दीपावली की सारी खुशी गायब कर दी. मौसम साफ रहने और धूप खिलने के बाद अब किसान खेतों में बची-खुची उपज को सहेजने में जुटे हैं.
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इस उम्मीद में की थोड़ी-बहुत उपज हाथ लग जाए तो कम से कम दीपावली का खर्चा तो निकल आए. किसान परिवार खेतों से एक-एक ढेर को उठाकर ढेरों में अपनी खुशी की उम्मीद ढूंढ रहा है. हालांकि फसल के ढेर एक सप्ताह तक लगातार बारिश में रहे. कई किसानों ने उपज के ढेरों को तिरपाल से भी ढक दिया, लेकिन नमी से सोयाबीन की फलियों में फफूंद आ गई और सड़ गई. अब तो हालत यह हैं कि तिरपालों को ढेरों से हटाते ही फसल के ढेर सडांध मार रहे हैं. फसल तबाह होने से किसान निराश है. कई किसानों को कर्ज चुकाने तो कई को बच्चों के शादी-ब्याह के लिए रुपयों के इंतजाम की चिंता सता रही है. ऐसे में किसानों के चेहरे पर मायूसी साफ नजर आ रही थी.
बारिश ने सब कुछ मिटा दिया
किसान दुर्गाशंकर किराड़, परशराम बैरवा और सुमित्रा बाई आदि ने बताया कि पहले बाढ़ के पानी ने खासा नुकसान किया, इसके बाद कुछ उम्मीद थी, लेकिन बारिश ने सब कुछ मिटा दिया. फसल चौपट होने के बाद कर्ज कैसे चुका पाएंगे. ब्याज से पैसा उधार लेकर खेतों में फसल को खड़ा किया था. किसी ने जेवर गिरवी रखकर तो किसी ने अपनी जमीन को साहूकार के पास गिरवी रख दिया था, लेकिन बारिश ने उम्मीद को दफन कर दिया.
महंगे बीज खरीदकर बुआई की
कई किसानों ने महंगे बीज खरीदकर बुआई की. बुवाई से लेकर फसलों के पकने तक हजारों रुपए बीघा का खर्चा किया. दस दिन पूर्व तक किसानों को उच्छे उत्पादन की भी उम्मीद थी, लेकिन बारिश ने किसानों की सारी उम्मीदों पर ऐसा पानी फेरा जिसे किसान महिनों तक नहीं भूला पाएंगे. किसानों ने बताया कि बची-खुची फसलों को तैयार भी करवाए तो उससे खर्चा भी नहीं निकल पाएगा. ज्यादातर उपज तो सड़ने की कगार पर है.