Trending Photos
Rajasthan Politics : टिकिट, यानि चुनावी साल में बैचेनी, टिकिट यानि चुनावी साल में मशक्कत और टिकिट यानि चुनावी साल में सुकून, यूं तो टिकिट किसी बस, ट्रेन या हवाई यात्रा के सफर का मिल जाए तो वह भी राहत दिलाता है. लेकिन राजनीति में और वह भी चुनावी साल का मामला हो तो चुनाव लड़ने के लिए नेताओं को पार्टी का टिकिट ही सबसे ज्यादा सुकून देता है, इसके लिए वे बस-ट्रेन में बिना टिकिट सफर करने के लिए भी तैयार हैं. लेकिन तमन्ना एक ही होती है. और वह है राजनीतिक पार्टी का टिकिट, तो जनाब राजस्थान में भी यह साल वही है जिसका राजनेताओं को इन्तज़ार होता है. और विधानसभा चुनाव के इस साल में नेता उसी कवायद में लगे हैं जो उन्हें फिर से नेता बना सकती है.
टिकिट की आस में नेता अभी से चक्कर लगाने लगे हैं, यूं तो कांग्रेस के नव-नियुक्त सह-प्रभारियों का दौरा अभी शुरू ही हुआ है कि मौजूदा विधायकों ने अगली बार विधानसभा में पहुंचने के लिए पहली ज़रूरी योग्यता हासिल करने के लिए दौड़ धूप शुरू कर दी है, इसमें सबसे आगे फिलहाल बसपा से कांग्रेस में आए विधायक हैं, इस सिलसिले में तीन विधायकों ने सह-प्रभारी काज़ी निज़ामुद्दीन से मुलाकात भी की, बसपा से आए वाजिब अली, लाखन सिंह मीणा और संदीप यादव ने सह-प्रभारी से मिलकर उन्हें इस बात के लिए कन्वीन्स करने की कोशिश की है, कि अगर चुनाव से काफी पहले ही मजबूत दावेदारों के टिकिट घोषित किये गए तो यह पार्टी के लिए भी जीत की गारन्टी हो सकता है.
सरकार यानि सत्ता, लेकिन उससे पहले सरकार के लिए चुनाव ज़रूरी है और चुनाव लड़ने के लिए ज़रूरी है टिकिट, एक-दूसरी कड़ी के लिए ज़रूरी मानी जाने वाली इन्हीं चीज़ों की जुगत में चुनावी साल में नेता लगे हुए दिख रहे हैं, यही कारण है कि कांग्रेस के सह-प्रभारियों के पहले दौरे के साथ ही नेताओं ने टिकिट पर दावेदारी जताना शुरू कर दिया है, . नेताओं की उत्कंठा देखकर ऐसा लगता है कि, महाभारत काल में निशाना लगाने के लिए अर्जुन ने चिड़िया की आंख पर जितनी नज़र गड़ाई होगी. उससे कहीं ज्यादा मजबूती से नेताओं की नज़र अपनी टिकिट पर दिखती है, यही कारण है कि अपनी टिकिट के लिए तर्क देते हुए विधायक कहते हैं कि अगर पहले ही टिकिट तय कर दिया जाए तो यह जीत के लिए मजबूत आधार हो सकता है, नाराज़ लोगों को मनाया जा सकता है, काम का प्रचार अच्छी तरह किया जा सकता है, बगावत रोकी जा सकती है, और इन सबसे बढ़कर चुनाव जीतकर पार्टी को सत्ता में लाया जा सकता है,
अपनी टिकिट के लिए विधायकों के अपने तर्क हैं, लेकिन सवाल यह है कि अगर टिकिट पहले ही घोषित हो गई तो टिकिट के दूसरे दावेदार भी बगावत करने के लिए अपने आपको मजबूत करेंगे, लेकिन इस सवाल पर वाजिब अली का कहना है कि उनके विधानसभा क्षेत्र नगर में तो कांग्रेस का कोई दूसरा दावेदार ही नहीं है, वाजिब कहते हैं कि मजबूत प्रत्याशी को अगर टिकिट पहले तय कर देते हैं तो वह मान-मनौव्वल भी कर सकेगा. और माहौल भी बना सकेगा,
बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों द्वारा आगामी चुनाव का टिकट समय से पहले घोषित करने की मांग पर सह प्रभारी काज़ी निजामुद्दीन कहते हैं कि, कांग्रेस में चुनावी टिकट देने की एक प्रक्रिया होती है और इस प्रक्रिया से बाहर जाकर कोई कमिटमेंट नहीं किया जा सकता, उन्होंने कहा कि हर प्रत्याशी चाहता है कि समय से पहले उसका टिकट उसे मिल जाए, लेकिन पार्टी का अपना तरीका और सिस्टम है,
वाजिब की बात अपने नज़रिये से वाजिब हो सकती है. लेकिन काज़ी निज़ामुद्दीन के कहने के मायने हैं कि वे टिकिट पर फ़ैसला करने के मामले में न काज़ी हैं, न ही निज़ाम? लेकिन सवाल यह उठता है कि हाथी की सवारी से विधानसभा में पहुंचे बसपा विधायकों ने पिछले साढ़े चार साल में हाथ का साथ तो दिया. लेकिन क्या उन्हें अब हाथ से साथ छूटने का डर सता रहा है. सवाल यह भी कि क्या इसी डर को दूर करने के लिए वे कांग्रेस नेताओं से कोई विश्वास चाहते हैं और सवाल यह कि अगर रण में धावा बोलने से पहले उन्हें भरोसा नहीं मिला तो क्या ये नेता खुद खरगे की पार्टी के खिलाफ़ चुनावी मैदान में खड्ग उठाएंगे?
यह भी पढ़ें:
राजस्थान के ये दो सगे भाई बने एक साथ IPS ऑफिसर, पिता सिलते थे कपड़े
माला पहनाते ही क्यों फफक-फफक कर रो पड़े पति-पत्नी, देखने वाले भी हो गए इमोशनल