Rajsamand News: राजस्थानी लोक नृत्यों में गवरी नृत्य आदिकाल से ही भील समाज द्वारा किया जा रहा है. गवरी नृत्य ही भील समाज की पहचान और हिन्दू धर्म संस्कृति का परिचायक माना जाता हैं. क्योंकि गवरी नृत्य में शिव शक्ति की भक्ति भावना से जुड़ा हुआ गवरी नृत्य का खेल का मंचन किया जाता है. जिसमें सभी देवी देवताओं का प्रसंग इस गवरी नृत्य में देखने को मिलता है.
बता दें कि राजसमंद जिले के आमेट तहसील के नज़दीक सालमपुरा गांव में गवरी का मंचन किया गया. यहां मोखमपुरा गांव की गवरी टीम द्वारा नृत्य किया गया. गवरी नृत्य में भगवान शिव द्वारा भस्मासुर को आशीर्वाद, भगवान विष्णु द्वारा मोहिनी रूप धारण कर भस्मासूर का वध किया, राजा जेल द्वारा वडलिया काटे जाने पर देवी अम्बा, दुर्गा, पीपलाज, कालिका के द्वारा राजा जेल का शीश काटने के प्रसंग, माता कालिका द्वारा अकबर बादशाह की मूंछ, बेगम का चोटला काटना जैसे ऐतिहासिक प्रसंग को गवरी नृत्य में दर्शाया जाता हैं.
वर्षाकाल के दौरान मेवाड़ अंचल में भील समाज के लोगों द्वारा गवरी का मंचन किया जाता है. इसमें काना गुजरी, पाबुजी राठौड़ का, हटिया हटनी, मीणा बंजारा युद्ध, गाडुलिया लोहार, वर्जु कांजरी, चितौड़ के किले के युद्ध, भोलीया भूत जैसे मनोरंजन वाले खेलों का वर्णन मिलता है. वैसे गवरी नृत्य भक्ति भाव से परिपूर्ण होता है. इसके नियमों की बात की जाए, तो उसके नियम भी आश्चर्य चकित करने वाले होते हैं.
जैसे मुख्य भूमिका निभाने वाले क़िरदार महादेव, राइया यानि पार्वती देवी के रूप वाली माता जी बनती है, वो सवा महीने तक स्नान नहीं करते, एक समय का भोजन करना, नंगे पैर रहना, पलंग बिस्तर पर नही सोना, इसी तरह सभी कलाकारो को भी ऐसे नियम पालन करने होते है. सवा महीने घर नहीं जाना,हरी सब्जी का सेवन न करना, शराब नहीं पीना, मांसाहारी भोजन नहीं करना, रात्रि विश्राम किसी धार्मिक स्थल पर करना, इस तरह के कड़े नियम कानून का पालन कर भक्ति भाव रखने वाले भील समाज हिन्दू धर्म के प्रमुख अनुयायी होते है.
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