पढ़िए चौथ माता की अनोखी कहानीः जब कन्या के रूप में प्रगट होकर बोलीं-'राजा तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं' फिर...
Advertisement

पढ़िए चौथ माता की अनोखी कहानीः जब कन्या के रूप में प्रगट होकर बोलीं-'राजा तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं' फिर...

चौथ माता का मंदिर 1451 ई. में बना था. यह मंदिर हजार फीट से भी ज्यादा उूंचाई पर स्थित है, 568 साल पुराने यानी, देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक इस मंदिर में महज करवा चौथ के ही मौके पर 2 से 3 लाख महिलाएं पूजा करती हैं. 

चौथ माता का मंदिर 1451 ई. में बना था.

बरवाड़ा: सवाई माधोपुर में मान्यता है कि यहां चौरू माता ने यहां के राजा को दर्शन दिए थे. कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना राजा भीम सिंह ने कराई थी. किवदंतियां हैं कि, देवी चौरू माता ने स्वप्न में राजा भीमसिंह चौहान को दर्शन देकर यहां अपना मंदिर बनवाने का आदेश दिया था. राजा एक बार बरवाड़ा से संध्या के वक्त शिकार पर निकल रहे थे, तभी उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें रोका. मगर, भीमसिंह ने यह कहकर बात को टाल दिया कि चौहान एक बार सवार होने के बाद शिकार करके ही नीचे उतरते हैं. इस तरह रानी की बात को अनसुना करके भीमसिंह अपने कुछ सैनिकों के साथ घनघोर जंगलों की तरफ चले गए.

मूर्छित होकर जंगलों में ही गिर पड़े
 राजा रानी के मना करने पर भी शिकार को चले गए. शाम ढलते उन्हें वहां एक मृग दिखा, सभी उस मृग का पीछा करने लगे. कुछ देर में रात हो गई. रात होने के बावजूद भीमसिंह मृग का पीछा करते रहे. धीरे-धीरे मृग भीमसिंह की नजरों से ओझल हो गया. तब तक साथ के सैनिक भी राजा से रास्ता भटक चुके थे. fallbackअकेले में राजा विचिलित हो उठा. काफी खोजने के बाद भी पीने को पानी नहीं मिला. इससे वह मूर्छित होकर जंगलों में ही गिर पड़े. तब अचेतावस्था में भीमसिंह को पचाला तलहटी में चौरू माता की प्रतिमा दिखने लगी. कुछ देर बाद उन्होंने देखा कि भयंकर बारिश होने लगी और बिजली कड़कने लगी.

तुम्हारे मां-बाप कहां पर हैं
 मूर्छा टूटने पर राजा को अपने चारों तरफ पानी ही पानी नजर आया. घनघोर जंगल में कोई न था, तभी ये चमत्कार हुवा ,राजा ने पहले पानी पिया. फिर वहीं अंधकार भरी रात में एक कांतिवान बालिका पर उनकी नजर पड़ी. वह कन्या खेलती नजर आई. राजा ने पूछा कि तुम इस जंगल में अकेली क्या कर रही हो ? तुम्हारे मां-बाप कहां पर हैं'' कन्या ने तोतली वाणी में कहा कि ''हे राजन तुम यह बताओ कि तुम्हारी प्यास बुझी या नहीं'' इतना कहकर वह कन्या अपने असली देवी रूप में आ गई. तब राजा उनके चरणों में गिर पड़ा. बोला कि, ''हे आदिशक्ति महामाया! मुझे आप से कुछ नहीं चाहिए, अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हमारे प्रांत में ही हमेशा निवास करें'' तब ''ऐसा ही होगा'' कहकर, वह देवी अदृश्य हो गईं. 

चौथ माता की प्रतिमा को लेकर राजा बरवाड़ा की ओर लौट पड़ा
राजा को वहां चौथ माता की एक प्रतिमा मिली. उसी चौथ माता की प्रतिमा को लेकर राजा बरवाड़ा की ओर लौट पड़ा. बरवाड़ा आते ही राजा ने राज्य में पूरा हाल कह सुनाया. तब पुरोहितों की सलाह पर संवत् 1451 में बरवाड़ा की पहाड़ की चोटी पर, माघ कृष्ण चतुर्थी को विधि विधान से उस प्रतिमा को मंदिर में स्थापित कराया. ऐसा कहा जाता है कि तब से आज तक इसी दिन यहां चौथ माता का मेला लगता है, करवा चौथ के पर्व के मौके पर कई राज्यों से लाखों की तादाद में भक्त मंदिर दर्शन के लिए आते हैं.

द्वारका प्रसाद ,श्रद्धालु कहते हैं कि यह मंदिर विशेषतौर पर विवाहित जोड़े के लिए है, सुहागिन स्त्रियां करवा चौथ के त्योहार के मौके पर यहां अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं. ऐसी मान्यता हैं कि चौथ माता गौरी देवी का ही एक रूप हैं, इनकी पूजा करने से अखंड सौभाग्य का वरदान तो मिलता ही है साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी सुख बढ़ता है. करवा चौथ हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है.

निर्मला कहता हैं कि अरावली पर्वत पर यह मंदिर सवाई माधोपुर शहर से 35 किमी दूर, सुंदर-हरे वातावरण और घास के मैदानों के बीच स्थित है. सफेद संगमरमर के पत्थरों से इस स्मारक की संरचना तैयार की गई थी. दीवारों और छत पर शिलालेख के साथ यह वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करता है, मंदिर तक पहुंचने के लिए 700 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. इस मंदिर परिसर में चौथ माता देवी की मूर्ति के अलावा, भगवान गणेश और भैरव की मूर्तियां भी दिखाई पड़ती हैं. पुजारी के मुताबिक, हाड़ौती क्षेत्र के लोग हर शुभ कार्य से पहले चौथ माता को निमंत्रण देते हैं. प्रगाढ़ आस्था के कारण बूंदी राजघराने के समय से ही इसे कुल देवी के रूप में पूजा जाता है, इतना ही नहीं, माता के नाम पर कोटा में चौथ माता बाजार भी है.

इस मंदिर की यात्रा साल में कभी भी की जा सकती है, लेकिन नवरात्र और करवा चौथ के समय यहां जाने का विशेष महत्व माना जाता है. नवरात्र में यहां मेल लगता है, इसके अलावा किसी भी समय यहां अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए जा सकते हैं. इस मंदिर के दर्शन करने जाने के लिए आपको पहले सवाई माधोपुर पहुंचना होगा. चौथ का बरवाड़ा से जयुपर 110 किमी दूर है. जयपुर से यहां तक लोकल ट्रेन चलती हैं। सन 1997 में चौथ माता ट्रस्ट बनाया गया. जिनके पहले अध्यक्ष शिव नारायण सिंह बने. उन्होंने आर्थिक संकट के बावजूद गुमटी नुमा मंदिर का निर्माण करवाया. 

इसके बाद भगवती सिंह चौथ माता ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे ,इन्होंने मन्दिर भवन को विशाल स्वरूप दिया. यात्रियों की सुविधाओ को देखते हुवे धर्मशाला का निर्माण करवाया. एक हजार फीट की सीढ़ियों पर छाया ,पेयजल और रोशनी जैसी बुनियादी सुविधाएं जुटाई, वही वर्तमान में पृथ्वीराज सिंह चौथ माता ट्रस्ट के अध्यक्ष है ,चौथ माता की साल भर की आवक करोड़ो में है जिसके चलते ट्रस्ट द्वारा मंदिर को भव्य स्वरूप प्रदान किया गया. यहां निरंतर कोई ना कोई निर्माण कार्य चलता रहता है.

ये भी पढ़ें- नवरात्रि के चौथे दिन ऐसे करें मां कूष्मांडा की पूजा, पूरी होगी हर मनोकामना

Reporter- Arvind Singh​

 

 

Trending news