सीकर जिले के रींगस इलाके में पटवारी का बास गांव में बेटियों ने अपनी माता के निधन पर अर्थी को कंधा देकर बेटा-बेटी एक समान का संदेश देते हुए अंतिम संस्कार की रश्म अदायगी की. अक्सर अंतिम सहकार में अर्थी को कंधा बेटे देते हैं, लेकिन पटवारी का बास में बेटियों ने यह फर्ज निभाया.
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खंडेलाः लासीकर के रींगस इलाके के पटवारी का बास गांव निवासी शांति देवी विद्युत विभाग में कर्मचारी थी, जिनका अचानक तबीयत बिगड़ने पर असामयिक निधन हो गया था. शांति देवी के बेटा नहीं है. अंतिम संस्कार की रश्म अदायगी के लिए शांति देवी की दो बेटियों लक्ष्मी और पूजा ने मां की अर्थी को कंधा दिया.अंतिम संस्कार की सभी रस्में अदा की. विद्युत विभाग में लाइनमैन के पद पर कार्यरत शांति देवी के पति बाबुलाल का 1987 में निधन हो गया था,
पति के निधन के बाद शांति देवी को विद्युत विभाग में अनुकंपा नियुक्ति मिली थी. शांति देवी जयपुर के आमेर इलाके में विद्युत विभाग में कार्यरत थी. 30 जून को सेवानिवृत्त होने वाली थी, परिजनों ने बताया कि शांति देवी जयपुर में ही रहती थी.
कुछ दिन पहले पटवारी का बास गांव में उनके भतीजे के यहां पारिवारिक कार्यक्रम था जिसमें शामिल होने के लिए वह गांव आई थी. गांव में तबीयत बिगड़ने पर उन्हें इलाज के लिए जयपुर ले जाया गया. जहां उनका निधन हो गया था. गौरतलब है कि लक्ष्मी और पूजा के पिता बाबुलाल की बचपन में ही मौत हो गई थी, पिता के निधन के बाद मां ने ही दोनों बेटियों को भरण पौषण कर बड़ा किया था. लेकिन अब मां का निधन होने से दोनों बेटियों के सिर से मां का साया भी उठ गया. लक्ष्मी और पूजा दोनों बहनें अविवाहित हैं, परिजनों ने दोनों को ढांढस भी बंधाया.