Udaipur के मेनार में खेली गई 'बारूद होली', देखने वालों की भी रूह कांप जाए
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Udaipur के मेनार में खेली गई 'बारूद होली', देखने वालों की भी रूह कांप जाए

Udaipur News: राजस्थान के उदयपुर जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां सदियों से लोग बारूद से होली खेल कर इस त्योहार को मनाते हैं. रियासत काल से शुरू हुई बारूद की होली खेलने की यह परंपरा आज भी गांव में बदस्तूर जारी है. 

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Udaipur News: होली रंगों का त्योहार है और देशभर में इस त्योहार को लोग रंग से खेलते हुए मनाते हैं, लेकिन उदयपुर जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां सदियों से लोग बारूद से होली खेल कर इस त्योहार को मनाते हैं. रियासत काल से शुरू हुई बारूद की होली खेलने की यह परंपरा आज भी गांव में बदस्तूर जारी है. बारूद की होली को देखने के लिए हर साल हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं. 

बंदूकों से छूटती गोलियां, आग उगलती तोपें और भयानक आतिशबाजी का यह नजारा उदयपुर शहर से करीब 45 किलो मीटर दूर मेनार गांव का है, जहां मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोग होली के दो दिन बाद जमरा बीज के मौके पर बारूद से होली खेल रहे हैं. समाज के बारूद की यह होली खेलने की परंपरा रियासत काल से शुरू हुई, जो अभी तक बदस्तूर जारी है. 

बताटा जाता है कि मेवाड़ में महाराणा अमर सिंह के शासन काल में मेनार गांव के पास मुगल सेनाओं की एक चौकी थी. इस चौकी से मेनार गांव के लोग भी आतंकी रहते थे और मुगल सेना की यह चौकी केवाद की सुरक्षा के लिए भी खतरा थी. इसी दौरान मुगल सेना मेवाड़ पर आक्रमण करने की योजना बना रही थी लेकिन मुगल सेना के इस इरादे की भनक ग्रामीणों को लग गई. मुगल सेना के मेवाड़ पर आक्रमण करने से पहले ही मेनार गांव के मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोगों ने योजना बना कर पहले होली का त्योहार मनाने के लिए सैनिकों को गांव में बुलाया. इसके बाद ढोल की थाप पर हुए इशारे पर समाज के रणबांकुरों ने मुगल सैनिकों पर हमला बोल दिया. दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. इस जंग में मेनारिया समाज की जीत हुई और मुगल सेना को चौकी छोड़ भागना पड़ा. हालांकि इस दौरान मेवाड़ की रक्षा में कुछ लोग भी शहीद हो गए. 

इस जीत के बाद से ही हर साल जमरा बीज के दिन से मेनारिया समाज के लोग बारूद की होली खेल कर मुगल सेना पर अपनी जीत का जश्न मनाते हैं. अपनी भावी पीढ़ी को समाज का मुखिया उनका इतिहास पढ़ कर सुनाता है. समाज के सभी लोग पारम्परिक पोशाक पहने होते हैं, जो किसी योद्धा की तरह होती है. समाज की इस अनूठी परम्परा को लेकर युवाओं में भी काफी उत्साह देखा जाता है.

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